कभी- कभी जिंदगी स्कूल के क्लासरूम में नहीं, खेत की मेड़ पर सिखाती है और कभी कभी एक आम आदमी, वाकई में, आमों वाला आदमी बन कर पूरी दुनिया में मशहूर हो जाता है. आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही शख्स की, जिसने न किताबों में पढ़ा, न लैब में सीखा. लेकिन पेड़ों की छांव में, मिट्टी की गंध में और प्रकृति की नब्ज़ में एक पूरी दुनिया समझ ली. उनका नाम है — कलीमुल्लाह खान (Kaleem Ullah Khan Indian horticulturist ). इस कहानी की स्टार्ट करने से पहले आपको बता दूं कि काहनी का फल आम जरूर है. पर कहानी आम नहीं है. क्या है पूरा किस्सा चलिए समझने की कोशिश करते हैं.
बचपन और शुरुआती संघर्ष
कलीमुल्लाह खान का बचपन किताबों के बजाय खेतों के बीच बीता. उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई, लेकिन पेड़ों से उनका लगाव गहरा होता गया. हर दिन वो बाग में घंटों बिताते, पेड़-पौधों को समझते, मिट्टी की खुशबू में खो जाते. शुरुआती दौर में संसाधन नहीं थे, ऐसे में लोग उन्हें ताने भी देते, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. धैर्य रखा, प्रकृति से सीखा और अपने काम से जवाब दिया. यहीं से उनका सफर हुआ, एक आम लड़के से ‘आमों वाले’ कलीमुल्लाह बनने का.
एक पेड़ पर 300 किस्मों के आम
1957 में कलीमुल्लाह खान ने अपनी सोच का बीज बोया और पहला पेड़ लगाया, जिसमें आम की सात किस्में उगाईं. लेकिन किस्मत का खेल देखिए बाढ़ आई और वो पेड़ बह गया. यहीं बहुत से लोग हार मान लेते, लेकिन वो पीछे नहीं हटे. उन्होंने मिट्टी से सीख ली और फिर से शुरू किया. इस बार सफर थोड़ा लंबा था, पर हौसला मजबूत था. इसबार उन्होंने ग्राफ्टिंग का प्लान किया. ये तकनीक पहले से मौजूद थी, लेकिन कलीमुल्लाह ने इसमें कुछ नया देखा. उन्होंने मेहनत की, प्रयोग किए और धीरे-धीरे इसे एक तरह का जादू बना दिया. 1987 आते- आते कहानी बदल चुकी थी. अब उनके पास 22 एकड़ जमीन थी, जहां वो लगातार नए प्रयोग कर रहे थे. हर दिन कुछ नया सीखते, कुछ नया उगाते.और आज उनका सबसे बड़ा कमाल है, एक ऐसा पेड़, जिस पर 300 किस्मों से अधिक आम उगते हैं. सोचिए, एक ही पेड़ की जड़, लेकिन स्वाद इतने कि हर आम की अपनी पहचान हो.
ग्राफ्टिंग का विज्ञान
अब आप सोच रहें होगे कि ग्राफ्टिंग? दरअसल पेड़ की एक शाखा को दूसरी जड़ से जोड़ना ही ग्राफ्टिंग है. अब आपके मन में आया होगा ये तो पुराना तरीका है. लेकिन इसमें उन्होंने वो करके दिखाया जो कला है, धैर्य है, वो बारीकी है और ये सिर्फ जुनून से आती है. जैसे संगीतकार सुर मिलाता है, वैसे ही कलीमुल्लाह किस्में मिलाते हैं. हर ग्राफ्ट एक रिश्ता पेड़ से है, प्रकृति से, और उस स्वाद से जो जुबान पर कहानी बनकर उतरता है.
विरासत को बेटे ना आगे बढ़ाया
आज कलीमुल्लाह खान 84 साल के हैं. शरीर अब थक गया है, लेकिन आंखों में वही चमक है. अब उनके बेटे नाजिमुल्लाह उनका काम संभाल रहे हैं. उन्होंने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और बाग को ही अपनी पढ़ाई बना लिया. हर दिन वो पेड़ों की देखभाल करते हैं और पानी कितना देना है, मौसम कैसा रहेगा, बीमारी से पेड़ को कैसे बचाना है , यही सब सीखते हैं. उनके लिए आम उगाना एक काम नहीं, पूजा की तरह है.
दिलचस्प हैं आमों के नाम
अब जरा सुनिए इन आमों के नाम- दशहरी कलीम, सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी, अनारकली, ऐश्वर्या राय. हर नाम के पीछे एक कहानी है. कोई प्रेरणा का स्रोत, कोई जमाने का सितारा और इन नामों से ज्यादा अनोखी हैं इनकी खुशबू, इनका स्वाद, इनकी पहचान. कुछ आम छोटे हैं, कुछ मीठे हैं, कुछ खट्टे हैं, कुछ बहुत ही नाज़ुक.
आम देखने आते हैं विदेशों से वैज्ञानिक
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसे किसान तो भारत में बहुत होंगे.हां, होंगे भी. लेकिन कितने किसान हैं, जिनका बाग विदेशों के वैज्ञानिक देखने आते हैं ये आपको नहीं पता होगा. मीडिया के एक रिपोर्ट्स के मुताबिक इनके आम देखने दुबई, ईरान, अमेरिका से लोग देखने आते हैं. कलीमुल्लाह खान सिर्फ़ एक इंसान नहीं हैं, वो एक मिसाल हैं. उन्होंने बिना लैब जाए, बिना अंग्रेजी बोले, मिट्टी से बड़े-बड़े सवालों के जवाब निकाले. जिसके लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित भी किया गाया.
एक मार्मिक समापन
‘द बेटर इंडिया’ के मुताबिक वो बताते हैं कि जब मेरा वक्त आएगा, मैं इन पेड़ों के नीचे आराम करना चाहूंगा. और ये लाइन किसी वैज्ञानिक के आखिरी शोध-पत्र से ज्यादा खूबसूरत है. क्योंकि यहां मिट्टी में मिठास है, मेहनत में विज्ञान है और एक आम आदमी की कहानी में असाधारणता है.