गांवों में कमाई का पूरा माहौल बदल रहा है. पहले किसान सिर्फ दूध बेचकर कमाते थे, लेकिन अब हर चीज पैसा कमा रही है-दूध भी, गोबर भी और बायोगैस भी. कम निवेश में शुरू होने वाला यह माइक्रो डेयरी मॉडल किसानों के लिए नई उम्मीद बन गया है. गांवों में छोटे-छोटे यूनिट लगाकर लोग अब रोज का खर्च तो निकाल ही रहे हैं, साथ ही हर महीने तय आमदनी भी कमा रहे हैं.
गोबर से बन रही बायोगैस और जैविक खाद, दोहरी कमाई
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गांवों में बायोगैस प्लांट की मांग तेजी से बढ़ रही है क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा फायदा देने वाला सेटअप है. छोटे स्तर पर लगाया गया प्लांट भी घरेलू ईंधन की जरूरत आसानी से पूरी कर देता है, जिससे गैस सिलेंडर का खर्च काफी घट जाता है. प्लांट से निकलने वाली स्लरी बेहतरीन जैविक खाद बन जाती है, जिसकी मांग खेती के हर सीजन में बनी रहती है. किसान बताते हैं कि केवल गोबर से ही महीने भर में अच्छी कमाई हो जाती है. इसलिए यह सुविधा गांवों में ऊर्जा, खाद और आमदनी-तीनों का भरोसेमंद जरिया बन चुकी है.
दूध प्रोसेसिंग यूनिट से मुनाफा कई गुना बढ़ा
अब किसान सिर्फ दूध बेचने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि घी, पनीर और अन्य डेयरी प्रोडक्ट बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं. छोटे स्तर की दूध प्रोसेसिंग यूनिट लगभग 50,000 से 1 लाख रुपये में आसानी से शुरू हो जाती है. पैक किए गए प्रोडक्ट की शेल्फ लाइफ लंबी होती है, जिससे इन्हें बाजार में बेचने में कोई दिक्कत नहीं आती. स्थानीय बाजारों में इसकी डिमांड भी लगातार बढ़ रही है. इस मॉडल से रोज की कमाई की चिंता खत्म हो जाती है और किसानों को हर महीने निश्चित और स्थिर मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है.
सरकारी योजना से मिल रही सब्सिडी और ट्रेनिंग का फायदा
किसानों को अब माइक्रो प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में सरकार बड़ी मदद दे रही है. इस योजना के तहत किसानों को पूंजी सब्सिडी, कम ब्याज पर आसान लोन और तकनीकी ट्रेनिंग जैसी सुविधाएं मिलती हैं. किसान चाहें तो अपने ब्रांड नाम से भी प्रोडक्ट बेच सकते हैं, जिससे कमाई और बढ़ जाती है. आवेदन ऑनलाइन पोर्टल से या स्थानीय कार्यालय में ऑफलाइन तरीके से किया जा सकता है. बस उम्र, जरूरी दस्तावेज और लोन से जुड़ी शर्तें पूरी होनी चाहिए. इसके बाद यूनिट लगाना न आसान होता है, न ही ज्यादा खर्चीला और कमाई लगातार बढ़ती रहती है.