ऊंट पालकों को नुकसान, नहीं हो रही दूध की पूरी खरीद.. क्या करें पशुपालक?
रहद डेयरी के चेयरमैन ने माना कि ऊंट दूध का कारोबार फिलहाल घाटे का सौदा है. उन्होंने कहा कि डेयरी ऊंट पालकों को 51 रुपये प्रति लीटर का भुगतान कर रही है, जो काफी ज्यादा है.
गुजरात के ऊंट पालक दूध नहीं बेच पा रहे हैं, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है. कुछ साल पहले अमूल ब्रांड के तहत ऊंट दूध लॉन्च किया गया था.इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बताया गया था. उम्मीद थी कि इससे ऊंट पालकों को स्थायी आमदनी मिलेगी. लेकिन अब तक उन्हें खास लाभ नहीं मिल पाया है, क्योंकि उनसे दूध की पूरी खरीद नहीं की जा रही है.
दरअसल, सरहद डेयरी ने 2019 में ऊंट दूध की खरीद शुरू की थी और कच्छ के साथ-साथ उत्तर गुजरात और राजस्थान से भी दूध लेने की योजना थी, जो पूरी नहीं हो सकी. यहां तक कि कच्छ में भी उपलब्ध पूरे दूध की खरीद नहीं हो पा रही है. इसकी बड़ी वजह सीमित मार्केटिंग और कम उत्पाद उपलब्धता बताई जा रही है. शुरुआत में ऊंट दूध को स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ चुनिंदा बाजारों में उतारा गया. बाद में अमूल ने टेट्रा पैक दूध, फ्लेवर्ड मिल्क, आइसक्रीम और चॉकलेट जैसे उत्पाद भी लॉन्च किए, लेकिन मांग में खास बढ़ोतरी नहीं हुई. साल 2019-20 में रोजाना करीब 4,200 लीटर ऊंट दूध खरीदा जाता था, जो अब बढ़कर भी सिर्फ 5,000 से 5,500 लीटर प्रतिदिन तक ही पहुंच पाया है. यह दूध करीब 350 ऊंट पालकों से लिया जा रहा है.
ऊंट दूध का कारोबार फिलहाल घाटे का सौदा
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सरहद डेयरी के चेयरमैन वलमजी हुम्बल ने माना कि ऊंट दूध का कारोबार फिलहाल घाटे का सौदा है. उन्होंने कहा कि डेयरी ऊंट पालकों को 51 रुपये प्रति लीटर का भुगतान कर रही है, जो काफी ज्यादा है. लेकिन मांग उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी, इसलिए वे 25 से 30 फीसदी अतिरिक्त दूध खरीद नहीं पा रहे हैं. कई बार दूध बेचने आए पालकों को लौटाना भी पड़ता है.
क्या कहते हैं किसान
कच्छ के अब्दासा तालुका के ऊंट पालक नूरममद मोहादी ने कहा कि उनके पास 20 ऊंट हैं, जो रोज 10 से 20 लीटर दूध देते हैं, लेकिन पास में खरीद केंद्र न होने और कम मांग के कारण वे दूध नहीं बेच पा रहे. कच्छ में पशुपालक समुदाय के साथ काम करने वाली संस्था सहजीवन की कार्यकारी निदेशक कविता मेहता ने कहा कि सरहद डेयरी ने बुनियादी ढांचा तो तैयार किया है, लेकिन मार्केटिंग पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि रोजाना 5,000 लीटर दूध किसी बड़ी डेयरी के लिए बहुत कम मात्रा है, इसलिए शायद यह उत्पाद उनकी प्राथमिकता में नहीं है.
25 ऊंट पालक दूध नहीं बेच पा रहे हैं
वहीं, देवभूमि द्वारका के लाखा रबारी ने कहा कि उनके इलाके में करीब 25 ऊंट पालक दूध नहीं बेच पा रहे, क्योंकि खरीदार नहीं मिल रहे. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि कच्छ के बाद दूसरे इलाकों में भी खरीद बढ़ेगी और ऊंट दूध अच्छी कीमत पर बिककर स्थायी आमदनी का जरिया बनेगा.