मौजूदा तकनीक से दोगुनी उपज संभव, किसानों को चाहिए सही दिशा-मांगीलाल जाट

कोई एक तकनीक हर जगह काम नहीं करती, क्योंकि मिट्टी, मौसम, किसान की परिस्थिति हर जगह अलग है. इसलिए समाधान भी "एक जैसा नहीं", बल्कि "इलाके के हिसाब से अलग" होना चाहिए.

नई दिल्ली | Published: 2 May, 2025 | 05:11 PM

भारत की आत्मा गांवों में बसती है, और गांवों की जान है खेती. अगर हम 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें अपने खेतों, किसानों और कृषि व्यवस्था को सशक्त बनाना होगा.

आज जब तकनीक तेजी से बदल रही है, तो खेती भी पीछे नहीं रह सकती. इसी सोच के साथ मांगीलाल जाट, जो कि ICAR के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) के सचिव हैं, देश के कृषि भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर हम मौजूदा तकनीकों का सही इस्तेमाल करें, तो हमारी फसलें आज भी दोगुनी हो सकती हैं. चलिए जानते हैं मांगीलाल जाट कैसे खेती को वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़कर भारत को खाद्य सुरक्षा और किसानों की समृद्धि की ओर ले जाना चाहते हैं.

विकसित भारत 2047: खेती सबसे बड़ी प्राथमिकता

सरकार का सपना है कि 2047 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बने. इस लक्ष्य में खेती को सबसे ऊपर रखा गया है. जाट बताते हैं कि आज खेती को आगे ले जाने के लिए हमें “मांग के अनुसार शोध” यानी डिमांड-ड्रिवन रिसर्च की जरूरत है. इसका मतलब है कि अब शोध और तकनीक उसी दिशा में होनी चाहिए, जिस चीज की किसानों को जरूरत है, न कि सिर्फ वही जो प्रयोगशाला से निकले. पहले “आपूर्ति पर आधारित” सोच में किसानों की वास्तविक समस्याएं अक्सर पीछे छूट जाती थीं, लेकिन अब फोकस जमीन से जुड़ी जरूरतों पर है.

इस बदलाव की नींव चार मजबूत स्तंभों पर रखी गई है:

युवा- जो नई तकनीकों को अपनाकर खेती का चेहरा बदल सकते हैं.
महिलाएं- जो खेत में बराबरी से काम करती हैं और अब बदलाव की भागीदार बनेंगी.
किसान- जो इस पूरे तंत्र के केंद्र में हैं.
कौशल विकास- ताकि किसान सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि जानकारी और तकनीक से भी मजबूत बनें.

मिट्टी की सेहत और जलवायु को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, मिट्टी की खराब हालत और जैव विविधता की कमी जैसे संकटों का सामना कर रही है. इनका असर सबसे ज्यादा खेती पर पड़ता है. इसलिए सरकार की रणनीति इन सभी पहलुओं को साथ लेकर चलने की है. इसी के साथ मांगीलाल जाट कहते हैं “हम अकेले काम नहीं कर सकते. हमें सभी विभागों, संस्थानों और किसानों को साथ लेकर चलना होगा”

कम पैदावार की चुनौती

जाट के अनुसार, भारत की पैदावार आज भी विकसित देशों से कम है. इसका कारण है बारिश पर निर्भरता और पुराने तरीकों का इस्तेमाल. अब हम फसल के अंतर को पहचान रहे हैं और हर क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से तकनीक ला रहे हैं. कोई एक तकनीक हर जगह काम नहीं करती, क्योंकि मिट्टी, मौसम, किसान की परिस्थिति हर जगह अलग है. इसलिए समाधान भी “एक जैसा नहीं”, बल्कि “इलाके के हिसाब से अलग” होना चाहिए.

धान और गेहूं से आगे बढ़ने की जरूरत

भारत में बड़ी मात्रा में धान और गेंहू की फसल उगाई जाती है, लेकिन अब जरूरत है कि भारत ज्यादा से ज्यादा दालें और तिलहन उगाए. जाट ने बताया कि सरकार “-5/+10 योजना” पर काम कर रही है, जिसमें 5 मिलियन हेक्टेयर में धान की बुवाई घटे और साल 2030 तक 10 मिलियन टन उत्पादन बढ़े. दरअसल, ये फैसला इसलिए भी लिया गया है क्योंकि चावल आगाने की वजह ये पानी की बर्बादी हो रही है.

इतना ही नहीं भारत की 30% जमीन कृषि के लिहाज से खराब हो चुकी है. जाट मानते हैं कि इसका हल है संतुलन. देश में 8% खेती आज भी प्राकृतिक तरीके से हो रही है. उसमें विज्ञान जोड़कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है. इसी के साथ जैविक संसाधनों को और असरदार बनाना होगा. ना पूरी तरह केमिकल सही है, ना पूरी तरह प्राकृतिक हमें संतुलन बनाना होगा.

MSP से आगे की सोच भी जरूरी

सरकार ने दालों के लिए मजबूत MSP व्यवस्था बनाई है, लेकिन जाट मानते हैं कि इससे आगे भी देखना होगा. “हमें किसानों को बाजार, भंडारण, बीज और सलाह की सुविधाएं देनी होंगी, तभी वे नई फसलें अपनाएंगे.”