Cumin Prices: रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही किसानों की नजर हमेशा उन फसलों पर रहती है, जिनसे उन्हें बेहतर आमदनी की उम्मीद हो. लेकिन इस बार जीरा किसानों के चेहरे पर वैसी चमक नजर नहीं आ रही है. कमजोर बाजार कीमतों और सुस्त निर्यात मांग ने जीरे की खेती को लेकर किसानों को असमंजस में डाल दिया है. इसका असर यह हुआ है कि गुजरात और राजस्थान जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में जीरे की बुवाई की रफ्तार पिछड़ती नजर आ रही है और कुल रकबा घटने के संकेत मिल रहे हैं.
कीमतों की सुस्ती से किसान सतर्क
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से जीरे के दाम अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं. घरेलू बाजार में मांग कमजोर बनी हुई है, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार से भी मजबूत संकेत नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में किसान जोखिम उठाने से बच रहे हैं. कई इलाकों में किसानों ने जीरे की जगह सरसों, चना या गेहूं जैसी फसलों को प्राथमिकता दी है, ताकि लागत और नुकसान का खतरा कम किया जा सके.
गुजरात में बुवाई घटी, राजस्थान भी पीछे
गुजरात, जो देश में जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य माना जाता है, वहां इस बार बुवाई का रकबा साफ तौर पर कम दिख रहा है. दिसंबर के मध्य तक बुवाई का आंकड़ा पिछले साल की तुलना में काफी नीचे रहा है. राजस्थान में भी यही स्थिति है. खासकर जोधपुर, नागौर और बाड़मेर जैसे इलाकों में किसान सीमित क्षेत्र में ही जीरा बो रहे हैं. जानकारों का मानना है कि कुल मिलाकर दोनों राज्यों में जीरे का रकबा दो अंकों में घट सकता है.
अंतिम चरण में बुवाई, बढ़ोतरी की उम्मीद कम
इस बार सर्दी जल्दी पड़ने से जीरे की बुवाई भी पहले शुरू हो गई थी. अब बुवाई लगभग अंतिम दौर में पहुंच चुकी है. ऐसे में आगे किसी बड़े इजाफे की संभावना कम मानी जा रही है. किसान अब बाजार के रुख को देखते हुए फैसले ले चुके हैं और अधिकतर खेतों में वैकल्पिक फसलें लगाई जा चुकी हैं.
चीन की फसल ने बढ़ाई मुश्किल
जीरे के निर्यात पर सबसे बड़ा असर चीन से आया है. चीन भारत का बड़ा खरीदार रहा है, लेकिन वहां इस साल घरेलू फसल अच्छी होने के कारण आयात मांग कमजोर पड़ गई है. इसके अलावा बांग्लादेश और कुछ पश्चिम एशियाई देशों से भी ऑर्डर कम हुए हैं. इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों पर दबाव बना हुआ है.
मंडियों में भाव स्थिर, लेकिन जोश नहीं
प्रमुख मंडियों में जीरे के दाम फिलहाल एक सीमित दायरे में घूम रहे हैं. हाल के हफ्तों में हल्की तेजी जरूर आई थी, लेकिन वह टिक नहीं पाई. कीमतों में यह अनिश्चितता किसानों को नए सिरे से बुवाई बढ़ाने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है.
निर्यात घटने से बाजार पर असर
सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष में जीरे का निर्यात मात्रा और मूल्य दोनों के लिहाज से घटा है. इससे बाजार की धारणा कमजोर बनी हुई है. हालांकि कारोबारियों को उम्मीद है कि रमजान से पहले मांग में कुछ सुधार आ सकता है, जिससे कीमतों को सहारा मिल सकता है.
फिलहाल जीरे का बाजार संभलने की कोशिश में है. कैरी-फॉरवर्ड स्टॉक और संभावित मांग सुधार से कीमतों को कुछ सहारा मिल सकता है, लेकिन रबी सीजन में जीरे का रकबा घटने की आशंका लगभग तय मानी जा रही है. किसान अब सावधानी के साथ आगे का रास्ता चुन रहे हैं, ताकि जोखिम कम और आमदनी सुरक्षित रह सके.