इस साल के शुरुआती दो महीनों में (अप्रैल-मई 2025) भारत ने दालों का जितना आयात किया है, उसमें बीते साल की तुलना में जबरदस्त गिरावट देखी गई है. वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस बार देश ने केवल 492 मिलियन डॉलर की दालें आयात की हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में ये आंकड़ा 782 मिलियन डॉलर था. यानी करीब 37 फीसदी की गिरावट. इसका असर सिर्फ आंकड़ों पर नहीं, बल्कि किसानों, व्यापारियों और आम जनता के लिए भी अहम संकेत है.
मांग घटी, मानसून से उम्मीदें बढ़ीं
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, इस गिरावट की दो बड़ी वजहें हैं-एक, इस बार देश के भीतर दालों की मांग थोड़ी सुस्त रही और दूसरी, पिछले साल दालों का रिकॉर्ड आयात हो चुका था. इसके साथ ही, इस साल मौसम विभाग ने सामान्य से बेहतर मानसून की भविष्यवाणी की है, जिससे देश में घरेलू उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है. आईग्रेन इंडिया के राहुल चौहान का कहना है कि “इस बार किसानों को भरोसा है कि बारिश ठीक रही तो उत्पादन अच्छा होगा और आयात की जरूरत कम पड़ेगी.”
खरीफ सीजन में बुवाई में उछाल
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि 20 जून तक दालों की बुवाई में 42 फीसदी का इजाफा हुआ है. खासकर मूंग और उड़द की बुवाई में अच्छी तेजी देखी जा रही है.
मूंग: 4.43 लाख हेक्टेयर (पिछले साल 2.67 लाख हेक्टेयर)
उड़द: 1.39 लाख हेक्टेयर (पिछले साल 0.62 लाख हेक्टेयर)
अन्य दालें: 0.94 लाख हेक्टेयर (पिछले साल 0.67 लाख हेक्टेयर)
हालांकि अरहर (तुअर) की बुवाई में मामूली गिरावट रही, जो इस बार 2.48 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंची है.
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा, फिर भी राहत जारी
सरकार ने मार्च 2026 तक तुअर, उड़द और पीली मटर पर शून्य सीमा शुल्क के साथ आयात की अनुमति दी है, ताकि जरूरत पड़ने पर बाजार में दाम नियंत्रित रह सकें. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि “देश का किसान अब ज्यादा दालें उगा रहा है, जिससे हम आयात पर कम निर्भर होंगे.”
आंकड़े बताते हैं कि इस बार जिन दालों का आयात घटा है, उनमें पीली मटर और चना सबसे आगे हैं.
दालों का अनुमानित आयात (अप्रैल-मई 2025)
दाल | अनुमानित आयात | पिछले वर्ष का आयात |
पीली मटर | 1.31 लाख टन | 6.86 लाख टन |
चना | 15,536 टन | 29,948 टन |
उड़द | 1.5 लाख टन | 1.393 लाख टन |
मसूर | 1.37 लाख टन | 1.13 लाख टन |
तुअर | 1.95 लाख टन | 1.22 लाख टन |
अगर मानसून और सरकार की नीतियां साथ देती हैं, तो आने वाले सालों में हमें विदेशी दालों पर कम निर्भर रहना पड़ेगा और यह सीधा फायदा होगा देश के किसानों और आम उपभोक्ताओं को.