अरहर की बुवाई में 8 फीसदी की गिरावट, दाल की आपूर्ति पर मंडराया संकट, जानें वजह
इस बार किसानों का रुझान मक्का, कपास और तिलहन जैसी अधिक लाभदायक फसलों की ओर बढ़ गया है. वजह है अरहर की घटती कीमतें और बाजार में अधिक आपूर्ति.
खरीफ सीजन में इस बार अरहर (तूर दाल) की खेती पिछली बार के मुकाबले कम हो रही है. देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और आंध्र प्रदेश में अरहर की बुवाई में गिरावट दर्ज की गई है. केवल तेलंगाना ऐसा राज्य है जहां अरहर की खेती में इस साल इजाफा हुआ है.
क्यों घट रही है अरहर की बुवाई?
इस बार किसानों का रुझान मक्का, कपास और तिलहन जैसी अधिक लाभदायक फसलों की ओर बढ़ गया है. वजह है अरहर की घटती कीमतें और बाजार में अधिक आपूर्ति. कर्नाटक के कलबुर्गी जैसे प्रमुख जिलों में भी अरहर की जगह मक्का और गन्ने की खेती को प्राथमिकता दी जा रही है.
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, कर्नाटक प्रदेश रेड ग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बसवराज इंगिन का कहना है कि “इस बार मंडियों में अरहर की कीमत 5,300 से 6,700 रुपये प्रति क्विंटल तक ही है, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 8,000 रुपये तय है. ऐसे में किसान नुकसान के डर से दूसरी फसलों की ओर जा रहे हैं.”
प्रमुख राज्यों में स्थिति
कर्नाटक: अब तक 13.01 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई है, जबकि पिछले साल 15.42 लाख हेक्टेयर थी. राज्य का लक्ष्य 16.80 लाख हेक्टेयर है.
महाराष्ट्र: अब तक 11.44 लाख हेक्टेयर में बुवाई, पिछले साल 11.60 लाख हेक्टेयर.
गुजरात: इस बार 1.55 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई, जो कि पिछले साल 1.96 लाख हेक्टेयर थी.
आंध्र प्रदेश: अभी तक 68 हजार हेक्टेयर में बुवाई, पिछले साल यह आंकड़ा 82 हजार हेक्टेयर था.
तेलंगाना ने किया बेहतर प्रदर्शन
तेलंगाना एकमात्र ऐसा राज्य है जहां अरहर की खेती में इजाफा हुआ है. इस साल यहां 4.21 लाख हेक्टेयर में अरहर बोई गई, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 3.65 लाख हेक्टेयर था.
दाम गिरने की एक बड़ी वजह
सरकार ने अरहर के आयात पर लगने वाले शुल्क को मार्च 2026 तक हटा दिया है. इससे बाजार में विदेशी अरहर की भरमार हो गई है. वर्ष 2024-25 में भारत ने रिकॉर्ड 12.23 लाख टन अरहर का आयात किया, जो पिछले साल के 7.71 लाख टन से कहीं ज्यादा है.