देश में खेती के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक है सस्ती और समय पर मिलने वाली खाद. किसानों की इस जरूरत को समझते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2025-26 की शुरुआत से अब तक यानी 21 जुलाई 2025 तक कुल 49,330 करोड़ रुपये की उर्वरक सब्सिडी वितरित कर दी है. इससे किसानों को जरूरी पोषक तत्व जैसे यूरिया, डीएपी और अन्य पी एंड के (फॉस्फेट और पोटाश) खाद कम कीमत पर मिल पा रहे हैं.
सभी किसानों को सस्ती खाद की सुविधा
रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में जानकारी देते हुए बताया कि यह सब्सिडी देश के सभी किसानों चाहे वे छोटे हों या बड़े को बराबरी से मिल रही है. सरकार की ओर से यूरिया की अधिकतम खुदरा कीमत (MRP) 242 रुपये प्रति 45 किलो बैग तय की गई है.
हालांकि असल में यूरिया बनाने और आयात करने की लागत इससे कहीं ज्यादा होती है, लेकिन वह अंतर सरकार कंपनियों को सब्सिडी के रूप में देती है. यह अंतर कभी-कभी 2000 रुपये से भी ज्यादा प्रति बैग तक हो सकता है, लेकिन किसानों को यह खाद 242 रुपये में ही मिलती है.
सब्सिडी का ब्योरा- कौन सी खाद पर कितना खर्च?
घरेलू यूरिया पर सब्सिडी: 30,940.82 करोड़ रुपये
आयातित यूरिया पर सब्सिडी: 4,006.70 करोड़ रुपये
अन्य P&K उर्वरकों पर सब्सिडी (लगभग): 14,382 करोड़ रुपये
सरकार की यह नीति किसानों को आर्थिक राहत देने के साथ-साथ घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने की भी दिशा में काम कर रही है.
खाद की बिक्री कैसे ट्रैक होती है?
DBT in Fertilizers (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना के तहत सरकार 100 फीसदी सब्सिडी कंपनियों को देती है, लेकिन ये सब्सिडी तभी मिलती है जब किसान खुद आधार कार्ड के साथ पीओएस (POS) मशीन पर खाद की खरीद करता है. इस तकनीकी व्यवस्था से क्या फायदे हुए:
- पारदर्शिता बढ़ी
- कालाबाजारी पर रोक
- सही व्यक्ति तक सब्सिडी पहुंची
- सरकार को भी रियल टाइम डेटा मिल रहा है
यूरिया उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
सरकार के प्रयासों से देश में यूरिया उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी हुई है.
2014-15 में उत्पादन: 225 लाख टन
2023-24 में रिकॉर्ड उत्पादन: 314.07 लाख टन
2024-25 में अब तक: 306.67 लाख टन
इससे देश को यूरिया के आयात पर कम निर्भर रहना पड़ा और घरेलू आपूर्ति बेहतर बनी रही.
P&K उर्वरकों के लिए Nutrient-Based Subsidy
2010 से केंद्र सरकार ने P&K (फॉस्फेटिक और पोटैशिक) उर्वरकों के लिए न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी (NBS) नीति लागू कर रखी है. इस नीति के तहत, हर खाद में मौजूद पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैश और सल्फर की मात्रा के आधार पर सब्सिडी तय की जाती है. खास बात यह है कि खाद की अधिकतम खुदरा कीमत (MRP) तय करने की आजादी कंपनियों को दी गई है, लेकिन सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की राशि तय और पारदर्शी रहती है.
इस प्रणाली से जहां एक ओर खाद कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर किसानों को संतुलित पोषण वाला उर्वरक मिलने का रास्ता आसान हुआ है. NBS नीति ने सब्सिडी प्रणाली में पारदर्शिता लाने के साथ-साथ सरकार के खर्च को भी बेहतर तरीके से नियंत्रित किया है.
कैसे मिलती है सब्सिडी?
सरकार “DBT in Fertilizers” नाम की योजना के तहत खाद की सब्सिडी सीधे कंपनियों को देती है. जब किसान आधार कार्ड से किसी दुकान पर POS मशीन से खाद खरीदते हैं, तभी बिक्री रजिस्टर्ड होती है और उसी के आधार पर सब्सिडी जारी की जाती है. इससे पारदर्शिता बढ़ी है और खाद की कालाबाजारी पर लगाम लगी है.
सब्सिडी में धीरे-धीरे गिरावट
हालांकि पिछली वर्षों की तुलना में इस बार सब्सिडी में कुछ कमी आई है –
- 2022-23 में 2,54,798.88 करोड़ रुपये
- 2023-24 में 1,95,420.51 करोड़ रुपये
- 2024-25 में 1,77,129.50 करोड़ रुपये
- 2025-26 (अब तक) में 49,330 रुपये (जुलाई 21 तक)
लेकिन सरकार का ध्यान अब आत्मनिर्भर भारत के तहत घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर है, ताकि किसानों को उचित दर पर लगातार खाद मिलती रहे और खेती की लागत काबू में रहे.
किसानों के लिए क्या मायने रखती है ये सब्सिडी?
- छोटे और सीमांत किसानों को कम लागत पर खेती करने का मौका मिलता है
- कम आय वाले राज्यों में कृषि उत्पादन बना रहता है
- ग्रामीण बाजारों में मांग टिकाऊ रहती है
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है