मां शैलपुत्री से आत्मबल का संचार (पहला दिन): गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होती है मां शैलपुत्री की पूजा से. साधक इस दिन अपनी भीतरी शक्ति को जागृत करता है. यह आत्मविश्वास, स्थिरता और मानसिक संतुलन का प्रथम चरण होता है.
मां ब्रह्मचारिणी से मिलती है साधना की गहराई (दूसरा दिन): दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को चंद्रमा समान शांति मिलती है. यह ध्यान को गहरा करने का अवसर होता है, जहां साधक तंत्र की कठिन विधाओं में मन को स्थिर करता है.
मां चंद्रघंटा से नकारात्मक ऊर्जा का अंत (तीसरा दिन): मां चंद्रघंटा से नकारात्मक ऊर्जा का अंत (तीसरा दिन): तीसरे दिन की साधना से साधक अपने चारों ओर मौजूद नकारात्मक ऊर्जा, डर और भ्रम से मुक्त होता है. यह दिन रक्षा कवच बनाने का प्रतीक माना जाता है.
मां कात्यायनी से गुप्त सिद्धियों की प्राप्ति (छठा दिन): मां कात्यायनी की उपासना विशेष रूप से तांत्रिक साधकों के लिए महत्वपूर्ण होती है. यह दिन गुप्त शक्तियों और रहस्यमयी सिद्धियों की प्राप्ति का मार्ग खोलता है.
मां कालरात्रि से भय पर नियंत्रण (सातवां दिन): देवी कालरात्रि को तांत्रिकों की विशेष देवी माना जाता है. साधक इस दिन अपनी भीतरी कमजोरियों और अज्ञात भय पर विजय प्राप्त करता है. यह आत्मबल और दृढ़ता का प्रतीक है.
मां सिद्धिदात्री से मोक्ष की ओर (नवम दिन): गुप्त नवरात्रि का अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की साधना का होता है. इस दिन साधक दिव्य ज्ञान, ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाता है. यह दिन साधना का चरम बिंदु होता है.
गुप्त नवरात्रि की साधनाएं बेहद शक्तिशाली और रहस्यमयी होती हैं. इन्हें करने के लिए योग्य गुरु और विधिवत मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है. आमजन इन्हें सिर्फ श्रद्धा और पूजा तक सीमित रखें. (Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां दी गई किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की Kisan India पुष्टि नहीं करता है.)