विघ्नहर्ता यानी गणपति बप्पा आने वाले हैं. गणेश चतुर्थी को लेकर भक्तों के बीच काफी उत्साह है. 27 अगस्त 2025 को लोग अपने घरों में भगवान गणेश की एक से बढ़कर एक खूबसूरत मूर्तियों की स्थापना करेंगे. अगले 10 दिन तक जोर-शोर से गणेश उत्सव मनाया जाएगा. इस बीच पिछले कुछ सालों से भगवान गणेश की इको-फ्रेंडली मूर्तियां बाजार में बिकने लगी हैं. इस चलन की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि, विसर्जन के समय नदियों और समंदर में मूर्तियां घुल नहीं पाती थीं, जिससे प्रदूषण का खतरा बढ़ता था.
इको-फ्रेंडली मूर्तियां बनाने के पीछे का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण था. इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम में एक परिवार ने अनोखी पहल की और देशी गाय के गोबर से भगवान गणेश की मूर्तियां बनानी शुरू कीं. इन मूर्तियों की खासियत ये है कि विसर्जन के बाद ये मूर्तियां खाद का काम करती हैं.

27 अगस्त 2025 को होगी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना (Photo Credit- Canva)
3 साल पहले हुई शुरुआत
‘किसान इंडिया’ से बात करते हुए मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले में रहने वाले 26 साल के पंकज सोनी ने बताया कि गणेश विसर्जन के बाद नर्मदा नदी में मूर्तियां सही से विसर्जित नहीं हो पाती थीं. जिसके कारण पर्यावरण पर भी असर पड़ता था. पर्यावरण संरक्षण की सोच को ध्यान में रखते हुए 3 साल पहले उन्होंने अपने घर में ही पाली गई देशी गायों के गोबर से इको-फ्रेंडली मूर्तियां बनाने का विचार किया. उनकी इस सोच में उनके माता-पिता ने भी उनका साथ दिया और पूरा परिवार मिल कर देशी गाय के गोबर से मूर्तियां बनाता है. पंकज बताते हैं कि इस तरह गाय के गोबर का भी इस्तेमाल हो जाता है और पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियां भी बन जाती हैं जो कि लोगों को खूब पसंद भी आती हैं.
हिंदू सभ्यता से पहचान कराने का उद्देश्य
पकज सोनी ने आगे बातचीत में बताया कि हिंदू मान्यताओं में गोबर को शुद्द माना गया है. उसका एक महत्वपूर्ण स्थान है. लेकिन आजकल के लोग इन मान्यताओं और प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के बारे में नहीं जानते हैं. उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से मूर्तियां बनाने के पीछे का उद्देश्य यह भी थी कि लोग अपनी प्राचीन संस्कृति को जानें. पंकज ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने मूर्तियां बनाकर बेचने की शुरुआत की तो लोग उनकी मूर्तियां इसलिए नहीं खरीदते थे क्योंकि वे गोबर से बनाई गईं थीं. उन्होंने बताया जो पढ़े-लिखे लोग हैं वो मूर्तियां खरीदते थे. पंकज बताते हैं कि एक ये कारण भी है कि उन्होंने गोबर से मूर्तियां बनाना जारी रखा.
विसर्जन के बाद करती हैं खाद का काम
पंकज सोनी बताते हैं बाजार में आज भी बड़ी मात्रा में पीओपी यानी प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां बिकती है, जो कि पानी में सही से घुल नहीं पाती. साथ ही मिट्टी की भी मूर्तियां है जो पानी में घुलने में समय लेती हैं. ऐसे में वे बताते हैं कि गोबर से बनी बप्पा की मूर्ति की कुछ खासियत हैं, जैसे-
- 24 घंटे में पानी में पूरी तरह से घुल जाती है.
- नदी के पानी में घुलकर जीव-जंतुओं के खाने के तौर पर काम आती हैं.
- घर में विसर्जन किया जाए तो सूखने के बाद पौधों में खाद के रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं.

10 दिन बाद होता है गणेश विसर्जन (Photo Credit- Canva)
लोगों की पसंद बन रहीं गोबर की बनीं मूर्तियां
आज के समय में खाने-पीने के सामान से लेकर लोगों की जरूरत की हर एक चीज का उत्पादन इको-फ्रेंडली तरीके से हो रहा है. लोग भी ऐसे उत्पादों को खरीदना पसंद करते हैं. पंकज सोनी ने बताया कि लोगों को देशी गाय के गोबर से बनीं भगवान गणेश की मूर्तियां बहुत पसंद आ रही है. उन्होंने बताया कि उनकी इस पहल के बाद उनके कुछ जानने वाले भी हैं जिन्होंने अपने घर में पल रही गायों के गोबर से भगवान की मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया है.