गेहूं बुवाई से पहले किसान जरूर करें ये काम, बढ़ जाएगी पैदावार और बीमारियों का भी नहीं रहेगा डर

गेहूं की फसल में आमतौर पर कंडुआ, करनाल, झुलसा, पीला रतुआ, काला रतुआ, झोंका रोग और जड़ गलन जैसी छह तरह की बीमारियां लगती हैं. इसलिए किसानों को बुवाई करने से पहले एक्सपर्ट से सलाह जरूर लेनी चाहिए.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 11 Oct, 2025 | 05:10 PM

Wheat Farming: अक्टूबर महीने के आगमन के साथ ही रबी सीजन की शुरुआत हो गई है. इसके साथ ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में किसानों ने धान की कटाई शुरू कर दी है. वहीं, कई किसान गेहूं की बुवाई करने के लिए खेतों की जुताई भी कर रहे हैं. कई राज्यों में अगले हफ्ते से गेहूं की बोवाई भी शुरू हो जाएगी. लेकिन किसानों को गेहूं की बुवाई शुरू करने से पहले कृषि वैज्ञानिकों की सलाह का पालन जरूर करना चाहिए, नहीं तो बाद में फसल में कंडुआ और करनाल जैसी कई गंभीर बीमारियां भी लग सकती हैं. इसलिए किसान गेहूं या अन्य रबी फसल जैसे चना और मटर की बुवाई करने से लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर ले लें. इससे फसल में रोग लगने की संभावना कम हो जाती है और पैदावर भी बंपर होगी.

कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, धान की कटाई के साथ ही रबी सीजन की शुरुआत हो जाती है. गेहूं को रबी सीजन  का सबसे अहम फसल माना गया है. इसके साथ किसान सरसों, चना और मटर की भी खेती करते हैं, लेकिन गेहूं का रकबा सबसे ज्यादा होता है. इसलिए गेहूं उगाने वाले किसानों को अक्सर कीट और बीमारियों की चिंता  रहती है, क्योंकि इनका सीधा असर पैदावार पर पड़ता है.

गेहूं में लगती हैं ये बीमारियां

ऐसे में कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए बुवाई के समय कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. इससे न सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि फसल को कीट और रोगों से भी काफी हद तक बचाया जा सकता है. विशेषज्ञों की माने तो गेहूं की फसल में आमतौर पर कंडुआ, करनाल, झुलसा, पीला रतुआ, काला रतुआ, झोंका रोग और जड़ गलन जैसी छह तरह की बीमारियां लगती हैं. वहीं, इसमें गंधी बग, दीमक, अलसी की सुंडी , लाही और जसिड जैसे कीटों का भी खतरा ज्यादा रहता है. इसलिए किसानों के लिए जरूरी है कि वे बुवाई से पहले इन रोगों और कीटों की जानकारी जरूर लें और बीजों का उपचार जरूर करें.

ऐसे करें बीजों का उपचार

अगर आप बीज का जैविक तरीके से उपचार करना चाहते हैं तो पहले अच्छी गुणवत्ता वाले बीज चुनें. इसके बाद प्रति किलो बीज पर 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाकर बीज का शोधन करें. अगर आप रासायनिक तरीका अपनाना चाहते हैं तो बीजों को कारबेंडाजिम दवा से उपचारित कर सकते हैं. इसे सिर्फ 2 ग्राम प्रति किलो बीज की मात्रा में ही इस्तेमाल करें, जिससे फसल को फफूंद से बचाया जा सके. इसके अलावा, दीमक से सुरक्षा के लिए क्लोरीपायरीफोस दवा से भी बीज का शोधन किया जा सकता है.

मिट्टी का परीक्षण भी है बहुत जरूरी

गेहूं की फसल को कीट और रोगों से बचाने के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि केंद्र से संपर्क करें और कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर सही कीटनाशकों का इस्तेमाल करें. इससे फसल सुरक्षित रहेगी और बार-बार कीट नहीं लगेंगे. साथ ही किसान गेहूं की बुआई करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर कराएं. इससे मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों की कमी की जानकारी मिल जाएगी. ऐसे में किसानों के लिए मिट्टी के परीक्षण  के आधार पर फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना आसान हो जाएगा. इससे पैदावार में अच्छी होगी.

 

 

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Published: 11 Oct, 2025 | 05:06 PM

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