नई टेक्निक को अपनाकर यूपी के गन्‍ना किसान ने कमाया 1 करोड़ का टर्नओवर 

सीतापुर के किसान हिमांशु की कोशिशें प्रयास क्षेत्र में कृषि पद्धतियों को बदलने पर केंद्रित हैं. उनका परिवार पिछले चार दशकों से ज्‍यादा समय से गन्‍ने की खेती में लगा है.

Kisan India
Noida | Published: 13 Mar, 2025 | 04:01 AM

आज हम आपको उत्‍तर प्रदेश के एक ऐसे किसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍होंने नई टेक्निक को अपनाकर गन्‍ने की खेती में करोड़ों का मुनाफा कमाया है. अब वह अपनी इस सफलता से आसपास के क्षेत्र में चर्चा का विषय बने हुए हैं. यह किसान हैं सीतापुर के हिमांशु नाथ सिंह जो यहां पर खेती के तरीकों में बदलाव करने के लिए काम कर रहे हैं. सीतापुर, यूपी का वह इलाका है जो काफी लंबे अर्से से गन्‍ने की खेती के लिए मशहूर है. गन्‍ने की खेती यहां की अर्थव्‍यवस्‍था और परंपरा का बड़ा हिस्‍सा रही है.

परिवार करता है गन्‍ने की खेती 

कृषि जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार हिमांशु की कोशिशें प्रयास क्षेत्र में कृषि पद्धतियों को बदलने पर केंद्रित हैं. उनका परिवार पिछले चार दशकों से ज्‍यादा समय से गन्‍ने की खेती में लगा है. इससे जमीन के लिए कड़ी मेहनत और समर्पण, खून में शामिल है. इसके बावजूद हिमांशु ने को अहसास हुआ कि उत्पादकता और फायदा दोनों को बढ़ाने के लिए, पारंपरिक खेती के तरीकों से आगे बढ़ना जरूरी था. 

दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ, उन्होंने आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाया, जिसमें जैविक उर्वरक, मशीनीकरण और वैज्ञानिक फसल प्रबंधन तकनीकों को एक जगह पर इकट्ठा करना था. उनका नजरिया सटीकता से जुड़ा था जिसमें समय पर बुवाई से लेकर उन्‍नत गन्‍ना किस्मों का चयन तक, सभी टिकाऊ खेती के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. यह स्वस्थ फसलों और बेहतर दीर्घकालिक उपज के लिए बेहद जरूरी हैं. 

गन्‍ने की नई किस्‍मों को बोया 

हिमांशु ने 0118, 14235, 16202 और 15466 जैसी गन्‍ने की किस्मों को उनकी हाई प्रोडक्‍टीविटी और बेहतरीन रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए चुना. फसलों को उचित अंतराल पर बोया जाता है, न कि बाकी पारंपरिक खेतों की तरह, जहां फसलों के बीच कोई सही अंतराल नहीं होता है. पंक्तियों के बीच कम से कम पांच फीट और कलियों के बीच एक फीट की दूरी होनी चाहिए. यह विधि अंकुरण दर को अधिकतम करती है और बीज की बर्बादी को 50 फीसदी तक रोकती है. यह विधि पौधों को पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा के बिना एक साथ बढ़ने में भी मदद करती है. 

फसल चक्र को अपनाया 

उनकी सफलता का एक और बड़ा कारण है, जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग.  जैविक खाद, गोबर की खाद और जीव अमृत जैसे जैव-उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और सिंथेटिक इनपुट पर निर्भरता को कम करने के लिए किया जाता है. वह गन्‍ने के साथ आलू, गोभी, फूलगोभी और सरसों उगाकर अंतर-फसल का अभ्यास करते हैं. यह फसल पद्धति मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाती है और आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करती है. 

खेती में मशीनरी का प्रयोग 

हिमांशु खेती में आधुनिक मशीनरी का प्रयोग भी करते हैं.  उनके खेतों को मिनी ट्रैक्टरों के साथ तैयार किया गया है. यह ट्रैक्टर मिट्टी प्रबंधन, निराई और मिट्टी चढ़ाने (फसल के आधार के चारों ओर मिट्टी का ढेर लगाना) को आसान बनाता है. उनके गन्‍ने के खेतों में पंक्तियों के बीच 5-फुट की दूरी है जो मिनी ट्रैक्टर के आने के लिए जगह देती है. मशीनीकरण सभी तरह की मजदूरी वाले काम को भी कम करता है. इससे कुल लागत में भी कमी आती है. खेती में समय भी नहीं लगता है और उत्पादकता भी बढ़ाती है. 

कमाए करोड़ों रुपये 

इन नई टेक्निक्‍स को अपनाने से उनके खेत पर उत्‍पादन भी बढ़ा है. हिमांशु ने 10 एकड़ जमीन पर गन्‍ना उगाया है. उन्होंने प्रति एकड़ 2470 क्विंटल गन्‍ने की कटाई की है और लागत-से-लाभ अनुपात बहुत अनुकूल है. अगर हिमांशु 1000 रुपये खर्च करते हैं तो उस पर उन्‍हें 600 रुपये का मुनाफा होता है. उनका हर साल 1 करोड़ रुपये से ज्‍यादा का कारोबार होता है. इस तरह से हिमांशु इस बात के प्रतीक बन गए हैं कि अगर सही रणनीति अपनाई जाए तो खेती टिकाऊ और बहुत मुनाफे वाली हो सकती है. 

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Published: 13 Mar, 2025 | 04:01 AM

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