जहाजों के शोर और मछली पकड़ने से समुद्री जीवन हुआ प्रभावित, इन राज्यों में व्हेल फंसने की घटनाएं बढ़ीं
CMFRI के अनुसार, 2003 से 2013 के बीच व्हेल के फंसने की दर सालाना 0.3 फीसदी थी, जो अब 2014 से 2023 के बीच बढ़कर 3 फीसदी हो गई है. इसका मतलब पिछले दस सालों में यह समस्या दस गुना बढ़ गई है.
भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर समुद्री जीवन की सुरक्षा अब एक बड़ी चिंता बनती जा रही है. हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि पिछले दस सालों में दक्षिण-पश्चिमी तट पर व्हेल के किनारे फंसने की घटनाएं दस गुना बढ़ गई हैं. इस अध्ययन को ICAR-केंद्रीय समुद्री मछली अनुसंधान संस्थान (CMFRI) ने किया है. इसमें केरल, कर्नाटक और गोवा को सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके बताया गया है.
व्हेल स्ट्रैंडिंग क्या है?
व्हेल स्ट्रैंडिंग का मतलब है जब बड़ी समुद्री जीव व्हेल तट पर फंस जाती हैं या मर जाती हैं. यह समुद्री जीवन के लिए खतरा होता है और यह पर्यावरण में असंतुलन का संकेत भी होता है.
पिछले दस सालों में बदलाव
CMFRI के अनुसार, 2003 से 2013 के बीच व्हेल के फंसने की दर सालाना 0.3 फीसदी थी, जो अब 2014 से 2023 के बीच बढ़कर 3 फीसदी हो गई है. इसका मतलब पिछले दस सालों में यह समस्या दस गुना बढ़ गई है. इसके पीछे जलवायु परिवर्तन, जहाजों का शोर, मछली पकड़ने की बढ़ती गतिविधि और समुद्र के पर्यावरण में बदलाव जैसे कारण हैं.
सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके कौन से हैं?
बिजनेस लाइन की खहर के अनुसार देश के केरल, कर्नाटक और गोवा के समुद्री इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. क्योंकि यहां ज्यादा जहाज चलते हैं, मछली पकड़ने का काम ज्यादा होता है और समुद्र का पानी कम गहरा होता है, जिससे व्हेल फंस जाती हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया और लोगों की जागरूकता बढ़ने से इन घटनाओं की रिपोर्टिंग भी ज्यादा हो रही है.
कौन-कौन सी व्हेल फंस रही हैं?
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे ज्यादा “ब्रायड व्हेल” फंसती हैं, और कभी-कभी “नीली व्हेल” भी. ब्रायड व्हेल की दो अलग-अलग प्रजातियां भारतीय समुद्र में पाई जाती हैं, जो समुद्री जीवन की विविधता को दिखाती हैं.
पर्यावरण का असर
इस अध्ययन से पता चला है कि मानसून के दौरान समुद्र में पोषक तत्व बढ़ते हैं, जिससे व्हेल तट के पास भोजन करने आती हैं. “क्लोरोफिल-ए” नामक तत्व यह दिखाता है कि समुद्र में जीवन कितना सक्रिय है. लेकिन समुद्री तापमान बढ़ने और पर्यावरणीय बदलावों की वजह से व्हेल फंसने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
आगे क्या करना चाहिए?
वैज्ञानिकों का कहना है कि उपग्रह से मिलने वाले आंकड़ों जैसे क्लोरोफिल की मात्रा, हवा की दिशा और समुद्र का तापमान देखकर हम व्हेल के फंसने की घटनाओं का पहले से अनुमान लगा सकते हैं. इससे समय रहते बचाव किया जा सकता है और व्हेल को बचाया जा सकता है.