सोयाबीन की अच्छी पैदावार के बावजूद निर्यात में गिरावट, सोपा रिपोर्ट ने खोले कई राज

पिछले साल यानी 2024-25 के तेल वर्ष में भारत के पास 8.94 लाख टन सोयाबीन बचा हुआ था, जबकि इस साल अनुमानित भंडार 6.86 लाख टन रह जाएगा. इसका मुख्य कारण है कम क्रशिंग, कम आयात और घटती मांग.

नई दिल्ली | Updated On: 17 Jul, 2025 | 12:07 PM

भारत में सोयाबीन की खेती और व्यापार एक बड़ी आर्थिक गतिविधि है, लेकिन 2025-26 में इसके स्टॉक यानी बचे हुए भंडार में भारी कमी देखने को मिल रही है. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि इस बार अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले तेल वर्ष के लिए देश के पास सिर्फ 6.86 लाख टन सोयाबीन स्टॉक बचा होगा, जो कि पिछले साल के मुकाबले 23 फीसदी कम है.

कम स्टॉक का क्या मतलब है?

पिछले साल यानी 2024-25 के तेल वर्ष में भारत के पास 8.94 लाख टन सोयाबीन बचा हुआ था, जबकि इस साल अनुमानित भंडार 6.86 लाख टन रह जाएगा. इसका मुख्य कारण है कम क्रशिंग, कम आयात और घटती मांग.

क्रशिंग में भी आई गिरावट

इस बार सोयाबीन की प्रोसेसिंग यानी क्रशिंग भी कम हो रही है. इसमें सोयाबीन से तेल और खली निकाली जाती है. 2024-25 में कुल क्रशिंग का अनुमान सिर्फ 110 लाख टन है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 122.50 लाख टन तक पहुंच गया था. वहीं जून 2025 के आखिर तक केवल 87 लाख टन सोयाबीन की क्रशिंग हो पाई, जबकि पिछले साल इसी समय तक 95.50 लाख टन सोयाबीन प्रोसेस हो चुका था.

क्यों कम हुई क्रशिंग?

इस साल मंडियों में सोयाबीन की आवक कम रही है और फीड इंडस्ट्री, जो पशुओं के लिए चारा बनाती है, वहां से भी मांग घट गई है. इसके साथ ही निर्यात में गिरावट के कारण सोयाबीन का प्रसंस्करण यानी प्रोसेसिंग भी धीमा हो गया है.

दिलचस्प बात यह है कि 2024-25 में सोयाबीन का उत्पादन बढ़कर 125.82 लाख टन तक पहुंच गया है, जबकि पिछले साल यह 118.74 लाख टन था. इसके बावजूद देश में सोयाबीन का स्टॉक घटा है, क्योंकि एक तरफ आयात में कमी आई है और दूसरी तरफ खपत में भी गिरावट देखने को मिली है.

सोयामील (खली) की खपत और निर्यात में गिरावट

इस साल फीड सेक्टर में सोयामील की खपत घटकर सिर्फ 46.50 लाख टन रह गई है, जबकि पिछले साल यह 50.50 लाख टन थी. यानी पशु आहार उद्योग में भी मांग कम हुई है. दूसरी ओर, फूड सेक्टर में थोड़ी बहुत बढ़त जरूर देखी गई, इस साल 6.16 लाख टन सोयामील का इस्तेमाल हुआ, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 6.05 लाख टन था.

हालांकि, सबसे बड़ी गिरावट निर्यात में देखने को मिली है. पिछले साल जहां 17.77 लाख टन सोयामील का निर्यात हुआ था, वहीं इस साल यह घटकर सिर्फ 15.60 लाख टन रह गया है. इससे साफ है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर मांग में कमजोरी आई है.

क्यों घटा निर्यात?

भारतीय सोयामील की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य देशों से महंगी हैं, जिससे खरीदार कम हो गए.

किसने कितना खरीदा?

सोयामील पर नजर डालें तो जर्मनी सबसे बड़ा खरीदार रहा. इस साल जर्मनी ने कुल 2.12 लाख टन सोयामील खरीदा. इसके बाद फ्रांस ने 1.71 लाख टन और नेपाल ने 1.61 लाख टन की खरीद की. इन तीन देशों ने मिलकर भारतीय सोयामील निर्यात का एक बड़ा हिस्सा लिया, लेकिन कुल निर्यात फिर भी पिछले साल से कम रहा.

Published: 17 Jul, 2025 | 12:05 PM