बिहार के मिथिलांचल की धरती पर उगने वाला मखाना अब अंतरराष्ट्रीय पहचान पा चुका है. वर्षों से इसे ‘सादा लेकिन ताकतवर’ माना जाता रहा है, पर अब इसे एक नया सम्मान मिला है अंतरराष्ट्रीय एचएस कोड (HS Code). यह केवल एक कोड नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार में इसकी पहचान, सम्मान और संभावनाओं का रास्ता खोलने वाला एक अहम कदम है.
मिथिला का सुपरफूड
दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों के किसानों की मेहनत से उगाया जाने वाला मखाना अब एक अंतरराष्ट्रीय प्रोडक्ट बन चुका है. इसे सुपरफूड कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर, मैग्नीशियम, आयरन और कैल्शियम जैसे पोषक तत्व भरपूर होते हैं. व्रत से लेकर वेट लॉस तक हर जगह मखाना फिट बैठता है.
क्या है HS कोड और क्यों है जरूरी?
एचएस कोड (Harmonized System Code) एक तरह का डिजिटल पासपोर्ट है, जो किसी भी वस्तु को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए पहचान देता है. इसे वर्ल्ड कस्टम्स ऑर्गेनाइजेशन (WCO) द्वारा विकसित किया गया है. हर उत्पाद को एक खास कोड दिया जाता है जिससे उसे वैश्विक स्तर पर आसानी से ट्रैक और ट्रेड किया जा सके.
भारत में यह कोड 8 अंकों का होता है और इसका इस्तेमाल जीएसटी, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट और कस्टम ड्यूटी जैसे प्रोसेस में किया जाता है.
मखाने को कौन-कौन से कोड मिले हैं?
मखाना को तीन श्रेणियों में बांटकर तीन अलग-अलग एचएस कोड दिए गए हैं-
- पॉप्ड मखाना- HS Code: 20081921
- मखाना पाउडर या आटा- HS Code: 20081922
- अन्य मखाना उत्पाद- HS Code: 20081929
इससे अब पॉप्ड, ग्राउंड और प्रोसेस्ड मखाना दुनिया के बाजार में अपनी श्रेणी के हिसाब से बेचा और पहचाना जा सकेगा.
किसानों और उद्यमियों को मिलेगा बड़ा फायदा
एचएस कोड मिलने से मखाना उत्पादकों और निर्यातकों को सीधा लाभ होगा. अब मखाना एक मान्यता प्राप्त कोड के तहत अंतरराष्ट्रीय बाजार में जाएगा, जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ, टैक्स छूट और व्यापार की प्रक्रियाएं पहले से कहीं ज्यादा आसान हो जाएंगी. निर्यात में पारदर्शिता आएगी, सीमा शुल्क में दिक्कतें कम होंगी और अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को मखाने की गुणवत्ता और पहचान को लेकर भरोसा मिलेगा. साथ ही, इससे मखाने पर आधारित स्टार्टअप्स और प्रसंस्करण उद्योगों को भी नया जीवन मिलेगा, क्योंकि अब उन्हें वैश्विक मानकों के अनुरूप काम करने का अवसर और सरकारी सहयोग मिलेगा.
एक छोटे बीज से बड़ी उड़ान
मखाने को यह पहचान दिलाने में बिहार के किसानों, प्रोसेसर्स और स्टार्टअप्स की सालों की मेहनत छिपी है. अब जब यह छोटा सा बीज अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी जगह बना चुका है, तो इससे पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को एक नई रफ्तार मिलने की उम्मीद है.