केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Union Home and Cooperation Minister Amit Shah) ने शनिवार को गुजरात के आनंद जिले में देश की पहली सहकारी क्षेत्र की राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय (TSU) की आधारशिला रखी. इस यूनिवर्सिटी का नाम त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल के नाम पर रखा गया है. इसके साथ ही लोगों के मन में त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल को लेकर जिज्ञासा बढ़ गई है. लोग जानना चाहते हैं, आखिर त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल कौन थे जिनके नाम पर देश ही पहली सहकारिता यूनिवर्सिटी खुल रही है.
दरअसल, त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल को सहकारिता आंदोलन का जनक माना जाता है. अमूल की स्थापना में इनकी अहम भूमिका थी. त्रिभुवनदास पटेल का जन्म 22 अक्टूबर 1903 को खेड़ा गुजरात के आनंद जिले में हुआ था और उनका निधन 3 जून 1994 को हुआ. वे आनंद में पले-बढ़े और उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई चारोतार एजुकेशन सोसाइटी के वर्तमान डीएन हाई स्कूल से की. वे गुजरात विद्यापीठ के छात्र रहे और महात्मा गांधी के अनुयायी भी बने. उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन, छुआछूत और नशाखोरी के खिलाफ अभियानों, और नमक सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर भाग लिया. नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें 1930 में महाराष्ट्र के नासिक जेल में डाल दिया गया था.
मोरारजी देसाई ने दी थी ये सलाह
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1946 में मोरारजी देसाई ने पटेल से कहा कि वे पोलसन डेयरी के शोषण के खिलाफ एक ‘विद्रोह’ के रूप में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (KDCMPUL) की स्थापना करें. इसके बाद उन्होंने बॉम्बे मिल्क सोसायटी को दूध भेजना शुरू किया. फिर सरदार वल्लभभाई पटेल से प्रेरित होकर, उन्होंने गांव-गांव जाकर पोलसन डेयरी के एकाधिकार को खत्म करने के लिए किसानों को संगठित किया, जो उस समय उन्हें शोषित कर रही थी. खास बात यह है कि जब कैरा यूनियन की स्थापना हुई, तो ब्रिटिश सरकार ने एक मैकेनिकल इंजीनियर वर्गीज कुरियन को आनंद की क्रीमरी में नियुक्त किया.
कुरियन प्लांट की तकनीकी समस्याओं में मदद करते थे
चूंकि वर्गीज कुरियन का दफ्तर कैरा डेयरी प्लांट के पास ही था, इसलिए वे अक्सर प्लांट की तकनीकी समस्याओं में मदद करते थे, जहां से दूध पैक करके बॉम्बे मिल्क सोसायटी को भेजा जाता था. इसी दौरान कुरियन और त्रिभुवनदास पटेल की जान-पहचान हुई. कुरियन ने उन्हें सलाह दी कि पुराने प्लांट को अपग्रेड करना जरूरी है ताकि दूध की मांग को पूरा किया जा सके और आंदोलन आगे बढ़ सके. त्रिभुवनदास पटेल ने तुरंत कार्रवाई की. कुछ ही दिनों में उन्होंने नए प्लांट के लिए पैसे का इंतजाम कर लिया और इसकी जिम्मेदारी कुरियन को सौंप दी. जब कुरियन ने प्लांट का काम पूरा किया, तो त्रिभुवनदास ने उन्हें KDCMPUL में नौकरी की पेशकश की. यहीं से भारत में श्वेत क्रांति (White Revolution) की कहानी शुरू हुई.
वर्गीज कुरियन को अपने साथ काम पर रखा
जब उन्होंने कुरियन को अपने साथ काम पर रखा, तो उन्हें उसी मोहल्ले में रहने की जगह दी जहां वे खुद रहते थे और प्रशासन की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी. त्रिभुवनदास खुद गांव-गांव जाकर किसानों से मिलते थे. उन्होंने किसी भेदभाव के बिना सभी को डेयरी आंदोलन से जोड़ा और हर समुदाय को साथ लाए. वे जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते थे. जहां त्रिभुवनदास ने कुरियन को इस मिशन से जोड़ा, वहीं कुरियन ने भी अपने मित्र और तकनीकी विशेषज्ञ एचएम दलाया को मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से बुलाया. दलाया ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर बनाने की तकनीक शुरू की. कैरा यूनियन को बाद में ‘अमूल’ नाम दिया गया, जिसका मतलब होता है ‘अमूल्य’.
त्रिभुवनदास पटेल के मार्गदर्शन में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना
हालांकि डॉ. कुरियन को भारत में श्वेत क्रांति और ऑपरेशन फ्लड का जनक माना जाता है, लेकिन आनंद शहर के लोगों का मानना है कि इन सफलताओं के पीछे मार्गदर्शक त्रिभुवनदास पटेल की भूमिका को अब तक पूरी तरह से सराहा नहीं गया है. त्रिभुवनदास पटेल के मार्गदर्शन में ही गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF), नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB), और इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (IRMA) की स्थापना हुई.
रिटायरमेंट के बाद ‘त्रिभुवनदास फाउंडेशन’ की शुरुआत की
जब 1973 में अमूल की सिल्वर जुबली मनाने के बाद त्रिभुवनदास पटेल ने स्वेच्छा से अमूल के चेयरमैन पद से रिटायरमेंट लिया, तो देशभर के दूध उत्पादकों ने उन्हें धन्यवाद देने के लिए 1-1 रुपया देकर कुल 6 लाख रुपये जुटाए. इस राशि से उन्होंने ‘त्रिभुवनदास फाउंडेशन’ की शुरुआत की, जो आज भी ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए काम कर रही है.
साल 1964 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया
त्रिभुवनदास पटेल के परिवार ने ‘दीनबंधु प्रिंटिंग प्रेस’ भी चलाया था, जो पर्चे और अखबार छापती थी. वहीं, त्रिभुवनदास की पत्नी मणिबेन, जो वडताल स्थित स्वामीनारायण संप्रदाय की अनुयायी थीं, उनके सामाजिक कार्यों की सफलता में बड़ी भूमिका निभाती थीं. त्रिभुवनदास पटेल 1967 से 1975 तक दो बार राज्यसभा सांसद रहे. उन्हें 1963 में रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार और 1964 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने सरदार पटेल पर एक फिल्म के लिए आर्थिक सहयोग भी दिया था. उनका निधन 1994 में हुआ.