तमिलनाडु की इन 5 देसी फसलों को मिलेगा GI टैग, किसानों को होगा बड़ा फायदा

जीआई टैग मिलने के बाद इन पारंपरिक फसलों की पहचान दुनियाभर में हो सकेगी. इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम यानी प्रीमियम मूल्य मिलेगा. नकली या नकल करके बेचे जा रहे उत्पादों पर रोक लगेगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन फसलों की मांग भी तेजी से बढ़ेगी.

नई दिल्ली | Published: 23 Jun, 2025 | 08:01 AM

तमिलनाडु की मिट्टी से उपजे कुछ खास फल, फूल और अनाज न सिर्फ स्वाद में बेहतरीन हैं, बल्कि उनकी खासियतें भी उन्हें दुनिया से अलग बनाती हैं. अब इन्हीं पारंपरिक कृषि उत्पादों को पहचान दिलाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. सरकार पांच देसी कृषि उत्पादों के लिए GI (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग लेने जा रही है, ताकि किसानों को अच्छा दाम मिले और उनकी उपज की नक़ल न हो सके.

GI टैग क्या है और क्यों जरूरी है?

GI टैग किसी उत्पाद की भौगोलिक पहचान को साबित करता है. मतलब, कोई चीज उस खास जगह की विशेषता है और उसकी गुणवत्ता वहां की मिट्टी, मौसम या पारंपरिक तरीकों से जुड़ी होती है. जैसे मदुरै की मल्ल‍ी (जैसमिन), बनारसी साड़ी या दरभंगा का मखाना.

कौन-कौन सी फसलें शामिल हैं?

तमिलनाडु सरकार ने जिन पांच फसलों के लिए GI टैग की प्रक्रिया शुरू की है, वे हैं-

किसानों को कैसे मिलेगा लाभ?

जीआई टैग मिलने के बाद इन पारंपरिक फसलों की पहचान दुनियाभर में हो सकेगी. इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम यानी प्रीमियम मूल्य मिलेगा. नकली या नकल करके बेचे जा रहे उत्पादों पर रोक लगेगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन फसलों की मांग भी तेजी से बढ़ेगी. कुल मिलाकर इससे किसानों की आमदनी और जीवनस्तर में सुधार होगा. सरकार ने इसके लिए 15 लाख रुपये का बजट तय किया है. रिसर्च का काम NABARD और तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने मिलकर किया है.

पिछले उदाहरणों से मिली प्रेरणा

इससे पहले मदुरै मल्ल‍ी और तंजावुर वीणा को GI टैग मिल चुका है, जिससे उन्हें देश-विदेश में पहचान मिली और बिक्री भी बढ़ी. अब तमिलनाडु सरकार इन्हीं की तर्ज पर बाकी पारंपरिक फसलों को भी आगे बढ़ाना चाहती है.

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