सिक्किम के पहाड़ों से निकला कमाई का फार्मूला! अंगोरा ऊन से 800 फीसदी तक बढ़ी किसानों की आय

सिक्किम के दक्षिण जिले के मध्य चुबा गांव में अंगोरा खरगोश पालन ने किसानों की आर्थिक स्थिति बदल दी है. इस पहल से महिलाओं को भी रोजगार मिला है और यह पूरे सिक्किम में आजीविका का नया मॉडल बन चुका है.

नोएडा | Published: 17 Jul, 2025 | 12:02 PM

सिक्किम की ठंडी पहाड़ियों में अब सिर्फ हरियाली और सुकून की बात नहीं होती, यहां कमाई की एक नई कहानी भी लिखी जा रही है. गांवों में पाले जा रहे अंगोरा खरगोश अब किसानों की आमदनी का मजबूत जरिया बन गए हैं. इनके नर्म और सफेद ऊन ने लोगों की जिंदगी की दिशा ही बदल दी है.

पहले जहां खेती और पारंपरिक पशुपालन से गुजारा मुश्किल था, अब वहीं से आमदनी में 800 फीसदी तक का उछाल आया है. इस बदलाव ने गांव की महिलाओं को रोजगार दिया, युवाओं को उम्मीद दी और पूरे इलाके को आत्मनिर्भर बनने की राह पर ला खड़ा किया है. यही वजह है कि अंगोरा फार्मिंग अब पहाड़ों की कमाई का नया फार्मूला बन चुकी है.

जर्मन नस्ल के खरगोशों से आई टिकाऊ आमदनी

सिक्किम के दक्षिण जिले में एक गांव है मध्य चुबा. यहां के किसान पहले सिर्फ खेती और भेड़ पालन से अपना गुजारा करते थे, लेकिन आमदनी बहुत कम थी. खेती पूरी तरह बारिश पर टिकी थी और भेड़ पालन से भी ज्यादा कमाई नहीं हो पा रही थी.

इसी बीच साल 2014 में नामथांग के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और पशु विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. चेवांग नोरबू भूटिया ने एक नया रास्ता दिखाया. उन्होंने किसानों को जर्मन नस्ल के अंगोरा खरगोश पालने की सलाह दी. ये खरगोश खास होते हैं क्योंकि इनसे जो ऊन मिलती है, वह बहुत ही मुलायम और कीमती होती है. इसकी मांग विदेशों तक में है.

साल 2018 में नाबार्ड (NABARD) ने ‘अंगोरा फार्मिंग – एन एवेन्यू फॉर लाइवलीहुड इंप्रूवमेंट’ परियोजना को मंजूरी दी. इस पहल से अंगोरा पालन को नई रफ्तार मिली, ताकि छोटे किसानों को स्थायी आमदनी का एक मजबूत साधन मिल सके.

एक टोपी का दाम 15 सौ रुपये

इस प्रोजेक्ट से जुड़े अरुण कुमार गुरुंग आज अंगोरा फार्मिंग के पोस्टर किसान बन चुके हैं. पहले वे सब्जी बेचकर गुजारा करते थे, लेकिन महीने भर का खर्च निकालना भी मुश्किल होता था. अंगोरा फार्मिंग से अब उन्होंने अपनी आमदनी तीन गुना बढ़ा ली है.

एक अंगोरा खरगोश हर तीन महीने में करीब 100 ग्राम ऊन देता है. इस ऊन से बनी एक टोपी 1,500 रुपये तक बिक जाती है. अरुण के पास 55 खरगोश हैं, जिनसे 2020 में 45 किलो ऊन निकली और उन्होंने 48,500 रुपये की शुद्ध कमाई की. साथ ही, खरगोशों की बिक्री से 98,000 रुपये और कमा लिए.यह पिछले साल की तुलना में 274 फीसदी और 834 फसदी की आमदनी में बढ़त दर्शाता है.

Sikkim farmers

अंगोरा फार्मिंग ने बढ़ाई सिक्किम के लोगों की आमदनी

महिलाओं को भी मिला नया रोजगार

अरुण की पत्नी रूपा गुरुंग अब सिर्फ गृहणी नहीं रहीं. वह स्वयं सहायता समूह (SHG) की सदस्य हैं और ऊन कताई-बुनाई में परिपक्व हो चुकी हैं. उनके समूह ने कई मेलों में अपने हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित किया है. इससे गांव की दूसरी महिलाओं में भी रोजगार  को लेकर उत्साह बढ़ा है.

केवीके (KVK) के मार्गदर्शन में इन्हें प्रशिक्षण, मशीनें और मार्केटिंग का ज्ञान दिया गया. हालांकि पारंपरिक कताई में समय ज्यादा लगता है और मशीनों की कमी एक बड़ी चुनौती है, लेकिन कॉमन फैसिलिटी सेंटर (CFC) का निर्माण और नई मशीनों की व्यवस्था तेजी से हो रही है.

Rabbit farming

ऊन की सफाई करती महिला किसान – स्वरोजगार की ओर बढ़ते कदम

ऊन से जुड़ी उम्मीदें और भविष्य की योजना

डॉ. भूटिया सिर्फ उत्पादन पर नहीं, बल्कि प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन पर जोर दे रहे हैं. उनकी सोच है कि अंगोरा ऊन को प्राकृतिक रंगों से सजाया जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्पाद बनाए जाएं. यही वजह है कि अब टोपी, मफलर, दस्ताने जैसे ऊनी सामान बनाकर स्थानीय बाजार  से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक बेचे जा रहे हैं.

इस प्रोजेक्ट को अब पश्चिमी सिक्किम तक फैलाया जा चुका है, जिससे और किसान इससे जुड़ सकें. डॉ. भूटिया मानते हैं कि अंगोरा फार्मिंग एक ऐसा कम लागत वाला, उच्च लाभ वाला मॉडल है जिसे देश के दूसरे पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी लागू किया जा सकता है.

ये लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.