Kufri Chandramukhi Potato Variety: भारत में आलू एक ऐसी सब्जी है, जो हर खाने में जरूरी मानी जाती है. इसी वजह से इसकी खेती पूरे देश में बड़े पैमाने पर होती है. हालांकि, किसान ऐसे आलू पसंद करते हैं जो जल्दी तैयार हो जाए और बीमारियों से सुरक्षित हों. ‘कुफरी चंद्रमुखी’ ऐसी ही एक अगेती किस्म है, जिसे केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) ने तैयार किया है. यह किस्म जल्दी बाजार में बेचने के लिए बढ़िया है और कई खतरनाक बीमारियों से लड़ने की ताकत रखती है. इसलिए ये किसानों की पसंदीदा किस्म बन गई है.
कुफरी पुखराज की खासियत
आलू की अगेती किस्म कुफरी पुखराज की सबसे बड़ी खासियत है कि ये अन्य किस्मों के तुलना में केवल 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान जल्दी बाजार में आलू बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. बात करें इसकी पैदावार की तो किसान इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से औसतन लगभग 200 से 250 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं. देखने में इस किस्म के आलू गोल या अंडाकार होते हैं, जिनका छिलका सफेद और गूदा क्रीमी-सफेद होता है. झुलसा रोग से लड़ने की क्षमता रखने के कारण किसानों के बीच इस किस्म को काफी पसंद किया जाता है. इसके अलावा, अगर इस किस्म को कटाई के बाद सही तापमान पर स्टोर किया जाए तो ये लंबे समय तक सुरक्षित रहती है.
इस किस्म से किसानों का फायदा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुफरी पुखराज आलू की अगेती किस्म है. यानी इसकी कटाई आलू की सामान्य किस्मों के मुकाबले जल्दी हो जाती है. इस तरह इसकी खेती करने वाले किसान बाजार में अपनी फसल लेकर जल्दी पहुंच कर कमाई कर सकते हैं. साथ ही फसल जल्दी तैयार होने के कारण किसानों के खेत दूसरी फसल के लिए खाली हो जाएंगे. बता दें कि शुरुआती आलू बाजार में महंगे बिकते हैं, जिससे किसानों को अगेती किस्म की खेती से एक्स्ट्रा फायदा मिल सकता है.
ऐसे करें आलू की खेती
आलू की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है. बुवाई से पहले खेत को अच्छे से गहराई में जोतें, ताकि खरपतवार नष्ट हो सकें और मिट्टी भुरभुरी हो सके. इसेक बाद मिट्टी में 20 से 25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. बुवाई के लिए 30 से 40 ग्राम वजन वाले आलू के रोदमुक्त कंद लें और उनकी बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखें. किसानों को सलाह दी जाती है कि आलू की फसल को पहली सिंचाई बुवाई के करीब 20 दिन बाद दें और पूरे फसल चक्र में 6 से 8 बार हल्की सिंचाई करें.