गुजरात की मेहसाणा नस्ल की भैंस इन दिनों किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है. वजह साफ है-कम देखभाल में ज्यादा दूध और उससे भी ज्यादा मुनाफा. देशभर के डेयरी फार्मर्स और पशुपालक इसे कमाई की मशीन कहने लगे हैं. जो किसान अब तक सामान्य नस्ल की भैंसों से संतोष करते थे, वे अब मेहसाणा की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं.
7 से 12 लीटर तक रोजाना दूध, और वो भी मलाईदार!
मेहसाणा नस्ल की भैंसें प्रतिदिन लगभग 7 से 12 लीटर तक दूध देती हैं. खास बात यह है कि यदि इन्हें थोड़ी सी बेहतर देखभाल मिल जाए, तो यह मात्रा और बढ़ सकती है. इनके दूध में 6 फीसदी से 8 प्रतिशत तक फैट होता है, जो इसे और भी ज्यादा पोषक और गाढ़ा बनाता है. इस दूध से बना घी, दही और पनीर बेहद मलाईदार होता है, जिससे बाजार में इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है. यही कारण है कि डेयरी उद्योग वाले इसे हाथों-हाथ खरीदते हैं.
कम खर्च, कम झंझट, ज्यादा मुनाफा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस नस्ल को पालने के लिए किसानों को बहुत ज्यादा खर्च या जटिल व्यवस्था की जरूरत नहीं होती. सामान्य भोजन और नियमित साफ-सफाई से ही यह लंबे समय तक दूध देती रहती है. कई किसान कहते हैं कि यह नस्ल न केवल भरोसेमंद है, बल्कि हर मौसम में टिकाऊ और सहनशील भी है. यानि एक बार खरीदी गई मेहसाणा भैंस, लंबे समय तक बिना ज्यादा खर्च के फायदा देती है.
हर मौसम में ढलने वाली नस्ल
गर्मी हो या सर्दी, मेहसाणा भैंस को मौसम का खास असर नहीं होता. यह आसानी से हर वातावरण में खुद को एडजस्ट कर लेती है. इस कारण किसानों को मौसम बदलने पर इसकी देखभाल को लेकर ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ती. यह गुण इसे देश के किसी भी कोने में पालन के लिए उपयुक्त बनाता है. यही वजह है कि यह नस्ल अब गुजरात से निकलकर उत्तर भारत, मध्य भारत और दक्षिण भारत तक फैल चुकी है.
तेजी से बढ़ती लोकप्रियता, डेयरी किसानों की पहली पसंद
आजकल छोटे से लेकर बड़े डेयरी फार्मर तक मेहसाणा भैंस को पालने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. इसका कारण सिर्फ ज्यादा दूध नहीं, बल्कि इसमें कम रिस्क और ज्यादा रिटर्न है. इस नस्ल की मांग इतनी बढ़ गई है कि अब कई सरकारी और निजी फार्म भी इसे प्रमोट कर रहे हैं. पशुपालन विभाग की रिपोर्टों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में इस नस्ल की बिक्री और पालन में 20-30 फीसदी तक वृद्धि देखी गई है.