Potato Farming: रबी सीजन की शुरुआत होने के साथ ही देशभर में किसानों ने आलू की बुवाई शुरू कर दी है. खासतौर पर हरियाणा में जहां लंबे समय से आलू की व्यावसायिक खेती की जा रही है. ऐसे में किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे वैज्ञानिक तरीकों से आलू की बुवाई करें ताकि उन्हें ज्यादा मुनाफा हो सके. बता दें कि आलू की बिजाई का समय आ गया है और हरियाणा में 34.72 हजार हेक्टेयर में आलू की खेती की जाती है, जिसकी कुल औसतन पैदावार करीब 80 लाख मीट्रिक टन है. हरियाणा के करनाल में बने महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय के सलाहकार डॉ. एसके अरोड़ा ने बताया कि आलू से ज्यादा से ज्यादा पैदावार लेने के लिए जरूरी है कि किसान इसकी उन्नत किस्मों की पहचान जरूर करें. हरियाणा में खासतौर पर कृषि विशेषज्ञ आलू की 13 किस्मों की खेती करने की सलाह देते हैं.
बीज और खेत की तैयार है जरूरी
आलू की खेती करने वाले किसानों को सलाह दी जाती है कि वे बुवाई के लिए आलू के स्वस्थ बीजों का चुनाव करें, खासतौर पर ऐसे बीजों को चुनें जो रोग मुक्त और शुद्ध हों. सरकार भी किसानों से यही अपील करती है कि वे बीज हमेशा किसी प्रमाणित संस्थान से ही खरीदें. बात करें बुवाई से पहले खेत तैयार करने की, तो आलू की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सही मानी जाती है ताकि खेतों में पानी न जमने पाए. क्योंकि खेतों में पानी जमा होने की स्थिति में फसल सड़ सकती है. किसानों को सलाह दी जाती है कि खेत की अच्छे से जुताई जरूर करें और उसके बाद खेत को समतल कर लें. अगर खेत में मिट्टी के ढेले बन जाएं तो गिरडी चलाकर उन्हें तोड़ दें. बता दें कि, 15 सितंबर से 15 अक्तूबर के बीच आलू बुआई का समय सबसे बेस्ट होता है.
कीट नियंत्रण के लिए अपनाएं फसल चक्र
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आलू की फसल से सबसे ज्यादा पैदावार उन खेतों से मिलती है जहां 2 से 3 सालों में आलू की खेती न की गई हो. इसलिए किसानों को भी यही सलाह दी जाती है कि अगर वे आलू की खेती से अच्छी पैदावार चाहते हैं तो फसल चक्र को अपनाना जरूरी है. इस तरह आलू की फसल में कीट और रोगों के लगने का खतरा कम हो जाएगा.
किस किस्म से कितनी पैदावार
हरियाणा के किसानों को विशेषज्ञ ये सलाह देते हैं कि वे आलू की उन्नत किस्मों का चुनाव करें. किसान चाहें तो आलू की 13 उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं.
- कुफरी जवाहर: ये आलू की अगेती किस्म है जो कि बुवाई के करीब 90 दिन बाद तैयार होती है और 100 से 105 क्विंटल तक पैदावार देती है.
- कुफरी सिंदूरी : ये आलू की पछेती किस्म है जो कि बुवाई के करीब 120 से 125 दिन बाद तैयार होती है और औसतन 120 क्विंटल तक पैदावार देती है.
- कुफरी चंद्रमुखी: ये आलू की अगेती किस्म है जो कि बुवाई के करीब 75 दिन भी 80 क्विंटल तक पैदावार देती है. अगर 90 दिन बाद खुदाई की जाए तो औसतन 100 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है.
- कुफरी बादशाह: आलू की ये किस्म कुफरी चंद्रमुखी के मुकाबले ज्यादा पैदावार देती है, जो कि बुवाई के 100 से 110 दिन बाद 120 क्विंटल तक पैदावार देती है.
- कुफरी सतलुज (जेआई. 5857) : ये आलू की अगेती मध्यम किस्म है, जो कि बुवाई के 110 दिन बाद खोदने पर 120 से 140 क्विंटल उपज दे सकती है.
- कुफरी पुष्कर : ये एक मध्यम किस्म है, जो कि बिजाई के 90 से 100 दिन बाद खुदाई करने पर 150 से 160 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है.
- कुफरी गौरव : आलू की ये किस्म बुवाई के करीब 90 से 110 दिन बाद औसतन 140 से 160 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है.
- कुफरी फ्राईसोना: ये एक मध्यम और समय से पकने बाली किस्म है, जो कि 90 दिन बाद खुदाई करने पर किसानों को करीब 140 क्विंटक तक पैदावार देती है.
- कुफरी पुखराज : ये आलू की अगेती किस्म है जो कि बुवाई के करीब 90 से 100 दिन के बाद खोदने पर 140 से 160 क्विंटल प्रति एकड़ उपज दे सकती है.
- कुफरी गंगा : ये एक मध्यम किस्म है, जो कि बिजाई के 90 से 100 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है और औसतन 140 से 160 क्विंटल पैदावार दे सकती है.
- कुफरी नीलकंठ : आलू की ये उन्नत किस्म बिजाई के 90 से 100 दिन बाद खोदने पर 140 से 152 क्विंटल तक पैदावार देती है.
- कुफरी लिमा : यह आलू की एक मध्यम किस्म है, जो कि समय पर बुवाई करने पर औसतन 120 से 140 क्विंटल उपज देती है.
- कुफरी थार-2: ये आलू की एक मध्यम किस्म है, जो पककर तैयार होने पर 130 से 140 क्विंटल तक पैदावार देती है.