कभी विदेशी बाजारों की पसंद थी महाराष्ट्र की किशमिश, अब कारोबार पर गहरा संकट-जानिए वजह
महाराष्ट्र में नासिक और सांगली को अंगूर और किशमिश का गढ़ माना जाता है. यहां के किसान सालों से इस फसल पर निर्भर हैं. लेकिन इस बार इन जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. स्थानीय किसानों के मुताबिक, बारिश ने उनकी सारी तैयारी चौपट कर दी.
महाराष्ट्र के हजारों किसानों के लिए यह साल उम्मीदों से ज्यादा चिंता लेकर आया है. जिन खेतों से कभी मीठी किशमिश निकलकर देश–विदेश के बाजारों तक पहुंचती थी, आज वही खेत मौसम की बेरुखी का दर्द झेल रहे हैं. बार-बार हुई बेमौसम बारिश ने अंगूर की खेती को ऐसा नुकसान पहुंचाया है कि उसका असर अब सीधे किशमिश उद्योग और निर्यात पर साफ दिखाई दे रहा है. अप्रैल से नवंबर 2025 के बीच महाराष्ट्र से किशमिश का निर्यात बेहद सीमित रह गया. महाराष्ट्र से महज 6,309 टन किशमिश का ही निर्यात हो सका है, जिससे किसान, व्यापारी और प्रोसेसिंग यूनिट सभी परेशान हैं.
बारिश ने बिगाड़ दिया किसानों का पूरा गणित
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, अंगूर की खेती बेहद संवेदनशील मानी जाती है. खासतौर पर सितंबर और अक्टूबर का महीना किसानों के लिए सबसे अहम होता है, क्योंकि इसी दौरान अंगूर पकते हैं और उन्हें सुखाकर किशमिश बनाई जाती है. लेकिन इस साल इसी समय लगातार बारिश होती रही. खेतों में नमी बढ़ गई, धूप नहीं मिली और अंगूर ठीक से सूख ही नहीं पाए. कई जगहों पर फसल सड़ गई तो कहीं फलों में फंगस लग गया. किसानों का कहना है कि अगर मौसम थोड़ा भी साथ देता, तो हालात इतने खराब नहीं होते.
नासिक और सांगली में हालात सबसे ज्यादा खराब
महाराष्ट्र में नासिक और सांगली को अंगूर और किशमिश का गढ़ माना जाता है. यहां के किसान सालों से इस फसल पर निर्भर हैं. लेकिन इस बार इन जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. स्थानीय किसानों के मुताबिक, बारिश ने उनकी सारी तैयारी चौपट कर दी. जिन अंगूरों से बढ़िया किशमिश बननी थी, वही या तो खराब हो गए या फिर इतनी कमजोर गुणवत्ता के रहे कि उन्हें निर्यात के लायक नहीं माना जा सका. कई किसानों को मजबूरी में अंगूर सस्ते दामों पर बेचने पड़े.
विदेशों से मांग, लेकिन माल नहीं
किशमिश की अंतरराष्ट्रीय मांग में कोई खास कमी नहीं आई है. रूस, सऊदी अरब, श्रीलंका और कुछ यूरोपीय देशों से ऑर्डर भी मिले, लेकिन असली समस्या आपूर्ति की रही. निर्यातकों के पास भेजने लायक अच्छी गुणवत्ता की किशमिश ही नहीं थी. प्रोसेसिंग यूनिट्स आधी क्षमता पर काम करती रहीं. एक निर्यातक ने बताया कि इस बार ऑर्डर होने के बावजूद कई खेप भेजनी ही नहीं पड़ी, क्योंकि माल उस स्तर का था ही नहीं.
घरेलू बाजार से टिकी हैं उम्मीदें
निर्यात में आई गिरावट ने किसानों की चिंता जरूर बढ़ा दी है, लेकिन घरेलू बाजार से उन्हें थोड़ी राहत की उम्मीद है. इस बार अंगूर और किशमिश की कुल पैदावार कम रहने वाली है. ऐसे में बाजार में इनकी उपलब्धता घटेगी और दाम बढ़ सकते हैं. अगर कीमतें मजबूत रहती हैं, तो किसानों को घरेलू बिक्री से कुछ नुकसान की भरपाई हो सकती है. हालांकि यह राहत कितनी होगी, यह आने वाले महीनों में साफ होगा.
जलवायु परिवर्तन बन रहा सबसे बड़ा खतरा
महाराष्ट्र का यह अनुभव एक बड़ी चेतावनी भी है. बागवानी की फसलें, खासकर अंगूर जैसी नकदी फसलें, मौसम के छोटे से बदलाव से भी बुरी तरह प्रभावित हो जाती हैं. लगातार बदलता मौसम, बेमौसम बारिश और तापमान में उतार-चढ़ाव किसानों के लिए नई चुनौती बन चुका है. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में किसानों को मौसम के जोखिम से निपटने के लिए नई तकनीक, बेहतर भंडारण और फसल प्रबंधन की ओर तेजी से बढ़ना होगा.