Bhadawari Buffalo: देसी नस्ल भदावरी भैंस.. घी उत्पादन में अव्वल, दूध में होता है सबसे ज्यादा बटर फैट

भदावरी भैंस भारत की देसी नस्ल है, जो घीयुक्त दूध के लिए प्रसिद्ध है. कम चारे में भी यह उच्च फैट वाला दूध देती है. सुंदर बनावट, सहनशक्ति और गुणवत्ता के कारण किसानों में बेहद लोकप्रिय है.

नोएडा | Updated On: 8 Aug, 2025 | 07:56 PM

भारत की देसी नस्लों में भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) एक अनमोल रत्न की तरह है. इसे घी देने वाली भैंस के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसका दूध बटर फैट से भरपूर होता है, जिससे मक्खन और घी बनाना बेहद आसान और फायदेमंद हो जाता है. इसकी सुंदर बनावट, सहनशक्ति और कम चारे में ज़्यादा गुणवत्ता वाला दूध देने की क्षमता ने इसे किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है.

कहां पाई जाती है भदावरी भैंस?

भदावरी भैंस का नाम भदावर रियासत से जुड़ा है, जो आज के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं में फैली हुई थी. यह नस्ल विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के आगरा, एटावा और मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना जिलों में पाई जाती है. यमुना, चंबल और उटंगन नदियों की घाटियों में इसकी संख्या सबसे ज्यादा देखी जाती है, जहां का मौसम और चारा इसकी जीवनशैली के लिए उपयुक्त होता है.

दूध में घी की गारंटी

भदावरी भैंस के दूध की खासियत इसकी वसा (बटर फैट) है. आम तौर पर इसके दूध में 7.9 फीसदी से लेकर 12 प्रतिशत तक फैट पाया गया है, जो अन्य किसी भी भारतीय भैंस नस्ल से अधिक है. यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह नस्ल घी और मक्खन बनाने के लिए पहली पसंद मानी जाती है. हालांकि यह मात्रा में कुछ कम दूध देती है, लेकिन गुणवत्ता में यह अव्वल है.

पहचानें इस देसी रानी को

भदावरी भैंस देखने में बेहद सुंदर होती है. इसका रंग गहरा तांबे जैसा होता है और टांगें गेहूं की भूसी जैसी हल्की होती हैं. इसकी खास पहचान इसके गले के नीचे की दो सफेद पट्टियां होती हैं जिन्हें स्थानीय लोग “कंठी” कहते हैं. इसके सींग पीछे की ओर झुकते हुए ऊपर की ओर मुड़ते हैं। शरीर मध्यम आकार का लेकिन मजबूत और सधा हुआ होता है.

दूध उत्पादन क्षमता

एनडीडीबी (NDDB) के अनुसार, एक भदावरी भैंस एक ब्यांत में औसतन 1200 से 1400 लीटर दूध देती है. पहली बार यह 44 महीनों की उम्र में ब्याती है और उसके बाद हर 16 से 18 महीने में फिर से दूध देना शुरू करती है. दूध की मात्रा भले ही अन्य नस्लों से थोड़ी कम हो, लेकिन उसका फैट कंटेंट इसे बाजार में ज्यादा मूल्य देता है.

कैसे होता है पालन-पोषण?

भदावरी भैंसों को सेमी-इंटेंसिव पद्धति के तहत पाला जाता है. किसान इन्हें खुले और बंद दोनों तरह के बाड़ों में रखते हैं. इन्हें उबला या भीगा हुआ मक्का, जौ, गेहूं और चोकर खिलाया जाता है. ये भैंसें कठोर वातावरण और कम गुणवत्ता वाले चारे में भी आराम से रह सकती हैं और दूध देती हैं. यही विशेषता इन्हें किसानों के लिए कम लागत में लाभदायक बनाती है.

संरक्षण की जरूरत क्यों?

आज भदावरी भैंस की संख्या बहुत कम हो गई है और यह नस्ल अब सीमित इलाकों तक सिमट चुकी है. लगातार क्रॉस ब्रीडिंग और आधुनिक नस्लों की तरफ झुकाव ने इस अनमोल देसी नस्ल को विलुप्ति की ओर धकेल दिया है. इसके संरक्षण के लिए सरकार और किसानों दोनों को मिलकर प्रयास करने की ज़रूरत है ताकि “घी देने वाली भैंस” आने वाली पीढ़ियों तक बनी रह सके.

Published: 8 Aug, 2025 | 09:00 PM

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