नाबार्ड की मदद से 167 गांवों के किसानों की सुधरी हालत, 400 तालाब और टैंक बनाकर जल संकट दूर कर रहे

Ambuja Foundation और NABARD ने हिमाचल के 167 गांवों में जल संरक्षण, टिकाऊ खेती और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया. किसानों की आमदनी बढ़ी, जल स्रोत पुनर्जीवित हुए और ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ी सफलता मिली.

Kisan India
नोएडा | Published: 25 Aug, 2025 | 08:20 PM

हिमाचल प्रदेश के दरलाघाट और नालागढ़ क्षेत्र के 167 गांवों में Ambuja Foundation और NABARD की साझेदारी से ग्रामीण जीवन में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. 2012 से शुरू हुए इन प्रयासों का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना, जल संकट को दूर करना और खेती को टिकाऊ बनाना है. अब तक 400 से अधिक तालाब, चेक डैम और जल संग्रहण टैंक बनाए जा चुके हैं, जिससे 9700 किसानों को लाभ हुआ है. इन योजनाओं ने खेती को लाभदायक बनाया और गांवों को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है.

जल संरक्षण से बदली गांवों की तस्वीर

Ambuja Foundation ने NABARD के साथ मिलकर जल संग्रहण और संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया. इसके तहत गांवों में 55 चेक डैम, 90 पर्कोलेशन तालाब, 183 वर्षा जल संचयन संरचनाएं (RRWHs), 152 फार्म तालाब, और 52 पानी के भंडारण टैंक बनाए गए. इससे 9055 ग्रामीण परिवारों को सीधा लाभ मिला और लगभग 41,571 लोगों को जल सुरक्षा सुनिश्चित की गई. यह बदलाव जल संकट झेल रहे गांवों के लिए किसी वरदान से कम नहीं रहा.

कूहल और बौरी से फिर बहा जीवनदायी पानी

पारंपरिक जल स्रोत जैसे कूहल (नहरें) और बौरी (झरने) समय के साथ सूखने लगे थे. फाउंडेशन ने 27 झरनों को फिर से जीवन दिया और पारंपरिक नहरों की मरम्मत कर सिंचाई को बेहतर किया. इससे खेतों को सालभर पानी मिलने लगा, जिससे फसलों की उपज भी बेहतर हुई. यह पहल ग्रामीणों के लिए जल संकट से राहत लेकर आई और परंपरागत संसाधनों का सम्मान भी किया गया.

खेती में आई नई जान, किसानों की आमदनी में जबरदस्त बढ़ोतरी

Ambuja Foundation की परियोजनाओं के चलते खेती में उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई. डेलॉइट द्वारा की गई एक स्वतंत्र रिपोर्ट में पाया गया कि:-

  • वाटरशेड प्रोजेक्ट्स के चलते किसानों की आमदनी में 59 फीसदी से 137 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई.
  • क्लाइमेट प्रूफिंग प्रोजेक्ट्स से यह बढ़ोतरी 54 प्रतिशत से 84 फीसदी तक रही.

किसान अब पारंपरिक फसलों की जगह सेब और ऑफ-सीजन सब्जियां उगाने लगे हैं, जिससे उन्हें ज्यादा मुनाफा हो रहा है.

महिलाओं को मिली पहचान, डेयरी और FPO से मिली नई राह

Ambuja Foundation ने NABARD के सहयोग से 3 फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (FPO) और 2 डेयरी कोऑपरेटिव बनाए. इन संगठनों में अब 1714 किसान सदस्य हैं, जिनमें 823 महिलाएं हैं. ये संगठन किसानों को दूध, डेयरी उत्पाद, पशु आहार और कृषि उपकरण बेचने में मदद करते हैं. 2015 में 60 सदस्य थे, जो अब बढ़कर 1714 हो गए हैं. इन संगठनों का 2023-24 में टर्नओवर 376.50 लाख रुपये पहुंच गया है, जो ग्रामीणों की आर्थिक मजबूती को दर्शाता है.

जलवायु अनुकूल खेती से मिला स्थायित्व

Ambuja Foundation ने किसानों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क्लाइमेट-रेजिलिएंट खेती सिखाई. इस पहल से मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे सूखे के समय भी फसल खराब नहीं होती. इसके अलावा, फसल विविधता को बढ़ावा देकर किसानों को उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर प्रोत्साहित किया गया.

सामुदायिक भागीदारी से संभव हुआ बड़ा बदलाव

Ambuja Foundation की CEO पर्ल तिवारी ने कहा कि, हमारी सफलता का सबसे बड़ा कारण है स्थानीय समुदाय की भागीदारी. जब लोग खुद फैसले लेते हैं और परियोजनाओं में भागीदार बनते हैं, तब परिणाम लंबे समय तक टिकते हैं. उनका मानना है कि जैसे-जैसे साझेदारों की संख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे बदलाव का असर भी गहराता है. यह मॉडल भारत के अन्य पहाड़ी राज्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है.

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Published: 25 Aug, 2025 | 08:20 PM

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