एक आदेश और 3000 सेब से लदे पेड़ों पर चली कुल्हाड़ी, जानिए क्यों हिमाचल में किसान रो रहे हैं

हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिमला के चाइथला क्षेत्र और आसपास की ऊंचाई वाली जगहों पर वन विभाग, राजस्व और पुलिस की संयुक्त टीमों ने पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है. तर्क है कि ये सेब के बाग वन भूमि पर अवैध कब्जे हैं.

नई दिल्ली | Updated On: 16 Jul, 2025 | 04:16 PM

हिमाचल प्रदेश का नाम सुनते ही आंखों के सामने बर्फ से ढके पहाड़, और सेब से लदे बागों की तस्वीर उभरती है. पर इस बार तस्वीरों में मुस्कुराहट नहीं, बल्कि आंसू हैं. ऊपरी शिमला के खेतों में इस बार सेब की फसल काटने से पहले ही सेब के फलदार पेड़ कटने लगे हैं. क्यों?…. क्योंकि अदालत के एक आदेश के चलते, इन्हें वन भूमि पर अतिक्रमण मानकर हटाया जा रहा है. और इसी के साथ हजारों किसानों की आजीविका, मेहनत और उम्मीदें भी एक-एक पेड़ के साथ गिर रही हैं.

क्या है मामला? क्यों कट रहे हैं पेड़?

हाईकोर्ट के आदेश के बाद शिमला के चाइथला क्षेत्र और आसपास की ऊंचाई वाली जगहों पर वन विभाग, राजस्व और पुलिस की संयुक्त टीमों ने पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है. तर्क है कि ये सेब के बाग वन भूमि पर अवैध कब्जे हैं.

ईटीवी की खबर के अनुसार, 2014 में एक सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण चंद सरटा द्वारा दायर याचिका के बाद, यह मामला शुरू हुआ जिसमें दावा किया गया कि कुछ परिवारों ने हजारों बीघा वन भूमि पर स्थायी ढांचे बना लिए हैं. अदालत ने इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए आदेश जारी किए और ये प्रक्रिया सालों से चल रही थी.

किसानों का गुस्सा

जब ये कार्रवाई फलों के पकने के बीच सीजन में शुरू हुई, तो किसानों में गहरा आक्रोश फैल गया. हिमाचल किसान सभा और सेब उत्पादक संघ ने इस कदम को किसान विरोधी बताया और सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की. किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर यह कटाई जारी रही तो पूरे प्रदेश में आंदोलन शुरू होगा.

किसानों की मांग है कि-

  • फलों की कटाई पूरी होने तक पेड़ न काटे जाएं
  • सालों से वन भूमि पर रह रहे गरीब किसानों को भूमि अधिकार दिए जाएं
  • अतिक्रमण और परंपरागत उपयोग भूमि में फर्क किया जाए

सरकार की सफाई

प्रदेश के बागवानी और राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने स्पष्ट किया कि ये आदेश कोई नया मामला नहीं है. ये सारे मामले विभागीय प्रक्रिया से होकर हाईकोर्ट तक पहुंचे हैं और अब अदालत का अंतिम निर्णय आ चुका है. सरकार ने कोर्ट से यह गुहार भी लगाई थी कि कम से कम फसल का सीजन खत्म होने तक पेड़ न काटे जाएं, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया.

नेगी ने यह भी कहा, “सरकार वन संरक्षण अधिनियम 1980 की सीमा से बाहर जाकर कोई नीति नहीं बना सकती. राज्य के पास इतनी गैर-वन भूमि भी नहीं है जिसे इन किसानों को दिया जा सके.”

भूमि विवाद और सरकारी नीतियों का उतार-चढ़ाव

2016 में जब किसान विरोध शुरू हुआ था, तब विरभद्र सिंह की सरकार ने 5 बीघा तक की भूमि नियमित करने की नीति बनाने की बात कही थी. 2017 में हाईकोर्ट ने भी ऐसी नीति को अनुमति दी थी. लेकिन 2025 में मौजूदा सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने अदालत में यह कह दिया कि अब ऐसी कोई नीति लाने की योजना नहीं है. इसके बाद ही पेड़ों की कटाई का रास्ता साफ हो गया.

Published: 16 Jul, 2025 | 04:10 PM