Gir cow : देशी गायों में से एक पेचिदा और लोकप्रिय नस्ल गिर गाय अब चर्चा में है क्योंकि इसके दूध की कीमत 150-200 रुपये प्रति लीटर बताई जा रही है. इस गाय के कारण सिर्फ दूध ही नहीं, बल्कि गोबर, गौमूत्र और जैविक खेती के क्षेत्र में भी किसानों को कई तरह के लाभ मिलने लगे हैं. जानिए कि कैसे गिर गाय ने कम समय में इतना नाम कमाया है और इसके उपयोग से किस तरह किसानों की कमाई बढ़ सकती है:
झारखंड में हो रही गिर गाय की खूब चर्चा
न्यूज 18 के रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के सतीश दुबे ने अपने खेत में बनाई गौशाला में खास नस्ल की गिर गायें पाल रखी हैं. ये गायें गुजरात के राजकोट से लाई गई हैं. दुबे ने बताया कि ये गायें एक बड़े फार्म से लाई गई हैं, जहां 500 से ज्यादा गिर नस्ल की गायें मौजूद थीं. इन गायों के साथ एक बुल (नर गाय) भी लाया गया है, जो देशभर में प्रसिद्ध एक विजेता बैल की संतान है. इससे पता चलता है कि ये गायें बहुत ही उम्दा नस्ल की हैं.
दूध की गुणवत्ता और बाजार में मांग
गिर गाय का दूध ए2 मिल्क की कैटेगरी में आता है, जिसे सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है. यही वजह है कि इस दूध की बाजार में काफी मांग है और इसकी कीमत 150 से 200 रुपये प्रति लीटर तक जाती है. इसके अलावा, गिर गाय का स्वभाव बहुत ही शांत होता है और इसकी देखभाल आसान रहती है. यही कारण है कि अब बहुत से किसान इस नस्ल की गाय पालने की ओर आकर्षित हो रहे हैं. गिर गाय का दूध स्वाद में भी खास होता है और इसकी शुद्धता के कारण लोग इसे प्रीमियम दूध के रूप में खरीदना पसंद करते हैं.
गौमूत्र और गोबर से अन्य उपयोग
गाय से मिलने वाला गौमूत्र एक प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में उपयोग किया जा रहा है. इसे पानी में मिलाकर छिड़कने से कीट कम होते हैं और फसलों को नुकसान नहीं होता. गोबर से जीवामृत बना कर खेतों में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और रासायनिक खादों की निर्भरता घटती है. ऐसे कई उत्पाद एक गाय से ही अनेक उपयोग दे सकते हैं.
बहुआयामी लाभ का अवसर
गिर गाय सिर्फ दूध देने की गाय नहीं है- यह एक बहुआयामी संसाधन बन गई है.
दूध से लाभ, गोबर से खाद, गौमूत्र से कीटनाशक और जैविक खेती से बेहतर फसल-ये सब एक साथ मिलते हैं. इस मॉडल से किसान न सिर्फ अपनी आजीविका सुधार सकते हैं बल्कि स्थायी खेती की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.
किसानों के लिए प्रेरणा और भविष्य की राह
इस गाय की सफलता देखकर अन्य किसान भी इसे अपनाने की सोच रहे हैं. यह साबित कर दिया है कि देशी नस्लों में अवसर छिपे हैं, बशर्ते उन्हें सही देखभाल और बाजारी कनेक्शन मिले. यदि सरकार और स्थानीय कृषि विभाग इस तरह की पहल को और प्रोत्साहित करें, तो यह एक बड़ा सुधार लेकर आएगा-किसानों की आजीविका मजबूत होगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.