भारत में देसी गायों की नस्लें सिर्फ कृषि-आधारित संपत्ति नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिक आस्था का हिस्सा रही हैं. इन्हीं में से एक है पुंगनूर गाय—दुनिया की सबसे छोटी देसी नस्ल, जो सदियों से आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर क्षेत्र में पूजनीय मानी जाती है. लंबे समय से विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी इस पवित्र नस्ल को अब नई जिंदगी मिली है, और यह सब संभव हुआ है राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की वैज्ञानिक पहल से.
NDDB ने पहली बार आधुनिक तकनीक—OPU, IVF और ET के जरिए पुंगनूर का एक स्वस्थ बछड़ा जन्म दिलाने में सफलता पाई है. यह सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि हमारी विरासत को बचाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है.
शुरू में पुंगनूर गाय क्यों संकट में आई?
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पुंगनूर गाय सदियों से मंदिरों में पूजनीय रही है और स्थानीय राजाओं द्वारा संरक्षित की जाती थी. यह गाय आकार में बेहद छोटी होती है. इसकी ऊंचाई केवल 70 से 90 सेमी, वजन 115 से 200 किलो, और दूध 3 से 5 लीटर प्रतिदिन देती है. इसका दूध अत्यधिक पौष्टिक, हाई-फैट और आयुर्वेदिक महत्व वाला माना जाता है.
बीते दशकों में अंधाधुंध क्रॉसब्रीडिंग और नस्ल सुधार के गलत प्रयोगों के चलते इसकी संख्या तेजी से घट गई. हाल यह हो गया था कि नस्ल लगभग लुप्त मानी जाने लगी.
कैसे बचाई जा रही है यह पवित्र देसी नस्ल?
NDDB की टीम ने आंध्र प्रदेश के पुंगनूर क्षेत्र में जाकर उन गायों को चुना जिनकी जीनलाइन मजबूत थी. इन गायों से ओवा (अंडाणु) लिए गए और गुजरात के आनंद स्थित लैब में IVF तकनीक से इनसे viable embryos तैयार किए गए. बाद में ये भ्रूण क्रॉसब्रीड गायों में ट्रांसफर किए गए ताकि सुरक्षित गर्भकाल संभव हो सके. फिर जन्म हुआ भारत की पहली IVF पुंगनूर बछिया का, जो अब आनंद कैंपस में अन्य देसी नस्लों के बछड़ों के साथ स्वस्थ पनप रही है.
किसानों के लिए पोंगनूर क्यों खास है?
पुंगनूर गाय का महत्व सिर्फ भावनात्मक या धार्मिक नहीं है, बल्कि व्यावहारिक भी है—
कम खर्च, ज्यादा आय
इसके छोटे आकार के कारण इसे बहुत कम चारे की जरूरत होती है. यह गर्मी और सूखे में भी आसानी से जी लेती है—यानी कम देखभाल में टिकाऊ पशु.
प्रीमियम दूध व घी
पुंगनूर गाय का दूध और उससे बनने वाला घी मंदिरों, आयुर्वेदिक औषधियों और धार्मिक आयोजनों में बहुत मूल्यवान माना जाता है. इससे किसानों को प्रीमियम कीमत मिल सकती है.
स्थानीय नस्ल होने से बीमारियों का कम खतरा
कठोर जलवायु में भी यह नस्ल मजबूत रहती है, जिससे पशुपालक खर्च बचाते हैं.
देशभर में देसी नस्लों का सबसे बड़ा विज्ञान आधारित कार्यक्रम
पुंगनूर गाय सिर्फ शुरुआत है. NDDB ने देश की अन्य महत्त्वपूर्ण देसी नस्लों पर भी काम शुरू किया है–गिर, साहिवाल, कंकरेज, थारपारकर सहित कई नस्लों में पहले से ही IVF और ET तकनीक से हजारों भ्रूण बनाए जा चुके हैं.
इसी प्रयास के तहत अब तक 8,500 से अधिक भ्रूण तैयार किए जा चुके हैं, करीब 550 सफल गर्भधारण हुए हैं और 400 के आसपास स्वस्थ बछड़े जन्म ले चुके हैं. केंद्र सरकार भी इस मिशन को बढ़ावा दे रही है और हर IVF बछड़े पर किसानों को 5,000 रुपये की आर्थिक सहायता देकर उन्हें प्रोत्साहन दे रही है, जबकि एक सफल पुंगनूर बछड़े की लागत लगभग 21,000 रुपये लगती है.
संरक्षण के साथ आत्मनिर्भरता
यह कार्यक्रम सिर्फ एक नस्ल को बचाने भर का प्रयास नहीं है. यह भारतीय गायों की आनुवांशिक विरासत को पुनर्जीवित करेगा, छोटे किसानों को बेहतर आय दिलाएगा, देश की डेयरी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ और स्थानीय बनाएगा और सबसे बढ़कर हमारी कृषि-आध्यात्मिक परंपरा को संरक्षित रखेगा.