डिहवा गांव के किसान करते हैं जैविक खेती, कृषि विभाग ने गांव को नाम दिया ‘बायो विलेज’
गांव के अन्य बहुत से किसान हैं जो युवा किसान सभाजीत वर्मा की तर्ज पर ही खेती करते हैं. यहां के सभी किसान बायो खाद का इस्तेमाल कर दूसरे किसानों और गांवों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं.
उत्तर प्रदेश में एक ओर जहां लगातार किसानों के बीच यूरिया को लेकर हाहकार मचा हुआ है. वहीं प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां किसानों खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए यूरिया की जरूरत ही नहीं है. यहां के किसान लोबिया, करेला, बैंगन, भिंडी और धान की लहलहाती फसलों के बीच सुकून से रहते हैं. किसानों के इस सुकून का कारण है जैविक खेती. जिसके कारण न तो किसानों को महंगी केमिकल खाद की जरूरत ही नहीं होती. लिहाजा उनकी लागत में कमी आती है और मुनाफा ज्यादा होता है. बता दें कि, इस गांव के सभी किसानों का ये प्रण है कि वे जैविक खेती करेंगे.
कृषि विभाग ने नाम दिया ‘बायो विलेज’
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से साझा की गई जानकारी के अनुसार, सुलतानपुर जिले के दूबेपुर ब्लाक के डिहवा गांव में करीब 1200 की आबादी है और इनकी कमाई का मुख्य स्त्रोत खेती ही है. यहां के किसान सालभर अपने खेतों में फसलों उगाते हैं. सब्जी की फसलों के लिए केवल गोबर की खाद और धान-गेहूं के लिए कम से कम यूरिया का इस्तेमाल करते हैं. बता दें कि, यहां के किसान जैविक तरीकों से खेती करते हैं और इन किसानों ने अपना अलग ही अर्थशास्त्र बना रखा है. गांव के किसानों के इसी नवाचार के कारण कृषि विभाग ने माडल के तौर पर डिहवा गांव को ‘बायो विलेज’ घोषित कर दिया है.
बाजार में अच्छे दामों पर होती है बिक्री
गांव के एक युवा किसान सभाजीत वर्मा ने बताया कि 4 बीघे खेत में उन्होंने लोबिया, बैंगन, करेला व भिंडी की खेती की है. उन्होंने बताया कि ऑर्गेनिक उत्पाद होने के कारण मंडी में बिक्री हाथों-हाथ हो जाती है और दाम भी अच्छे मिलते हैं. उन्होंने बताया कि वे अपनी फसलों पर खाद के लिए केवल गोबर का इस्तेमाल करते हैं. वहीं पास में ही उन्होंने अपने 2.5 बीघे जमीन पर धान की फसल लगाई है, जिसमें उन्होंने केवल 1 बोरी यूरिया का इस्तेमाल किया है. उन्होंने बताया कि अपनी फसल में उन्होंने डाई और पोटैशियम का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया है.
सभी किसान एक ही तरह से करते हैं खेती
गांव के अन्य बहुत से किसान हैं जो युवा किसान सभाजीत वर्मा की तर्ज पर ही खेती करते हैं. यहां के सभी किसान बायो खाद का इस्तेमाल कर दूसरे किसानों और गांवों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं. ये किसान बताते हैं कि धान, गेहूं और गन्ना की फसल में केवल 30 फीसदी उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं. कीटों से फसल को बचाने के लिए खेत में लाइट ट्रैप लगाते हैं. उन्होंने बताया कि इस ट्रैप में रोशनी इतनी तेज होती है कि मवेशी और जंगली जानवर खेत के नजदीक भी नहीं आते हैं. जिला कृषि अधिकारी सदानंद चौधरी ने बताया कि जैवकि विधि से उत्पादन बेहतर होने के साथ-साथ कीट नियंत्रण भी हो रहा है.