ऋतुओं के साथ बदल जाता है पशुओं का हीट चक्र, जानिए कैसे कराएं सही समय पर गर्भाधान

मौसम और दिन की अवधि का गहरा असर होता है पशुओं के मद चक्र पर, जिससे सर्दियों में उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है. सही समय पर गर्भाधान से न केवल प्रजनन दर सुधरती है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है.

नोएडा | Updated On: 22 May, 2025 | 02:55 PM

पशुपालन में प्रजनन की सफलता सीधे तौर पर पशुओं के मद चक्र (हीट साइकिल) पर निर्भर करती है. हालांकि गाय और भैंस सालभर में किसी भी समय हीट में आ सकती हैं. लेकिन वैज्ञानिक आंकड़ों और पशुपालकों के अनुभव से साफ होता है कि ऋतुओं के बदलते ही पशुओं के हीट में आने की प्रवृत्ति भी बदल जाती है. खासकर भैंसों पर दिन की अवधि और मौसमी बदलावों का गहरा असर पड़ता है. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में साल 1990 से 2000 तक हुए विश्लेषण से यह बात साफ हुई कि कौन से महीने प्रजनन के लिए सबसे अनुकूल हैं और किस समय गर्भाधान से सफलता की संभावना सबसे अधिक होती है.

गायों के लिए प्रजनन का सबसे कमजोर वक्त

पशुपालन विभाग हिमाचल प्रदेश के मुताबिक गायों और भैंसों के मद चक्र पर मौसम का सीधा प्रभाव देखा गया है. आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में सबसे अधिक 11.1 फीसदी गायें हीट में पाई गईं, जबकि अक्टूबर में सबसे कम 6.71 फीसदी. वहीं, गायों के लिए सितंबर से नवंबर का त्रैमासीय (सितंबर-अक्टूबर -नवंबर ) समय प्रजनन के लिहाज से सबसे कमजोर रहा, इन महीनों में सिर्फ 21.9 फीसदी गायें हीट में आईं. दूसरी ओर, भैंसों में गर्मियों के मुकाबले सर्दियों के महीनों अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में सबसे अधिक 44.13 फीसदी मद में आने की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं.

सर्दियों में भैंस जल्दी होती हैं गाभिन

भैंसों की प्रेग्नेंसी यानी गर्भधारण पर मौसम का असर पड़ता है. मार्च से अगस्त तक, जब दिन लंबे होते हैं और गर्मी रहती है, तब सिर्फ 26.17 फीसदी भैंसें ही प्रजनन अवस्था में आती हैं. लेकिन सितंबर से फरवरी के बीच, जब दिन छोटे होते हैं और मौसम ठंडा होता है, तब 73.83 फीसदी भैंसें हीट में आती हैं यानी प्रेग्नेंट होने के लिए तैयार होती हैं. इसका मतलब यह है कि सर्दियों का मौसम भैंसों के गर्भाधान के लिए सबसे अच्छा होता है. इस समय अगर कृत्रिम गर्भाधान (AI) कराया जाए तो सफलता के चांस अधिक होते हैं. इसलिए पशुपालकों को यही समय चुनना चाहिए ताकि लागत कम हो और भैंस जल्दी गाभिन हो सके.

मद की पहचान से तय होता है गर्भाधान का समय

मद की स्थिति को तीन चरणों में बांटा गया है. प्रारंभिक, मध्य और अंतिम. प्रारंभिक अवस्था में पशु की भूख कम हो जाती है, दूध उत्पादन घटता है और बेचैनी दिखती है. मध्य अवस्था सबसे महत्वपूर्ण होती है, जब पशु के प्रजनन अंग से गाढ़ा श्लेष्मा निकलता है और वह अन्य पशुओं को चढ़ने या खुद चढ़ने की क्रिया में दिखता है. यही समय कृत्रिम गर्भाधान के लिए सबसे उपयुक्त होता है. वहीं अंतिम अवस्था में सब कुछ नॉर्मल हो जाता है.

वैज्ञानिक प्रबंधन से बढ़ाई जा सकती है प्रजनन सफलता

ऋतुओं के इस प्रभाव को समझते हुए पशुपालकों को चाहिए कि वे वैज्ञानिक पशु प्रबंधन अपनाएं. कृत्रिम गर्भाधान का समय मौसम और मद की मध्य अवस्था के अनुसार तय करें. साथ ही, चारे, साफ-सफाई और पशु के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देकर ऋतुओं के कुप्रभाव को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. सही समय पर गर्भाधान न केवल प्रजनन दर बढ़ाता है बल्कि आर्थिक नुकसान से भी बचाता है.

Published: 22 May, 2025 | 02:55 PM