हाइब्रिड धान की किस्मों से बढ़ रही कमाई, कम जमीन में रिकॉर्ड पैदावार

हाइब्रिड धान की किस्में कम जमीन में ज्यादा पैदावार देकर किसानों के लिए गेमचेंजर साबित हो रही हैं. ये किस्में सूखा, बाढ़ और खारीय मिट्टी जैसी चुनौतियों में भी बेहतर उत्पादन दे रही हैं.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 17 Jun, 2025 | 04:30 PM

बारिश सही हो या न हो, जमीन कम हो या संसाधन, अब किसान परेशान नहीं हैं. क्योंकि हाइब्रिड धान की किस्में वो ताकत बन गई हैं, जो कम खेत में भी ज्यादा पैदावार का भरोसा देती हैं. नई किस्में न सिर्फ सूखा और बाढ़ जैसे हालात झेल रही हैं, बल्कि सामान्य प्रजातियों से 15 से 20 फीसदी तक ज्यादा उत्पादन भी दे रही हैं. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में किसान अब संकर धान की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं.

चीन से शुरू हुई तकनीक

उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के मुताबिक, हाइब्रिड धान की खोज सबसे पहले 1964 में चीन में हुई थी. वहां से ये तकनीक भारत समेत बाकी एशियाई देशों में पहुंची. वहीं, भारत में अब तक करीब 103 लाख हेक्टेयर में संकर धान की खेती हो रही है. यही नहीं, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है. सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही खरीफ 2013-14 में 13 लाख हेक्टेयर में हाइब्रिड धान की खेती हुई थी.

किस्में जो बदल रही हैं किस्मत

उत्तर प्रदेश के लिए कई बेहतरीन संकर धान की किस्में मौजूद हैं. इनमें नरेन्द्र संकर धान-2, पंत संकर धान-1 और 2, प्रोएग्रो 6201, पीएचबी 71, पूसा आरएच-10 (सुगंधित), डीआरआरएच-3, यूएस-312 जैसी किस्में प्रमुख हैं. ये किस्में अलग-अलग जमीन और मौसम की स्थिति में भी बेहतर पैदावार देती हैं. इसके अलावा कई ऐसी भी किस्में हैं जो बाढ़, लवणीय (खारीय) मिट्टी और सूखे में भी अच्छा उत्पादन दे रही हैं.

हर साल बीज खरीदना क्यों जरूरी

संकर बीज दो अलग-अलग किस्मों के मेल से तैयार होते हैं. इन बीजों में पहली पीढ़ी की पैदावार सबसे ज्यादा होती है क्योंकि उनमें ‘हाइब्रिड विगर’ यानी ओज क्षमता सबसे अधिक होती है. लेकिन अगली पीढ़ी (दो बारा ) यूज करने पर इसकी क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं रह जाती, जिससे उत्पादन घट जाता है. इसलिए किसानों को हर साल नया बीज खरीदना पड़ता है, ताकि उन्हें ज्यादा लाभ मिले.

सीमित संसाधन में ज्यादा उपज

आज के दौर में जब सिंचाई, खाद और मेहनत की लागत बढ़ रही है, तब हाइब्रिड धान की किस्में किसानों के लिए फायदेमंद विकल्प बन चुकी हैं. कम जमीन में अच्छी पैदावार मिलने से छोटे और सीमांत किसान भी खेती में आत्मनिर्भर हो रहे हैं. इन किस्मों से न केवल मुनाफा बढ़ रहा है, बल्कि बाजार में अच्छी कीमत भी मिल रही है, जिससे किसानों की किस्मत सच में बदल रही है.

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