स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा- चावल की खेती वाली जमीन पर बढ़ रहा है जहर का असर, जानिए कारण?

लंबे समय तक आर्सेनिक का सेवन करने से फेफड़े, मूत्राशय और त्वचा का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा हृदय और मेटाबॉलिक रोगों का जोखिम भी बढ़ सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 25 Aug, 2025 | 03:28 PM

धान दुनिया भर में अरबों लोगों का मुख्य भोजन है. यह गर्म और पानी वाले खेतों में अच्छी तरह उगता है और जल्दी ऊर्जा देता है. लेकिन हाल ही में शोध में खुलासा हुआ है कि यही पानी भरे खेत आर्सेनिक यानी ‘जहर’ धान में पहुंचाने का कारण बन सकते हैं. लंबे समय तक आर्सेनिक का सेवन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है और इससे कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.

आर्सेनिक कैसे धान में पहुंचता है

अर्थ.कॉम की खबर के अनुसार, आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से मिट्टी और पानी में मौजूद होता है. जब खेत लंबे समय तक पानी में डूबे रहते हैं, तो मिट्टी में मौजूद ऑक्सीजन कम हो जाती है. इससे मिट्टी में बंधा आर्सेनिक मुक्त होकर धान की जड़ों तक पहुच जाता है. वैश्विक तापमान बढ़ने और हवा में CO की मात्रा बढ़ने से यह प्रक्रिया और तेज हो जाती है. मतलब जैसे-जैसे धरती गर्म होती है, धान के पौधे अधिक आर्सेनिक सोखते है.

शोध और निष्कर्ष

कोलंबिया यूनिवर्सिटी और चीन व अमेरिका के सहयोगियों ने करीब दस साल तक 28 अलग-अलग धान की किस्मों पर अध्ययन किया. इसमें Free-Air CO Enrichment (FACE) सिस्टम का इस्तेमाल हुआ, जिससे पौधों पर वास्तविक मौसम, मिट्टी और कीट-पौधों का असर देखा जा सके. शोध में पाया गया कि अगर तापमान 2°C बढ़ जाए और CO ज्यादा हो, तो धान में हानिकारक अनकार्बनिक आर्सेनिक का स्तर बढ़ जाएगा.

स्वास्थ्य पर असर

लंबे समय तक आर्सेनिक का सेवन करने से फेफड़े, मूत्राशय और त्वचा का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा हृदय और मेटाबॉलिक रोगों का जोखिम भी बढ़ सकता है. सिर्फ चीन में ही अनुमानित 19.3 मिलियन अतिरिक्त कैंसर के मामले आर्सेनिकयुक्त धान के कारण हो सकते हैं.

सबसे ज्यादा खतरा कहा है

जिन देशों में धान रोजाना खाया जाता है और खेत लंबे समय तक पानी में डूबे रहते हैं, वहा आर्सेनिक का खतरा सबसे अधिक है. विशेषकर दक्षिणी चीन, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश प्रभावित हैं.

खतरे को कम करने के उपाय

बेहतर किस्में उगाएं- ऐसे धान की किस्में चुनें जो कम आर्सेनिक अवशोषित करें.

पानी प्रबंधन करें- खेतों को लगातार डुबोए रखने के बजाय समय-समय पर सुखाना चाहिए.

फसल के बाद की सावधानी- धान की मिलिंग और पकाने के तरीके से आर्सेनिक को कम किया जा सकता है.

निगरानी और स्थानीय परीक्षण- हर क्षेत्र में आर्सेनिक का स्तर चेक करना आवश्यक है, ताकि एक समस्या के बदले दूसरी समस्या न आए.

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