यह सिर्फ एक खबर नहीं है. यह एक हलक सुखाती चुप्पी है. खेतों में खून-पसीने से सींची गई उम्मीद जब मंडी के तराजू में तौली जाती है तो उसका भाव डेढ़ रुपये किलो निकलता है. ये कहानी है उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के मिश्रिख ब्लॉक के किसान अशोक मौर्य की. ज़रिगवां गांव के रहने वाले अशोक ने इस बार दस बीघा में टमाटर की खेती की. बीघा दर बीघा 35 हजार रुपये की लागत बैठी. फसल तो शानदार हुई, लेकिन जब मंडी पहुंचे, तो टमाटर की कीमत सुनकर होश उड़ गए, एक से डेढ़ रुपये किलो.
कर्ज लेकर की खेती, अब घाटे में
अशोक ने ‘किसान इंडिया’ से बातचीत में बताया की पिछले साल गोभी लगाई थी, बाढ़ में बर्बाद हो गई. इस बार उम्मीदों की फसल लगाई, पत्नी के गहने बैंक में गिरवीं रखे, दो लाख रुपये कर्ज लिया और 10 बीघा में टमाटर बोया. फसल आई तो अच्छी, लेकिन मंडी ने पीठ फेर ली. अब हालात ऐसे हैं कि तुड़ाई के भी पैसे नहीं निकल रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमारे गांव में बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती की जाती है,लेकिन बाजार भाव न औने पौने दामें पर गौशाला में बेचना पड़ रहा है. इस बार किसान कर्ज में डूब रहे हैं, ऐसे में कुछ समझ में नहीं आ रहा की आगे खेती का भविष्य कैसा होगा.
मंडी से सीधा गौशाला तक पहुंच गया टमाटर
अशोक ने बताया की मंडी में टमाटर कोई नहीं पूछ रहा. एक रुपये किलो के हिसाब से बेचने का मतलब है कि जितना लगे, उतना ही गड्ढा बनाओ और उसमें टमाटर डाल दो. ऐसे में कुछ किसान सीधे गौशाला को बेच रहे हैं. जरा सोचिए 35,000 रुपये प्रति बीघा की लागत और बिक्री हो रही है डेढ़ रुपये किलो में. यानी किसान सिर्फ फसल नहीं काट रहा, अपने सपनों की चिता भी उसी खेत में जला रहा है.
किसानों पर दोहरी मार
किसान नेता उमेश पांडे ने बताया की 55 लाख की आबादी वाले इस जिले में 70 फीसदी लोग खेती से जुड़े हैं, लेकिन यहां एक भी प्रसंस्करण इकाई नहीं है. उन्होंने सरकार से मांग की कि जिले में कैचअप और अन्य प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जाएं ताकि किसानों को नुकसान न हो. इसके साथ ही पांडे ने किसानों को नसीहत देते हुए कहा की फसल चुनने से पहले यह समझना जरूरी है कि बाजार में किस फसल की मांग है, ताकि फसल के अच्छे भाव मिल सकें और नुकसान से बचा जा सके
टमाटर का गढ़, लेकिन आज टूटे हैं दिल
उत्तर प्रदेश के सीतापुर, बाराबंकी, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी जैसे जिले टमाटर उत्पादन के लिए जाने जाते हैं. कभी यही टमाटर किसानों को मालामाल करता था. लेकिन इस बार लाल टमाटर ने किसानों के चेहरे की रंगत छीन ली है.