गुजरात में 9.7 लाख किसानों ने रासायनिक खेती को किया बाय- बाय, अब प्राकृतिक तरीके से उगा रहे फसल

आज गुजरात के 9.7 लाख से ज्यादा किसानों ने रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया है और यह सिर्फ एक खेती की तकनीक नहीं, एक हरित क्रांति की वापसी है.

नई दिल्ली | Updated On: 5 Jun, 2025 | 02:02 PM

एक समय था जब खेती का मतलब था मेहनत, धैर्य और धरती से जुड़ाव. लेकिन रासायनिक खेती ने इस रिश्ते को मशीनों और महंगे साधनों में बदल दिया. अब गुजरात के लाखों किसान एक बार फिर से उस पुराने रास्ते पर लौट रहे हैं, जहां मिट्टी की सेहत, साफ बीज और किसान की आत्मनिर्भरता सबसे ज्यादा मायने रखती थी.

आज गुजरात के 9.7 लाख से ज्यादा किसानों ने रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाया है और यह सिर्फ एक खेती की तकनीक नहीं, एक हरित क्रांति की वापसी है.

क्या है प्राकृतिक खेती?

प्राकृतिक खेती का मतलब है बिना रसायन, बिना महंगे खाद और बीजों के, खेती करना. इसमें गाय के गोबर से बना जीवामृत, बीजों को सुरक्षित रखने के लिए बीजामृत, और मिट्टी को जिंदा बनाए रखने के लिए घन जीवामृत जैसे देसी उपाय अपनाए जाते हैं. ये सभी चीजें किसान खुद अपने खेत में बना सकते हैं, जिससे उन्हें बाहर से कुछ खरीदने की जरूरत नहीं होती.

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और राज्यपाल आचार्य देवव्रत खुद किसानों को इस दिशा में प्रोत्साहित कर रहे हैं. उनका कहना है कि अब जो अनाज, सब्जियां और फल हम उगा रहे हैं, उनमें पहले जैसी पौष्टिकता नहीं बची है. इसकी वजह रासायनिक खेती है. ऐसे में अब वक्त आ गया है कि हम अपने पुराने तरीकों की ओर लौटें.

बदलाव की कहानी किसान की जुबानी

गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के हरिपर गांव के किसान विनोदभाई वर्मोरा ने अपनी 16 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की. पहले वे रासायनिक खेती करते थे, लेकिन अब गायों के गोबर से बने जीवामृत और जैविक विधियों की मदद से ही अपनी पूरी फसल उगाते हैं. नतीजा यह है कि उनकी सालाना कमाई 20 लाख रुपये से भी ज्यादा हो चुकी है.

उनकी खेती में अब कई तरह की फसलें एक साथ होती हैं, ड्रिप सिंचाई होती है, और उन्होंने अपने खेत में 2,000 पेड़ लगाकर एक मियावाकी जंगल भी तैयार कर लिया है. अब उनका खेत सिर्फ खेती का नहीं, प्रकृति का एक जीवंत उदाहरण बन चुका है.

ऐसे ही एक और किसान हैं नरेन्द्रसिंह झाला, जो सिर्फ एक एकड़ जमीन पर 12 तरह की सब्जियां उगा रहे हैं. उन्होंने बताया कि अब उन्हें महंगे बीज, दवाइयों या खाद के लिए बाजार से कुछ खरीदने की जरूरत नहीं है. सब कुछ वे खुद खेत में तैयार करते हैं. इससे लागत बहुत कम हुई है, मिट्टी की ताकत बढ़ी है और पैदावार भी अच्छी हो रही है.

सरकार भी दे रही है खुलकर साथ

राज्य और केंद्र सरकार, दोनों ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मदद कर रही हैं. किसानों को देसी गाय पालने पर हर महीने 900 रुपये की मदद मिलती है. एक एकड़ मॉडल फार्म बनाने के लिए 13,500 रुपये की सहायता दी जाती है. इसके अलावा, ड्रिप सिंचाई पर 60 फीसदी तक सब्सिडी और मिनी ट्रैक्टर के लिए 45,000 रुपये की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध है.

एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी (ATMA) के अधिकारियों के मुताबिक, जो किसान पहले एक एकड़ से 2 लाख रुपये की कमाई करते थे, अब वही किसान 3.5 से 4 लाख रुपये प्रति एकड़ कमा रहे हैं. औ

प्राकृतिक खेती है भविष्य

आज जब महंगाई बढ़ रही है, बीज और खाद के दाम आसमान छू रहे हैं, किसान कर्ज में डूब रहे हैं ऐसे समय में प्राकृतिक खेती एक उम्मीद की किरण बनकर उभरी है. यह सिर्फ खेत की सेहत नहीं, किसान की मानसिक और आर्थिक सेहत को भी सुधार रही है. गुजरात की यह सफलता कहानी पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है. मिट्टी से जुड़कर, अपने मूल की ओर लौटकर, किसान फिर से साबित कर रहे हैं कि असली विकास वही है, जो प्रकृति के साथ चलकर हो.

Published: 5 Jun, 2025 | 01:47 PM