भारतीय वस्तुओं पर आज से अमेरिका लगाएगा 50 फीसदी टैरिफ, जानिए ग्रामीणों पर क्या पड़ेगा असर?
बुधवार से अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी तक का टैरिफ लगा दिया है. इसका सीधा असर उन उत्पादों पर होगा जो ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से जुड़ी मेहनत और कारीगरी से निकलते हैं जैसे कपड़ा, गहने, कालीन, फर्नीचर और झींगा मछली.
भारत के लिए अमेरिका लंबे समय से सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है. लेकिन अब ट्रंप सरकार के नए फैसले से भारत के निर्यातकों और किसानों दोनों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. बुधवार से अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी तक का टैरिफ लगा दिया है. इसका सीधा असर उन उत्पादों पर होगा जो ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से जुड़ी मेहनत और कारीगरी से निकलते हैं जैसे कपड़ा, गहने, कालीन, फर्नीचर और झींगा मछली.
किस पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?
भारत से अमेरिका को जाने वाले निर्यात में सबसे बड़ा हिस्सा टेक्सटाइल (कपड़ा), जेम्स एंड ज्वेलरी (गहने), कालीन, झींगा और कृषि आधारित प्रोसेस्ड फूड का है. ये सभी सेक्टर श्रम-प्रधान हैं, यानी इनमें लाखों मजदूर और कारीगर काम करते हैं.
- कपड़ा और परिधान उद्योग यूपी, बिहार, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में लाखों परिवारों की रोजी-रोटी का सहारा है.
- झींगा (श्रिम्प) उत्पादन और निर्यात पूर्वी भारत –ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए नकदी फसल जैसा है.
- कालीन और हैंडलूम उद्योग विशेषकर उत्तर प्रदेश के भदोही और वाराणसी में ग्रामीण कारीगरों पर टिका है.अब 50 फीसदी टैरिफ के बाद ये उत्पाद अमेरिकी बाजार में बहुत महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी बिक्री गिरना तय है.
कितना बड़ा नुकसान हो सकता है?
व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का अमेरिका को निर्यात 2025-26 में लगभग 40–45 फीसदी तक गिर सकता है. 2024-25 में जहां अमेरिका को करीब 87 अरब डॉलर का माल भेजा गया था, वहीं इस साल यह घटकर लगभग 50 अरब डॉलर तक रह सकता है.
सबसे ज्यादा चोट उन्हीं सेक्टरों को लगेगी जिनका सीधा रिश्ता खेत, खलिहान और छोटे उद्योगों से है. मतलब गांव का किसान, बुनकर और कारीगर सबसे पहले मार झेलेंगे.
कृषि और ग्रामीण रोजगार पर सीधा असर
भारतीय कृषि पहले से ही वैश्विक बाजार पर निर्भर हो रही है. मछली, झींगा, मसाले, प्रोसेस्ड फूड और चाय जैसे उत्पाद अमेरिका और यूरोप में बड़ी मात्रा में जाते हैं.
- झींगा निर्यात का लगभग 48 फीसदी हिस्सा सिर्फ अमेरिका से आता है. अब यह बाजार सिकुड़ेगा तो किसानों और मछुआरों की आमदनी पर सीधा असर पड़ेगा.
- प्रोसेस्ड फूड और मसाले भी अमेरिका में लोकप्रिय हैं, लेकिन महंगे टैरिफ के कारण मांग घट सकती है.
- कालीन और कपड़ा उद्योग से जुड़े कई ग्रामीण परिवार कर्ज और बेरोजगारी की स्थिति में पहुंच सकते हैं.
भारत के सामने चुनौती और विकल्प
सरकार के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है. सबसे पहले जरूरत है कि प्रभावित सेक्टरों को तुरंत राहत पैकेज और सब्सिडी दी जाए ताकि उत्पादन और रोजगार पर असर कम हो सके. ग्रामीण इलाकों में रोजगार बचाने के लिए टेक्सटाइल और हैंडलूम सेक्टर को अतिरिक्त सहायता देना बेहद जरूरी है, क्योंकि यही क्षेत्र लाखों परिवारों की आय का मुख्य स्रोत हैं.
झींगा और कृषि आधारित उत्पादों के निर्यातकों को भी अब नई मंडियों की तलाश करनी होगी जैसे यूरोप, खाड़ी देश और अन्य एशियाई बाजार ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो सके. साथ ही, भारत को फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर तेजी से काम करना होगा ताकि अमेरिकी नुकसान की भरपाई वैकल्पिक बाजारों से की जा सके. यह रणनीति न सिर्फ निर्यात को स्थिर रखेगी बल्कि किसानों और श्रमिकों की आय भी सुरक्षित करेगी.
आर्थिक दबाव हो सकता है
अमेरिका की इस नई टैरिफ नीति ने भारत के लाखों किसानों, मजदूरों और छोटे कारीगरों की चिंता बढ़ा दी है. सवाल सिर्फ निर्यात का नहीं है, बल्कि उन घरों की रसोई का है जो इन उद्योगों पर निर्भर हैं. अगर सरकार जल्द ठोस कदम नहीं उठाती तो आने वाले महीनों में ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी और आर्थिक दबाव और ज्यादा बढ़ सकता है.