पूरे देश में मॉनसून की दस्तक हो गई है. बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा सहित लगभग पूरे देश में बारिश हो रही है. कई राज्यों में तो बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. इससे इंसान से ज्यादा मवेशियों को परेशानी हो रही है. क्योंकि बारिश के कारण चारागाह में जलभराव हो गया है. ऐसे में किसान अपने मवेशियों को हरी घास नहीं खिला पा रहे हैं. लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं, जो खेत की मेड़ से घास लाकर अपने दुधारू मवेशियों को खिला रहे हैं. हालांकि, ऐसे किसानों को किसी भी घास को खिलाने से पहले ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए. क्योंकि बारिश के मौसम में गीली घास मवेशियों के लिए हानिकारक हो सकती हैं. इससे वे बीमार पड़ सकते हैं.
पशु एक्सपर्ट का कहना है कि बरसात के मौसम में कुछ किसान खेतों में जलभराव होने के चलते मेढ़ पर उगने वाली हरी घास पशुओं को खिलाते हैं. लेकिन पशुपालकों को मालूम होना चाहिए, बारिश के पानी से गीली घास दुधारू गाय-भैंस या बकरी को नहीं खिलाना चाहिए. ये घास मवेशियों के हेल्थ को प्रभावित करती हैं. इससे मवेशियों के बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में सीधे दूध उत्पादन पर असर पड़ेगा, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
मवेशियों के लिए बेहद फायदेमंद है घास
पशु चिकित्सकों की माने तो इंसान की तरह ही मौसम के हिसाब से पशुओं का भी आहार बदलना चाहिए. खास कर बारिश के मौसम में मवेशियों को गीला चारा भूलकर भी न खिलाएं. इससे उनके शरीर में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में पुशपालक हरे चारे के रूप में अपने दुधारू पशुओं को नेपियर घास और मक्का खिला सकते हैं. ये दोनों घास बारिश के मौसम में मवेशियों के लिए बेहद सुरक्षित मानी जाती है. क्योंकि इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो पशुओं में दुग्ध उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं. साथ ही मवेशी भी हेल्दी रहते हैं.
नेपियर घास में पाए जाते हैं ये तत्व
बता दें कि नेपियर घास को हाथी घास या राजा घास के नाम से भी जाना जाता है. यह पूरे साल उगने वाली घास है, जो अपनी उच्च उपज और पौष्टिकता के चलते पशुपालकों के बीच लोकप्रिय है. ऐसे नेपियर घास में 55 से 60 फीसदी ऊर्जा, 8-10 फीसदी प्रोटीन और 26-28 फीसदी कच्चा फाइबर मौजूद होता है. साथ ही इसमें 18 से 20 फीसदी प्रोटीन और 35 फीसदी क्रूड फाइबर भी पाया जाता है. यह एक पौष्टिक चारा है जो पशुओं के लिए कारगर है.