ज्यादा बारिश से बर्बाद हो रहे केले, किसान परेशान- जानिए वजह और बचाव के तरीके

केला एक ऐसा फल है जो गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह फलता-फूलता है. लेकिन जब बारिश जरूरत से ज्यादा होने लगती है, तो खेतों में पानी भर जाता है और इससे कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

नई दिल्ली | Published: 29 May, 2025 | 03:03 PM

केला हमारे देश का एक प्रमुख फल है, जो न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होता है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका का सहारा भी है. लेकिन हाल के वर्षों में अत्यधिक बारिश की वजह से केले की फसल को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. खासकर वे इलाके जहां मानसून जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो जाता है, वहां केले की खेती खतरे में पड़ जाती है.

बारिश बनी संकट, फसल में घुसा रोग

केला एक ऐसा फल है जो गर्म और नम जलवायु में अच्छी तरह फलता-फूलता है. लेकिन जब बारिश जरूरत से ज्यादा होने लगती है, तो खेतों में पानी भर जाता है और इससे कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose) और पैनेमा डिजीज (Panama Disease) जैसे फंगल रोग गीले माहौल में तेजी से फैलते हैं. इससे केले के फलों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और उनका बाजार मूल्य गिर जाता है. फल जल्दी सड़ने लगता है और किसान को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

फल टूटते हैं, समय से पहले गिर जाते हैं

तेज बारिश से सिर्फ रोग ही नहीं, बल्कि केले के फल शारीरिक रूप से भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. भारी बारिश के कारण पौधों पर लगे फलों पर पानी की बौछारें जोर से गिरती हैं, जिससे फल झुक जाते हैं या टूटकर गिर जाते हैं. कई बार फल जमीन पर गिरते ही खराब हो जाते हैं, जिससे पैदावार में सीधा असर पड़ता है.

पकने की प्रक्रिया भी हो जाती है गड़बड़

केले के लिए पानी और धूप का संतुलन बेहद जरूरी होता है. ज्यादा पानी मिलने से केला समय से पहले पक जाता है या फिर असमान रूप से पकता है. इससे उसका स्वाद और बनावट दोनों बिगड़ जाते हैं. जल्दी पकने वाले फल ज्यादा देर तक टिकते नहीं और मंडी में बिक्री से पहले ही खराब हो जाते हैं.

किसान क्या कर सकते हैं?

इस समस्या से निपटने के लिए किसान कुछ सावधानियां अपना सकते हैं-

  • नाली और ड्रेनेज सिस्टम तैयार करें, ताकि खेतों में पानी जमा न हो.
  • पौधों की छंटाई (pruning) करते रहें ताकि हवा का संचार बना रहे और नमी कम हो.
  • फलों को सीधे बारिश से बचाने के लिए प्लास्टिक या केले के पत्तों से ढंकें.
  • समय-समय पर जैविक फफूंदनाशक का इस्तेमाल करें, ताकि बीमारियों पर काबू पाया जा सके.