Fish Disease : गांवों में तालाब और मछली पालन किसानों की कमाई का बड़ा सहारा बन चुके हैं. लेकिन हाल के दिनों में एक ऐसी बीमारी तेजी से बढ़ रही है, जिसे अगर समय पर नहीं पहचाना गया, तो पूरी मछलियों की खेप खराब हो सकती है. कई बार किसान को इसका अंदाजा भी नहीं होता और मछलियां धीरे-धीरे मरने लगती हैं. खासकर माइक्रोस्पोरीडिएसिस और मिक्सोस्पोरीडिएसिस जैसी बीमारियां, जो मछलियों में अंदर ही अंदर फैलती हैं और बाहर से बहुत देर बाद दिखाई देती हैं. यही वजह है कि इन बीमारियों को समझना और समय पर रोकथाम करना हर मत्स्य किसान के लिए जरूरी है.
मछलियों में माइक्रोस्पोरीडिएसिस क्या है?
माइक्रोस्पोरीडिएसिस एक ऐसी बीमारी है, जो खासकर मछलियों की छोटी अवस्था यानी अंगुलिका स्टेज में ज्यादा देखी जाती है. इस बीमारी में छोटे-छोटे कीट मछली की कोषिकाओं के अंदर जाकर रहने लगते हैं और वहां तंतु जैसी संरचना बना लेते हैं. इससे मछली के शरीर के ऊतकों को भारी नुकसान होता है. जब ये कीट तेजी से बढ़ते हैं, तो मछली का शरीर कमजोर होने लगता है और वह सही तरह से बढ़ नहीं पाती. यह बीमारी गंदे पानी, संक्रमित चारे, या पहले से बीमार मछलियों के साथ रखने पर फैलती है. तालाब में गंदगी जमा होने पर ये कीट आसानी से सक्रिय हो जाते हैं और अन्य मछलियों को भी संक्रमित कर देते हैं.
मिक्सोस्पोरीडिएसिस: मछली के गलफड़े और त्वचा पर सीधा असर
मिक्सोस्पोरीडिएसिस दूसरी गंभीर बीमारी है, जो मछलियों के गलफड़ों और त्वचा को नुकसान पहुंचाती है. इस बीमारी में मछली सही तरीके से सांस नहीं ले पाती क्योंकि उसके गलफड़े संक्रमित हो जाते हैं. कई बार मछली पानी की सतह पर बार-बार आने लगती है, जो इस बीमारी का बड़ा संकेत है. इस बीमारी में मछली की त्वचा पर धब्बे, खुरदरापन या सफेद दाने जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. बाहरी रूप से दिखने वाली बीमारी होने की वजह से इसका असर जल्दी नजर आता है और अगर तुरंत इलाज न किया जाए, तो मछली मर भी सकती है.
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इन बीमारियों की पहचान कैसे करें? किसान क्या देखें?
किसान अक्सर सामान्य लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ये छोटी-छोटी बातें ही बड़े नुकसान का कारण बन जाती हैं. मछलियों में इन बीमारियों के कुछ प्रमुख संकेत इस प्रकार हैं:-
- मछली ठीक से नहीं खाती
- शरीर पर सफेद दाने या खुरदरापन
- गलफड़े की लालिमा या सूजन
- तैरने की गति धीमी होना
- बार-बार पानी की सतह पर आना
- हल्की हरकत और कमजोरी
- शरीर का विकास रुक जाना
इनमें से कोई भी लक्षण दिखे, तो तुरंत तालाब की जांच और इलाज की जरूरत होती है.
इलाज मुश्किल क्यों है? दवाएं भी पूरी तरह असरदार नहीं
माइक्रोस्पोरीडिएसिस और मिक्सोस्पोरीडिएसिस दोनों ही ऐसी बीमारियां हैं जिनका कोई भी पक्का इलाज नहीं है. दवाएं होने के बावजूद ये पूरी तरह असर नहीं करतीं, क्योंकि कीट मछली के अंदर तक फैल चुके होते हैं. यही वजह है कि विशेषज्ञ सीधे सलाह देते हैं कि बीमार मछली को तालाब से बाहर निकाल दें, ताकि बाकी मछलियां सुरक्षित रहें. इलाज में देरी की वजह से बीमारी तेजी से फैलती है और नुकसान बढ़ जाता है. इसलिए किसानों को बीमारी दिखते ही तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.
रोकथाम ही है सबसे सुरक्षित तरीका-किसान क्या कदम उठाएं?
चूंकि इलाज पूरी तरह सफल नहीं है, इसलिए रोकथाम ही सबसे बेहतर उपाय है. किसान इन आसान कदमों से बीमारी को रोक सकते हैं:-
- तालाब के पानी को समय-समय पर साफ रखें
- बीज डालने से पहले तालाब में चूना और ब्लीचिंग पाउडर जरूर डालें
- नए मत्स्य बीज को पहले साफ पानी में धोकर तालाब में छोड़ें
- मृत मछलियों को तुरंत तालाब से बाहर निकालें
- गंदे पानी का बहाव तालाब में न आने दें
- ज्यादा भीड़ में मछलियां न रखें
- चारा हमेशा साफ और ताजा दें
इन उपायों से बीमारी फैलने का खतरा काफी कम हो जाता है, और मछलियां स्वस्थ रहती हैं.