मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में मंगलवार को कलेक्टर कार्यालय में जनसुनवाई के दौरान ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने हर किसी को चौंका दिया. दराअसल हुआ ये कि लालाखेड़ा गांव के रहने वाले पन्नालाल सेन नाम के एक किसान ने सिस्टम की अनदेखी और प्रशासन की सुस्ती के खिलाफ अनोखा विरोध किया. वह अपने पूरे शरीर पर कपड़ों की जगह पेड़ के हरे पत्ते लपेटकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचा. हाथ में आवेदन और चेहरे पर बेबसी लिए वह सीधे जनसुनवाई के दरबार में जा खड़ा हुआ.
‘अब तो तन ढकने को भी कुछ नहीं बचा’
पन्नालाल ने ‘किसान इंडिया’ से बात करते हुए बताया कि उन्होंने करीब एक साल पहले अपने गांव की शासकीय जमीन पर हो रहे अवैध कब्जे की शिकायत की थी. कई बार आवेदन दिए, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इतना ही नहीं सरकारी जमीन बचाने में खुद की हालत ऐसी हो गई है कि अब तन ढकने को कपड़े भी नहीं बचे. इसलिए आज पत्ते पहनकर आया हूं ताकि ये सिस्टम शायद अब तो मेरी बात सुने.
गांव की जमीन पर दबंगों का कब्जा
पन्नालाल का आरोप है कि गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया और अब वहां एक निजी धर्मशाला बना दी गई है. यह जमीन सार्वजनिक थी और पूरे गांव के हित के लिए रखी गई थी. लेकिन अब उसका इस्तेमाल निजी लाभ के लिए किया जा रहा है. उनका कहना है कि जो जमीन जनता की थी, उस पर अब एक गुट ने कब्जा कर लिया है और सरकार सिर्फ मूक दर्शक बनी रही.

शिवलाल शाक्य, SDM मंदसोर (ऊपर) – पन्नालाल, परेशान ग्रामीण (नीचे)
जमीन पर पहले ही हो चुकी है कार्रवाई- SDM
मंदसौर के एसडीएम शिवलाल शाक्य ने इस मामले पर सफाई दी है. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने पहले ही जमीन को लेकर कानूनी कार्रवाई की है और सरकारी आदेश भी जारी किए जा चुके हैं. पन्नालाल की ओर से लगाए गए आरोप पूरी तरह सही नहीं हैं. हालांकि, अगर कोई नया तथ्य या पहलू सामने आता है तो उसकी जांच जरूर की जाएगी. क्योंकि प्रशासन की कोशिश है कि सभी मामलों को निष्पक्षता से देखा जाए और सही कार्रवाई की जाए.
विरोध का यह तरीका बना चर्चा का विषय
पन्नालाल सेन का यह विरोध सिर्फ एक शिकायत नहीं था, यह उस सिस्टम के खिलाफ एक तीखा संदेश था जो आम आदमी की बात अनसुनी करता है. जब तमाम आवेदन और निवेदन के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होती, तब एक किसान को यह कदम उठाना पड़ा. पन्नालाल के इस विरोध की तस्वीरें वायरल हो रही हैं और लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या आम आदमी की आवाज अब पत्तों में लिपटकर ही सुनी जाएगी?