USSEC ने जताई नाराजगी: भारत अफ्रीका से सोयाबीन खरीदता है, तो अमेरिका से दूरी क्यों?

भारत की दुविधा यह है कि अमेरिका की ज्यादातर सोयाबीन जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) होती है, जबकि भारत अब तक जीएम फसलों के आयात की अनुमति नहीं देता.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 25 Jul, 2025 | 02:20 PM

भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है. इस बार मुद्दा है सोयाबीन का आयात. जहां भारत अफ्रीकी देशों से गैर-जीएम सोयाबीन आयात कर रहा है, वहीं अमेरिका का सवाल है “अगर भारत अफ्रीका से सोयाबीन ला सकता है, तो अमेरिका से क्यों नहीं?”

यह सवाल अमेरिकी सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) ने नई दिल्ली में एक सम्मेलन के दौरान उठाया है. सवाल सीधे-सीधे भारत की आत्मनिर्भरता की सोच, जीएम फसलों की नीति और व्यापार संतुलन से जुड़ा है.

अमेरिका का तर्क

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, USSEC के दक्षिण एशिया और सब-सहारा अफ्रीका क्षेत्रीय निदेशक केविन रोएप्के ने इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) के एक कार्यक्रम में साफ कहा कि “कोविड के बाद भारत चुपचाप नेट सोयाबीन आयातक बन गया है. हर साल 5 से 7 लाख टन सोयाबीन आयात हो रहा है, ज्यादातर अफ्रीका से. तो फिर अमेरिका से क्यों नहीं?” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य निर्यातक है, और भारत को व्यापार के इस विकल्प को खुले दिमाग से देखना चाहिए.

भारत का जीएम फसलों पर सख्त रुख

भारत की दुविधा यह है कि अमेरिका की ज्यादातर सोयाबीन जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) होती है, जबकि भारत अब तक जीएम फसलों के आयात की अनुमति नहीं देता. ऐसे में सरकार अफ्रीका जैसे देशों से गैर-जीएम सोयाबीन को वरीयता देती है, जो शून्य आयात शुल्क पर आता है.

2023-24 में भारत ने करीब 9.7 लाख टन सोयाबीन आयात किया, जबकि 2024-25 में यह आंकड़ा 84 फीसदी गिरकर सिर्फ 1.54 लाख टन रह गया. टोगो और नाइजर जैसे देशों से यह आयात किया गया.

क्या आत्मनिर्भरता संभव है?

USSEC का मानना है कि हर चीज में आत्मनिर्भरता व्यावहारिक नहीं है. केविन ने उदाहरण दिया कि “चीन कभी सोयाबीन का निर्यातक था, लेकिन WTO समझौते के बाद वह दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन गया. आज वह हर साल 100 मिलियन टन सोयाबीन आयात करता है.”

भारत में भी खाद्य तेलों की खपत तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सोयाबीन जैसी वस्तुओं में पूरी आत्मनिर्भरता संभव है?

भारतीय कीमतें बनाम वैश्विक बाजार

अभी भारत में सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 25 डॉलर प्रति बुशल तक पहुंच सकता है, जबकि वैश्विक कीमतें लगभग 20 डॉलर प्रति बुशल के आसपास हैं. इससे घरेलू उत्पादक खुश तो हो सकते हैं, लेकिन उपभोक्ताओं और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ सकता है. USSEC का मानना है कि भारत का वनस्पति तेल आयात मजबूत बना रहेगा, और इसमें अमेरिका जैसे देशों की भागीदारी भारत को बेहतर विकल्प दे सकती है.

वहीं, भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध लगातार गहरे हो रहे हैं. लेकिन कृषि क्षेत्र, खासकर जीएम फसलों का मुद्दा, अब भी एक बड़ी बाधा है. यदि भारत गैर-जीएम अमेरिकी सोयाबीन की आपूर्ति की संभावना तलाशे, तो शायद रास्ते खुल सकते हैं.

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Published: 25 Jul, 2025 | 02:12 PM

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