Sugar Production: देश में चालू पेराई सीजन 2025-26 के शुरुआती महीनों में चीनी उत्पादन ने नया रिकॉर्ड बनाया है. अक्टूबर से दिसंबर के बीच भारत की चीनी मिलों ने उम्मीद से कहीं ज्यादा उत्पादन किया है, जिससे सरकार और उद्योग जगत दोनों में उत्साह है. हालांकि, इस खुशी के बीच एक बड़ी चिंता भी उभरकर सामने आई है. बाजार में चीनी के दाम गिरने से सहकारी चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति दबाव में आ गई है और किसानों को समय पर भुगतान को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं.
अब तक 28 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा चीनी उत्पादन
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लिमिटेड (NFCSF) के आंकड़ें बताते हैं कि 15 दिसंबर तक देश की 479 चालू चीनी मिलों ने 77.90 लाख टन चीनी का उत्पादन कर लिया है. पिछले साल इसी अवधि में 473 मिलों ने 60.70 लाख टन चीनी बनाई थी. यानी इस बार उत्पादन में करीब 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसके साथ ही गन्ने की पेराई में भी तेज इजाफा हुआ है और अब तक 900.75 लाख टन गन्ना पेराई के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है, जो पिछले साल की तुलना में करीब 25 प्रतिशत ज्यादा है.
महाराष्ट्र, यूपी और कर्नाटक की बड़ी भूमिका
चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा योगदान महाराष्ट्र से आया है. देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में उत्पादन दोगुने से भी ज्यादा हो गया है. पिछले साल जहां यहां 16.80 लाख टन चीनी बनी थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 31.30 लाख टन तक पहुंच गया है. उत्तर प्रदेश में भी उत्पादन में सुधार देखने को मिला है. वहां उत्पादन 22.95 लाख टन से बढ़कर 25.05 लाख टन हो गया है. कर्नाटक में भी हालात बेहतर रहे और वहां 15.50 लाख टन चीनी का उत्पादन दर्ज किया गया, जो पिछले साल 13.50 लाख टन था.
उत्पादन बढ़ा, लेकिन दाम गिरे
इतने बड़े उत्पादन के बावजूद बाजार में चीनी के दाम मिलों के लिए राहत नहीं बन पाए हैं. सहकारी मिलों का कहना है कि सीजन की शुरुआत से अब तक चीनी के एक्स-मिल दाम करीब 2,300 रुपये प्रति टन गिर चुके हैं. फिलहाल बाजार में चीनी का औसत भाव लगभग 37,700 रुपये प्रति टन के आसपास चल रहा है. जबकि लागत लगातार बढ़ रही है. गन्ने की कीमत, मजदूरी, बिजली और परिवहन खर्च में इजाफा होने से मिलों पर आर्थिक दबाव बढ़ता जा रहा है.
न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाने की मांग
इसी दबाव को देखते हुए एनएफसीएसएफ ने केंद्र सरकार से न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाने की मांग की है. फेडरेशन का कहना है कि मौजूदा हालात में चीनी का न्यूनतम मूल्य कम से कम 41 रुपये प्रति किलो किया जाना चाहिए, ताकि मिलों को राहत मिल सके और किसानों का भुगतान समय पर हो सके. संगठन का मानना है कि अगर दाम नहीं बढ़ाए गए तो मिलों के लिए किसानों को गन्ने का पैसा देना मुश्किल हो जाएगा.
एथेनॉल और निर्यात से राहत की उम्मीद
सहकारी मिलों ने सरकार से एथेनॉल उत्पादन के लिए अतिरिक्त 5 लाख टन चीनी डायवर्ट करने की अनुमति देने की भी मांग की है. उनका कहना है कि इससे करीब 20 अरब रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है. फेडरेशन ने सरकार के 15 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि केवल निर्यात से नकदी संकट पूरी तरह दूर नहीं होगा.
किसानों के भुगतान को लेकर बढ़ी चिंता
इस सीजन में चीनी मिलों पर किसानों को गन्ने का भुगतान करने की जिम्मेदारी 1.30 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की है. वहीं, अतिरिक्त चीनी स्टॉक की वजह से करीब 28 हजार करोड़ रुपये की पूंजी फंसी रहने का खतरा भी बना हुआ है. ऐसे में मिलों का कहना है कि अगर समय रहते नीतिगत फैसले नहीं लिए गए, तो इसका सीधा असर किसानों की आमदनी पर पड़ सकता है.
सरकार से त्वरित फैसलों की उम्मीद
एनएफसीएसएफ के अध्यक्ष हर्षवर्धन पाटिल ने कहा कि सहकारी चीनी मिलें करोड़ों किसानों की मेहनत से चलती हैं. उत्पादन में आई तेजी को बनाए रखने और किसानों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार का मजबूत समर्थन जरूरी है. फेडरेशन ने प्रधानमंत्री और खाद्य मंत्री को अपने सुझाव भेजते हुए जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की मांग की है. अब देखना होगा कि सरकार इस बढ़ते उत्पादन और गिरती कीमतों के बीच संतुलन बनाने के लिए क्या फैसला लेती है.