Farming Tips: भारत में संतरे की खेती कई राज्यों के किसानों के लिए आमदनी का प्रमुख जरिया है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में यह फल “सुनहरे फलों का सोना” कहलाता है. लेकिन जब मेहनत से लहलहाते संतरे के बाग अचानक मुरझाने लगें, पत्तियों पर दाग दिखें या फल समय से पहले गिरने लगें तो यह किसी भी किसान के लिए चिंता की बात है. हाल के दिनों में कई इलाकों में झुलसा रोग (Citrus Blight) और साइट्रस कैंकर जैसे संक्रमण तेजी से फैल रहे हैं, जो संतरे की फसलों को भीतर से कमजोर कर रहे हैं.
झुलसा रोग क्या है और कैसे फैलता है
झुलसा रोग मुख्य रूप से फफूंद और बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है. इस बीमारी के प्रमुख कारणों में साइट्रस कैंकर, हुआंगलोंगबिंग (Citrus Greening) और अल्टरनेरिया अल्टरनाटा नामक फंगस शामिल हैं. यह संक्रमण अक्सर हवा, बरसात, कीटों या संक्रमित पौधों और औजारों के जरिए फैलता है. अगर किसान समय रहते पहचान न करें, तो यह बीमारी कुछ ही हफ्तों में पूरे बागान को अपनी चपेट में ले सकती है.
रोग के लक्षण
झुलसा रोग के शुरुआती लक्षण पत्तियों पर छोटे भूरे या काले दाग के रूप में दिखते हैं. धीरे-धीरे ये दाग बढ़कर गोलाकार घावों में बदल जाते हैं. साइट्रस कैंकर के मामले में पत्तियां मुड़ने लगती हैं, शाखाओं पर सूखापन आने लगता है और फल सतह पर छोटे-छोटे उभरे हुए दाने बन जाते हैं और पेड़ की नसें बंद हो जाती हैं, जिससे फल छोटे, टेढ़े-मेढ़े और स्वाद में कड़वे हो जाते हैं. इस वजह से बाजार में उनकी कीमत लगभग खत्म हो जाती है.
किसानों को हो रहा भारी नुकसान
झुलसा रोग केवल फलों की गुणवत्ता को नहीं बिगाड़ता, बल्कि उत्पादन पर भी गहरा असर डालता है. कई बार पूरे पेड़ कमजोर होकर सूखने लगते हैं. महाराष्ट्र के नागपुर और अमरावती जैसे क्षेत्रों में किसानों ने बताया कि संक्रमण के कारण उन्हें 30 से 40 फीसदी तक नुकसान झेलना पड़ा है. जो पेड़ पहले एक सीजन में 100 किलो तक फल देते थे, वे अब मुश्किल से आधा उत्पादन दे पा रहे हैं.
रोकथाम ही सबसे बेहतर उपाय
झुलसा रोग से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है समय पर पहचान और नियमित देखभाल. किसानों को चाहिए कि वे अपने बाग की समय-समय पर जांच करते रहें. अगर किसी पेड़ की पत्तियों या फलों पर दाग दिखें, तो तुरंत उस शाखा को काटकर नष्ट कर दें. बाग में साफ-सफाई बनाए रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि गंदगी और नमी संक्रमण को बढ़ावा देती है.
साथ ही, आजकल बाजार में रोग-प्रतिरोधी संतरे की किस्में भी उपलब्ध हैं, जैसे ‘Nagpur Improved’ और ‘Mosambi Hybrid’, जो कैंकर और फफूंद के असर को कम करती हैं. इसके अलावा किसान जैविक कीटनाशक या नीम-आधारित स्प्रे का प्रयोग करके फफूंद और कीटों को नियंत्रित कर सकते हैं.
सरकार और कृषि विशेषज्ञों की सलाह
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए. अधिक नमी और लगातार बारिश के मौसम में यह बीमारी तेजी से बढ़ती है, इसलिए जल निकासी की सही व्यवस्था जरूरी है. वहीं, कृषि विभाग भी किसानों को सलाह दे रहा है कि वे खेतों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैनकोजेब जैसे छिड़काव विशेषज्ञ की सलाह से करें और रोगग्रस्त पेड़ों को बाकी बाग से अलग रखें.