भारत और ब्रिटेन के बीच आखिरकार एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता (CETA) हो गया है. इस समझौते ने दोनों देशों के बीच ऑटोमोबाइल व्यापार के लिए नए दरवाजे तो खोले हैं, लेकिन भारत ने इसे अपनी घरेलू ऑटो इंडस्ट्री की सुरक्षा के साथ जोड़कर बेहद संतुलित तरीके से आगे बढ़ाया है.
क्या है खास इस समझौते में?
इस समझौते के तहत ब्रिटेन को भारत के ऑटोमोबाइल बाजार में आने की इजाजत दी गई है, लेकिन पूरी तरह से नियंत्रित और चरणबद्ध तरीके से. खासतौर पर, यह प्रस्ताव पूरी तरह से निर्मित गाड़ियों (CBUs) पर लागू होगा, जिनमें बड़ी इंजन क्षमता वाली पेट्रोल-डीजल कारें, और महंगे इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड, व हाइड्रोजन चालित वाहन शामिल हैं.
भारत ने यह साफ कर दिया है कि बड़ी और महंगी गाड़ियों के लिए ही सीमित छूट दी जा रही है, जबकि भारतीय सड़कों पर चलने वाली सामान्य, किफायती गाड़ियों और इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार को पूरी सुरक्षा दी जाएगी.
घरेलू कंपनियों को राहत कैसे मिली?
भारत की योजना बहुत साफ है कि बड़ी विदेशी कंपनियों को धीरे-धीरे सीमित संख्या में आने देना और साथ ही घरेलू कंपनियों को तकनीक और नवाचार के लिए समय देना. इसका मतलब है कि:
- छोटे (1500 सीसी तक) और मध्यम (1500–3000 सीसी पेट्रोल/2500 सीसी डीजल) इंजन वाली गाड़ियों में भारतीय कंपनियों को पूरा मौका मिलेगा प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का.
- पहले 5 सालों तक, विदेशी गाड़ियों पर सिर्फ 10 फीसदी तक शुल्क में कमी दी जाएगी और वो भी कोटे के भीतर ही.
- पहले 5 साल तक इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और हाइड्रोजन वाहनों को कोई छूट नहीं मिलेगी, जिससे देश का EV सेक्टर विदेशी दबाव से बचा रहेगा.
कुल कितनी गाड़ियां आएंगी?
एक अहम प्रावधान यह है कि 15 सालों में कुल विदेशी गाड़ियों का कोटा करीब 37,000 यूनिट्स तक सीमित रहेगा. 6वें साल से ICE (पारंपरिक इंजन वाली) गाड़ियों की संख्या घटाई जाएगी और उतनी ही संख्या में महंगे इलेक्ट्रिक वाहनों को छूट मिलेगी.
सस्ते EV को नहीं मिलेगी एंट्री
भारत ने यह तय किया है कि 40 लाख रुपये से कम मूल्य वाली विदेशी EVs को बाजार में प्रवेश नहीं मिलेगा. इसका मकसद साफ है कि देश के अपने तेजी से बढ़ते EV बाजार को पूरी तरह सुरक्षित रखना. केवल 80,000 पाउंड (लगभग 85 लाख रुपये) से ऊपर मूल्य वाले हाई-एंड विदेशी इलेक्ट्रिक वाहनों को ही भारत में आने की अनुमति मिलेगी.
भारत ने क्या पाया?
भारत ने इस समझौते में केवल बाजार नहीं खोला, बल्कि घरेलू मोल-भाव से चार गुना ज्यादा लाभ उठाया है. ब्रिटेन को सीमित छूट देकर भारत ने अपने EV और ICE सेक्टर के लिए भविष्य में मजबूत स्थिति बनाने की रणनीति अपनाई है. इससे भारतीय कंपनियों को नवाचार, डिजाइन, और तकनीक पर ध्यान देने का अवसर मिलेगा वो भी बिना विदेशी दबाव के.
क्या किसानों को होगा फायदा
इस समझौते से भारतीय किसानों को सीधे लाभ तो नहीं होगा, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह उनके लिए फायदेमंद हो सकता है. अगर भारत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड गाड़ियों को बढ़ावा देता है, तो पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी और देश की आयात लागत घटेगी. इससे सरकार के पास किसानों की सहायता और सब्सिडी के लिए ज्यादा पैसा बचेगा. साथ ही, अगर भारत में EV सेक्टर बढ़ता है तो नई टेक्नोलॉजी और लघु उद्योग भी विकसित होंगे, जिसमें किसानों के परिवारों को रोजगार के अवसर मिल सकते हैं.