देश में भीषण गर्मी के बीच जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है. केंद्रीय जल आयोग (CWC) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत के 161 बड़े जलाशयों में से 80 प्रतिशत से ज्यादा में अब पानी उनकी आधी क्षमता से भी कम बचा है. अभी पूरे देश के इन बांधों में औसतन सिर्फ 33.3 फीसदी पानी मौजूद है, यानी आने वाले दिनों में पानी को लेकर मुश्किलें और बढ़ सकती हैं खासकर तब, जब मानसून अभी दूर है.
इन बांधों की कुल क्षमता करीब 182 अरब घन मीटर (BCM) है, लेकिन फिलहाल इनमें सिर्फ 60 अरब घन मीटर पानी बचा है. ये हालात ऐसे समय में सामने आए हैं जब देश के कई हिस्सों में तापमान लगातार चढ़ रहा है और मई में और ज्यादा गर्मी पड़ने की चेतावनी भी दी गई है. गर्मी के इन महीनों में वैसे भी पानी की खपत ज्यादा होती है, और जब बारिश नहीं होती, तो जलाशयों का स्तर तेजी से नीचे गिरता है. अब इसका सीधा असर पीने के पानी, सिंचाई और बिजली उत्पादन पर पड़ेगा.
तमिलनाडु में सबसे बेहतर स्थिति
एक बात राहत देने वाली है कि इस बार पानी का स्तर पिछले साल और पिछले 10 सालों के औसत से थोड़ा बेहतर है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह राहत अस्थायी है, क्योंकि गर्मी का असली असर तो अभी आना बाकी है, और मानसून में भी अभी समय है.
इस बीच, तमिलनाडु ने जल प्रबंधन के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है. यहां जलाशयों में 64.36 फीसदी पानी मौजूद है, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार की योजनाएं, बांधों का रखरखाव, और लोगों की जागरूकता ने इस काम को सफल बनाया है.
उत्तर और पश्चिम भारत में हालात गंभीर
उत्तर और पश्चिम भारत में हालात काफी खराब हैं. उत्तर भारत के जलाशयों में औसतन सिर्फ 24 फीसदी पानी बचा है. वहीं हिमाचल प्रदेश में तो हालात और भी बुरे हैं, जहां सिर्फ 16 फीसदी पानी बचा है. पंजाब और राजस्थान में भी ये आंकड़ा करीब 30 फीसदी के आसपास है.
पश्चिम भारत में महाराष्ट्र की स्थिति काफी खराब है, यहां सिर्फ 26 फीसदी पानी बचा है. जबकि गुजरात और गोवा में थोड़ा बेहतर हाल है, लेकिन स्थिति अब भी चिंताजनक है.
पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत की मिली-जुली तस्वीर
पूर्वोत्तर भारत में कुछ राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. जैसे त्रिपुरा में बांध लगभग 65 फीसदी तक भरे हैं और मेघालय में भी पानी की स्थिति बेहतर है. लेकिन बाकी राज्यों में जलस्तर 50 फीसदी से नीचे ही है.
दक्षिण भारत की बात करें तो तमिलनाडु को छोड़कर बाकी राज्यों की हालत भी चिंताजनक है. केरल में जलाशय लगभग 35 फीसदी तक भरे हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में स्थिति काफी नाजुक है और पानी 30 फीसदी से भी कम रह गया है.
अब सारी उम्मीदें मानसून पर
अब पूरे देश की निगाहें मानसून पर टिकी हैं. मौसम विभाग ने कहा है कि इस बार मानसून समय पर आ सकता है. आमतौर पर मानसून 1 जून के आसपास केरल से प्रवेश करता है. अगर ऐसा होता है, तो जून के मध्य तक जलाशयों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है.
यह संकट एक चेतावनी की तरह है कि भारत को अब पानी के संरक्षण और प्रबंधन के लिए दीर्घकालीन और स्थायी समाधान खोजने होंगे. मानसून भले ही इस साल राहत दे, लेकिन जल संकट की यह स्थिति हर साल न दोहराई जाए इसके लिए नीति और व्यवहार, दोनों स्तरों पर बदलाव जरूरी है.