नेतागिरी छोड़ फुलटाइम किसानी करने लगे रिंकू, मॉडर्न तरीके अपनाकर अच्छी उपज से कर रहे कमाई

बस्ती जिले के महसो गांव के रिंकू सोनकर ने राजनीति छोड़ खेती को अपनाया और ऑर्गेनिक सब्जियों की खेती से हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं. पढ़िए रिंकू की कहानी.

लखनऊ | Updated On: 8 Jun, 2025 | 07:45 PM

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के महसो गांव के रहने वाले रिंकू सोनकर ने जब राजनीति में किस्मत आजमाई तो बहुत उम्मीदें थीं.  2021 में जिला पंचायत का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. दो साल तक क्षेत्र में सक्रिय रहे, लोगों के सुख-दुख में शामिल होते रहे; लेकिन जब खर्च उठाना मुश्किल होने लगा तो राजनीति को अलविदा कह खेती की दुनिया में कदम रखा. आज रिंकू सिर्फ खेती कर लाखों की कमाई ही नहीं कर रहे, बल्कि एक नई सोच के साथ समाज में बदलाव भी ला रहे हैं. यह है एक ऐसे किसान की कहानी, जिसने राजनीति छोड़ जमीन से जुड़े रहना चुना.

राजनीति छोड़ खेती का फैसला

रिंकू सोनकर 2021 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़े थे. हार के बाद भी उन्होंने दो साल तक इलाके में सामाजिक गतिविधियां जारी रखीं. लेकिन आर्थिक तंगी ने उन्हें झकझोर दिया. फिर उन्होंने अपने पिता नन्नू सोनकर से सलाह की और 2023 में एक एकड़ में सब्जी की खेती शुरू कर दी. शुरुआत में लौकी, भिंडी और परवल लगाई. जब फसल बाजार में बिकी और अच्छा रिटर्न मिला तो रिंकू का मन खेती में रम गया.

ऑर्गेनिक खेती से लाखों की कमाई

रिंकू ने गांव के कुछ किसानों से 2 एकड़ खेत किराए पर लिया और आलू, धनिया, मिर्च, साग और टमाटर उगाना शुरू किया. पहले ही साल करीब 4 लाख रुपये का मुनाफा हुआ. रिंकू के मुताबिक अब हर साल खेती से 5 से 6 लाख रुपये बच जाते हैं. इसी कमाई से उन्होंने न सिर्फ पक्का घर बनवाया, बल्कि शादी की और मोटरसाइकिल भी खरीदी. उनका अगला लक्ष्य है कि खेती को और बड़े स्तर पर ले जाने का.

नेता बनना अब सपना नहीं, खेती ही असली सेवा

रिंकू सोनकर कहते हैं कि नेता वही बने, जिसका परिवार मजबूत हो और जेब में पैसों की कमी न हो. आजकल राजनीति में रहना आसान नहीं है. हर वक्त जेब में दो-चार हजार रुपये, साथ में गाड़ी, अच्छा मोबाइल और चार समर्थक चाहिए होते हैं. डीजल-पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं, ऐसे में बिना साधन राजनीति करना नामुमकिन है.

रिंकू आगे कहते हैं कि अब मन नहीं करता राजनीति में लौटने का. खेती में जो सम्मान, सुकून और आमदनी मिली, वो कहीं और नहीं. माता-पिता बुजुर्ग हो चले हैं, उनकी सेवा भी करनी है और खेती को और बड़ा करना है. यही मेरा रास्ता है, यही मेरी जिंदगी.

परिवार बन गया मजबूत सहारा

रिंकू की खेती में पूरा परिवार साथ देता है. मां मालती देवी और पिता नन्नू सोनकर भी खेत में काम करते हैं और जब व्यापारी सब्जी खरीदने आते हैं, तो वह तौलने में मदद करते हैं. पत्नी श्याम दुलारी जो एमए तक पढ़ी हैं, वो भी खेती में पूरा साथ देती हैं. रिंकू बताते हैं कि बिना परिवार के सहयोग के इतना मुनाफा मुमकिन नहीं था.

बिना दवा वाली सब्जी की है खास पहचान

रिंकू जैविक खेती करते हैं, यानि कोई भी रासायनिक दवा या खाद का इस्तेमाल नहीं करते. उनका मानना है कि भले ही उत्पादन थोड़ा कम हो, लेकिन सब्जियां सेहतमंद होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि इस साल 6 कुंतल से ज्यादा लौकी बेची है और 2 कुंतल और बिकेगा. बिना दवा की लौकी 300 से 400 ग्राम की होती है जबकि दवा से वह 1 किलो तक की हो सकती है, लेकिन उसका स्वाद और सेहत पर असर खराब होता है.

Uttar Pradesh Successful Farmer Rinku Sonkar

Uttar Pradesh Successful Farmer Rinku Sonkar

खेत से दुकान तक, सब खुद करते हैं

बीज उन्हें बाजार में सस्ते दामों पर मिल जाते हैं, लेकिन अब वह खुद भी बीज बेचने लगे हैं. खेत में जो सब्जी बच जाती है, उसके लिए रिंकू ने एक छोटी दुकान खोल रखी है.वहीं, धान और गेहूं भी दो बीघे खेत में उगाते हैं जिससे सालभर का राशन घर में ही हो जाता है.

युवाओं को देते हैं खेती के टिप्स

रिंकू बताते हैं कि गांव के युवा खेती को लेकर सलाह लेने आते हैं. कई बार लोग पूछते हैं कि इसमें बहुत मेहनत है, तब वह उन्हें समझाते हैं कि मेहनत के साथ सही तरीका हो तो पैसा भी है और सम्मान भी.

खेती के साथ ऑनलाइन कारोबार भी

खेती के साथ-साथ रिंकू ने अपनी पत्नी के सुझाव पर ‘मीशो’ की फ्रेंचाइजी भी ली है. दोपहर में जब खेती का काम कम होता है, तब वे ऑनलाइन ऑर्डर देखते हैं और बिजनेस करते हैं. इससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है.

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Published: 8 Jun, 2025 | 06:20 PM