खरीफ बुवाई में 5.1 फीसदी की तेजी: धान और मक्का की बुवाई में बढ़त, दलहन और तिलहन पिछड़े
1 अगस्त 2025 तक खरीफ फसलों की कुल बुवाई 5.1 फीसदी बढ़कर 932.93 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है. पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा 887.97 लाख हेक्टेयर था. यानी लगभग 45 लाख हेक्टेयर ज्यादा रकबे में बुवाई हो चुकी है.
इस बार मानसून ने देश के करोड़ों किसानों को थोड़ी राहत दी है. समय पर और अच्छी बारिश ने खेतों की प्यास बुझाई, जिससे खरीफ सीजन की फसलें पटरी पर आती दिख रही हैं. कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 1 अगस्त 2025 तक खरीफ फसलों की कुल बुवाई 5.1 फीसदी बढ़कर 932.93 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है. पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा 887.97 लाख हेक्टेयर था. यानी लगभग 45 लाख हेक्टेयर ज्यादा रकबे में बुवाई हो चुकी है.
धान की शानदार वापसी
खरीफ बुवाई में सबसे ज्यादा धान चमका है. इस बार धान की खेती 319.4 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है, जो पिछले साल से करीब 17 फीसदी ज्यादा है.यह अच्छी खबर है क्योंकि धान देश की खाद्य सुरक्षा में बड़ी भूमिका निभाता है.
दालें रह गईं पीछे
इस बार दलहनों की बुवाई थोड़ी घटी है, जिससे दालों की कीमतों पर असर पड़ सकता है.
- अरहर की बुवाई 6.7 फीसदी घटकर 38.32 लाख हेक्टेयर रह गई.
- उड़द की बुवाई भी 2.5 फीसदी गिरकर 18.62 लाख हेक्टेयर पर आ गई.
- हालांकि मूंग ने थोड़ा राहत दी और 3.4 फीसदी की बढ़त के साथ 32.18 लाख हेक्टेयर पर पहुंची.
तिलहन में गिरावट, सोयाबीन और मूंगफली फिसले
तिलहनों की कुल बुवाई 7.11 लाख हेक्टेयर घटकर 171.03 लाख हेक्टेयर रह गई है.
- सोयाबीन में 4.9 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है.
- मूंगफली की बुवाई भी घटकर 41.56 लाख हेक्टेयर हो गई.
- मक्का ने दिखाया दम, बाजरा-ज्वार पिछड़े
मोटे अनाजों की बुवाई में कुल मिलाकर सुधार दिखा है. मक्का की बुवाई 11.7 फीसदी बढ़कर 91.62 लाख हेक्टेयर हो गई. लेकिन बाजरा, ज्वार और रागी की बुवाई में कमी देखी गई है.
कपास कमजोर, गन्ना आगे
कपास की बुवाई में 2.4 फीसदी की गिरावट आई है और यह 105.87 लाख हेक्टेयर पर सिमट गई है. गन्ने की बुवाई 57.31 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है, जो पिछले साल से थोड़ी ज्यादा है.
बारिश ने कहां-कहां दिया साथ?
बारिश ने देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूप दिखाए हैं. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, इस बार मध्य भारत में सामान्य से 15 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है, जबकि उत्तर-पश्चिम भारत में भी मानसून ने मेहरबानी दिखाई और वहां 21 फीसदी अधिक वर्षा दर्ज की गई. हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में हालात थोड़े उलट रहे, जहां सामान्य से 19 फीसदी कम बारिश हुई है. दक्षिण भारत में भी बारिश में कमी देखी गई है, यहां 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. ऐसे में देश भर में मानसून का मिजाज मिला-जुला रहा है.
क्यों जरूरी हैं ये आंकड़े?
अच्छी बुवाई का सीधा असर देश के खाद्य भंडार, बाजार की कीमतों और किसानों की आमदनी पर पड़ता है. जैसे धान और मक्का की अच्छी बुवाई से इनकी आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद है, जिससे चावल और मक्का सस्ते हो सकते हैं और महंगाई पर नियंत्रण मिल सकता है. लेकिन दूसरी ओर, दालों और तिलहनों की बुवाई पिछड़ रही है, जिससे इनकी कीमतों में उछाल आने का खतरा है. ऐसे में जहां कुछ हिस्सों के किसान राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं कुछ फसलों की कमी बाजार को चिंता में डाल सकती है.