बकरीपालन की दुनिया में अब तकनीक ने ऐसा कमाल कर दिखाया है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी मुश्किल थी. अब एक बकरा अकेले 20 बकरियों को गाभिन कर सकता है, वो भी बिना शारीरिक संपर्क के. ये संभव हुआ है कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) तकनीक से, जो अब गाय-भैंस के बाद बकरियों में भी तेजी से अपनाई जा रही है.
AI तकनीक से बकरीपालन में बदलाव
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में दी गई जानकारी के मुताबिक बकरीपालन भारत में गरीब और सीमांत किसानों के लिए आय का एक मजबूत जरिया बनता जा रहा है. लेकिन पारंपरिक तरीके से बकरी प्रजनन की अपनी सीमाएं हैं. इन्हीं सीमाओं को तोड़ने आई है कृत्रिम गर्भाधान (AI – Artificial Insemination) तकनीक, जो अब बकरीपालन में नई क्रांति की शुरुआत कर रही है.
गाय और भैंसों में तो यह तकनीक कई वर्षों से सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रही है, लेकिन बकरियों में इसका प्रयोग अभी कुछ चुनिंदा सरकारी और गैर-सरकारी परियोजनाओं तक सीमित है. हालांकि, सरकार इस तकनीक को बढ़ावा दे रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में यह तकनीक गांव-गांव तक पहुंचेगी और बकरी की नस्ल सुधार में अहम भूमिका निभाएगी.
क्या है इस तकनीक का फायदा
इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि एक बार में एक बकरे से लिया गया वीर्य 15 से 20 बकरियों तक का गर्भाधान कर सकता है. यानी कम संसाधनों में ज्यादा उत्पादन. इसके अलावा वीर्य को हिमीकृत (फ्रोज़न) करके सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है. अगर कोई उच्च नस्ल का बकरा मर भी जाए तो भी उसका वीर्य संरक्षित रह सकता है और आगे उपयोग में लाया जा सकता है.
बीमारी की रोकथाम भी संभव
प्राकृतिक गर्भाधान में कई बार बकरे से बकरी में बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है. लेकिन कृत्रिम गर्भाधान में उपयोग से पहले बकरे की संपूर्ण जांच होती है. इस वजह से केवल स्वस्थ और प्रमाणित वीर्य का ही इस्तेमाल होता है, जिससे बीमारी की गुंजाइश न के बराबर हो जाती है.
ऊंचाई का फर्क अब नहीं बनेगा बाधा
अक्सर अलग-अलग नस्लों के बकरे और बकरी की ऊंचाई में फर्क होने से प्राकृतिक गर्भाधान संभव नहीं हो पाता था. लेकिन इस तकनीक में शारीरिक बनावट कोई रुकावट नहीं बनती.
नतीजा साफ है कि जहां पहले सीमित संसाधन और पारंपरिक तरीकों से बकरीपालन चलता था, अब वैज्ञानिक तकनीक की मदद से ज्यादा उत्पादन, बेहतर नस्ल और ज्यादा मुनाफा संभव हो रहा है. अब जरूरत है इस तकनीक को गांव-गांव, पशुपालक से पशुपालक तक पहुंचाने की. तभी बकरीपालन वाकई एक लाभकारी व्यवसाय बन सकेगा.