सरकार ने गेहूं की जमाखोरी पर लगाम लगाने और बाजार में कीमतों को स्थिर रखने के लिए बड़ा कदम उठाया है. अब देशभर में गेहूं पर 31 मार्च 2026 तक स्टॉक लिमिट लागू कर दी गई है. यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब सरकार “बंपर उत्पादन” के दावे कर रही है, लेकिन गेहूं की सरकारी खरीद उम्मीद से कम हुई है.
क्या है नया नियम?
नई गाइडलाइन के तहत अब गेहूं के भंडारण को लेकर सख्त नियम लागू कर दिए गए हैं. इसके अनुसार, बड़े व्यापारियों को अब अधिकतम 3000 मीट्रिक टन गेहूं स्टोर करने की अनुमति होगी. वहीं, रिटेल दुकानदार केवल 10 मीट्रिक टन तक गेहूं रख सकेंगे. आटा मिलों और प्रोसेसिंग यूनिट्स के लिए स्टॉक की सीमा उनकी मासिक इंस्टॉल्ड क्षमता का 70 प्रतिशत तय की गई है, जिसे मार्च 2026 तक बचे हुए महीनों से गुणा कर गिना जाएगा. इन नियमों का उद्देश्य बाजार में समान वितरण बनाए रखना और जमाखोरी पर नियंत्रण पाना है.
सरकार ने सभी व्यापारिक इकाइयों को निर्देश दिया है कि वे अपने पास मौजूद गेहूं का स्टॉक 15 दिनों के भीतर निर्धारित सीमा तक ले आएं और नियमित रूप से अपनी स्टॉक स्थिति सरकारी पोर्टल पर अपडेट करें.
बंपर उत्पादन पर भी उठे सवाल
हालांकि सरकार का दावा है कि इस साल रबी सीजन में पिछले तीन सालों की तुलना में गेहूं का उत्पादन बेहतर हुआ है, लेकिन कई विशेषज्ञ इस फैसले पर हैरान हैं. “अगर उत्पादन वाकई बंपर होता, तो स्टॉक लिमिट लगाने की जरूरत क्यों पड़ती?”
गेहूं खरीद लक्ष्य से पीछे
सरकार ने इस साल 332.7 लाख मीट्रिक टन (LMT) गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अब तक सिर्फ 298.17 LMT की ही खरीद हो सकी है. पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान ने हमेशा की तरह बेहतर योगदान दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की भागीदारी बेहद कम रही.
उत्तर प्रदेश से मात्र 10 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई जबकि लक्ष्य 30 LMT था. बिहार ने तो केवल 18,000 टन गेहूं ही दिया, जबकि वहां का लक्ष्य 2 LMT था.
क्यों लिया गया ये फैसला?
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों से कम खरीद होने की वजह से सरकार को स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कदम उठाने पड़े. साथ ही, इससे बाजार में कीमतों को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी और जमाखोरी पर रोक लगेगी.