स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे जनजातीय किसान, महाराष्ट्र से मंगाए पौधे बने कमाई का जरिया

झाबुआ के किसानों ने महाराष्ट्र के सतारा से स्ट्रॉबेरी के 5 हजार पौधे मंगवाए. जिसके बाद किसानों ने अपने खेतों में 500 से 1 हजार पौधे लगाए. हर एक पौधे की कीमत केवल 7 रुपये थी. इन पौधों की रोपाई के लिए किसानों ने बागवानी की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया.

नोएडा | Updated On: 18 May, 2025 | 05:09 PM

कहते हैं कि हिम्मत हो और परिस्थितियों को बदलने का जुनून हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है . ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भोपाल के जनजातीय किसानों ने. जिन्होंने खेती को एक नया मोड़ देकर न केवल खेती को नई दिशा दी है बल्कि खुद की परिस्थितियों में भी बड़ा बदलाव किया. ये कहानी है मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में रहने वाले प्रगतिशील किसान रमेश परमार और उनके साथियों की. जिन्होंने अपनी मेहनत , लगन और हिम्मत से असंभव को संभव बना दिया. इन्होंने पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर व्यावसायिक खेती की ओर रुख किया और अपने इस कदम से जनजातीय किसानों को उम्मीद की एक नई रोशनी दी.

स्ट्रॉबेरी की खेती से शुरु हुआ सफर

मध्य प्रदेश के कृषि विभाग के अनुसार झाबुआ जिला मुख्य तौर पर मक्का और अन्य फसलों की खेती के लिए जाना जाता है. लेकिन अब यहां के जनजातीय किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़ व्यावसायिक खेती को अपना लिया है. जिसकी शुरुआत स्ट्रॉबेरी की खेती से हुई है. झाबुआ जिले के रामा ब्लॉक के तीन गांवों भुराडाबरा, पालेड़ी और भंवरपिपलिया में आठ किसानों के खेतों में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए गए. स्ट्रॉबेरी के खेती आम तौर पर ठंडे इलाकों में की जाती है. लेकिन झाबुआ के गर्म इलाकें में ये जनजातीय किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर एक प्रयोग कर रहे हैं. जिसके बाद यहां के किसानों की बागवानी की उन्नत और आधुनिक तकनीकों से भी पहचान हुई है.

महाराष्ट्र से मंगाए गए 5 हजार पौधे

झाबुआ के किसानों ने महाराष्ट्र के सतारा से स्ट्रॉबेरी के 5 हजार पौधे मंगवाए. जिसके बाद किसानों ने अपने खेतों में 500 से 1 हजार पौधे लगाए. हर एक पौधे की कीमत केवल 7 रुपये थी. इन पौधों की रोपाई के लिए किसानों ने बागवानी की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया. इससे न केवल स्ट्रॉबेरी के पौधे में फल अच्छी मात्रा में आए बल्कि किसानों ने खेती में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर खुद को आत्मनिर्भर भी बनाया. रोटला गांव के रमेश परमार ने अपने खेत में ड्रिप और मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल कर स्ट्रॉबेरी के 1 हजार पौधे लगाए. रमेश बताते हैं कि पहले बाजार में स्ट्रॉबेरी की कीमतों को देखकर कभी खरीदने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन अब रमेश खुद के खेत में उगाई गई स्ट्राबेरी का स्वाद लेते हैं.

3 महीने में शुरू हुई स्ट्रॉबेरी की पैदावार

ऐसे ही एक किसान रमेश ने साल 2024 के अक्टूबर महीने में स्ट्रॉबेरी के पौधों की बुवाई की थी. वे बताते हैं कि बुवाई के तीन महीने बाद ही पौधों पर स्टेरॉबेरी के फलों की अच्छी पैदावार आने लगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान में बाजार में स्ट्रॉबेरी की कीमत 300 रुपये किलो है लेकिन फिलहाल उन्होंने स्ट्रॉबेरी की पहली फसल घर के सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ बांटी है. वहीं दूसरी ओर रमेश बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले वे अकेले किसान नहीं है. उनके साथ ही अन्य किसान भंवरपिपलिया के लक्ष्मण, भुराडाबरा के दीवान, और पालेड़ी के हरिराम ने भी अपनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाई है. इन सभी किसानों की भी फसलों पर फल आने शुरू हो गए हैं. वे बताते हैं कि ये किसान अपनी उपज को लोकल हाट-बाजार और हाईवे के किनारे बेचने की योजना बना रहे हैं.

आत्मनिर्भर भारत बनाने की पहल

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में जिस तरह जनजातीय किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर प्रदेश की खेती को एक नई दिशा दी है . उससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी बल्कि ये किसान दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बनेंगे. अपनी इस पहल से झाबुआ के जनजातीय किसान आर्थिक और सामाजिक दोनों ही बदलाव कर रहें है. इन किसानों की ये कोशिश आत्मिनर्भर भारत बनाने की ओर एक ठोस कदम भी है. इसके साथ ही झाबुआ के किसानों ने यह भी साबित किया है सही मार्गदर्शन, तकनीक और कड़ी मेहनत से किसी भी क्षेत्र में तरक्की की जा सकती है.

Published: 18 May, 2025 | 05:09 PM