Sugar Production: भारतीय शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) ने सरकार द्वारा शुगर सेक्टर को मिलने वाले एथेनॉल आवंटन में बड़ी कटौती पर गहरी चिंता जताई है. एसोसिएशन का कहना है कि अगर यह स्थिति बनी रही, तो डिस्टिलरीज (ethanol बनाने वाले संयंत्र) आधी क्षमता से भी कम पर चलेंगी, जिससे शुगर का उत्पादन और एथेनॉल दोनों पर असर पड़ेगा. 2025- 26 के एथेनॉल सप्लाई ईयर (ESY) के लिए सरकार ने शुगर आधारित फीडस्टॉक से सिर्फ 289 करोड़ लीटर एथेनॉल देने का फैसला किया है, जो कुल जरूरत का सिर्फ 28 फीसदी है. वहीं, अनाज आधारित एथेनॉल को 72 फीसदी (760 करोड़ लीटर) आवंटित किया गया है. यह फैसला उस समय आया है जब शुगर इंडस्ट्री ने एथेनॉल उत्पादन के लिए लगभग 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर 900 करोड़ लीटर की क्षमता तैयार की है.
निति आयोग के 2021 के बायोफ्यूल रोडमैप के मुताबिक, 2025 से 26 तक 20 फीसदी ब्लेंडिंग (E20) का लक्ष्य पाने के लिए एथेनॉल उत्पादन में शुगर सेक्टर की हिस्सेदारी लगभग 55 फीसदी यानी 550 करोड़ लीटर होनी चाहिए थी. लेकिन मौजूदा आवंटन से शुगर मिलों की डिस्टिलरी आधी क्षमता से भी कम पर चलेंगी, शुगर डायवर्जन घटेगा (लगभग 34 लाख टन कम) और अतिरिक्त शुगर स्टॉक जमा हो सकता है. इससे शुगर कंपनियों की नकदी प्रवाह (cash flow) प्रभावित होगा, जिससे गन्ना किसानों को भुगतान में देरी और बकाया (cane arrears) बढ़ने का खतरा है. खासकर तब, जब उद्योग पहले से ही कम मुनाफे और अधिक वर्किंग कैपिटल के दबाव में है.
एथेनॉल की कीमत और शुगर उद्योग की मुश्किलें
ISMA ने कहा है कि सरकार द्वारा तय की गई एथेनॉल की कीमतें अब लागत के अनुरूप नहीं हैं. 2022 से 23 से अब तक गन्ने का Fair and Remunerative Price (FRP) 16.5 फीसदी बढ़कर 305 रुपये से 355 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है, लेकिन एथेनॉल की खरीद कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई. वर्तमान में बी-हैवी शीरा (B-heavy molasses) से एथेनॉल बनाने की लागत 66.09 रुपये प्रति लीटर और गन्ने के रस से 70.70 रुपये प्रति लीटर है, जबकि सरकार इन्हें क्रमशः 60.73 रुपये और 65.61 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीद रही है. यानी हर लीटर पर लगभग 5 रुपये घाटा हो रहा है. इस वजह से गन्ने से एथेनॉल बनाना घाटे का सौदा बन गया है, जिससे मिलों की कमाई घट रही है और किसानों को समय पर भुगतान करने में दिक्कत हो रही है.
शुगर के MSP में तुरंत संशोधन की जरूरत
शुगर का MSP फरवरी 2019 से 31 रुपये प्रति किलो पर अटका हुआ है, जबकि इसी दौरान गन्ने का FRP 275 रुपये से बढ़कर 355 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. यानी लगभग 29 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इससे शुगर की उत्पादन लागत अब 40.24 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. लेकिन बाजार में शुगर के दाम लगातार गिर रहे हैं और दिसंबर 2025 तक यह उत्पादन लागत से भी नीचे जा सकते हैं.
इस गिरावट से मिलों की नकदी स्थिति और वर्किंग कैपिटल पर भारी दबाव पड़ेगा, जिससे किसानों को गन्ने का भुगतान देर से होगा और बकाया (cane arrears) बढ़ने का खतरा है. 2025- 26 के सीजन में देश में लगभग 285 लाख टन घरेलू खपत के मुकाबले अधिशेष उत्पादन होने की संभावना है, जबकि सिर्फ 34 लाख टन शुगर एथेनॉल में बदली जाएगी. इससे देश में चीनी का स्टॉक बढ़ेगा, दाम गिरेंगे और मिलों की आर्थिक स्थिति और कमजोर होगी.
ISMA ने कुछ अहम कदम उठाने की मांग की है
एथेनॉल आवंटन बढ़ाया जाए: दूसरे चक्र (Cycle 2) की निविदा में गन्ने के रस (Sugarcane Juice) और बी-हैवी शीरा (B-Heavy Molasses) से 150 करोड़ लीटर एथेनॉल आवंटित किया जाए.
एथेनॉल की खरीद कीमतों में बढ़ोतरी: सरकार द्वारा तय फार्मूले के अनुसार एथेनॉल की खरीद कीमतों में उचित संशोधन किया जाए, ताकि उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य में संतुलन बना रहे.
एथेनॉल ब्लेंडिंग को 20 फीसदी से आगे बढ़ाया जाए: एथेनॉल ब्लेंडिंग को E20 से अधिक बढ़ाकर E100 फ्यूल तक ले जाने की दिशा में कदम बढ़ाए जाएं. इसके साथ ही Flex-Fuel Vehicles (FFVs) और Strong Hybrid Electric Vehicles (SHEVs) को बढ़ावा दिया जाएय
शुगर का MSP संशोधित किया जाए: बढ़े हुए FRP और उत्पादन लागत के अनुरूप शुगर के न्यूनतम विक्रय मूल्य (MSP) में तुरंत संशोधन किया जाए.
शुगर एक्सपोर्ट पॉलिसी जल्द घोषित की जाए: 2025–26 सीजन के लिए निर्यात नीति (Export Policy) समय रहते घोषित की जाए, ताकि अधिशेष स्टॉक का प्रबंधन, रॉ शुगर उत्पादन की योजना और मिलों की liquidity बनी रहे.