जिसने खेती का चेहरा बदला, जानिए दुनिया के पहले ट्रैक्टर की अद्भुत कहानी

पहले विश्व युद्ध के दौरान खेती में मशीनों की मांग तेजी से बढ़ी. इस दौर ने ट्रैक्टर को किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 26 Apr, 2025 | 04:00 PM

कभी सोचा है कि खेतों में दौड़ने वाले ट्रैक्टर की शुरुआत कहां से हुई थी? आज के आधुनिक खेती के साथी ट्रैक्टर की कहानी भी किसी सपने से कम नहीं है. यह सपना 1892 में अमेरिका के एक छोटे से गांव, क्लेटन काउंटी, आयोवा में एक जिद्दी और होशियार किसान जॉन फ्रोलिक ने देखा था. आइए, जानते हैं कैसे जॉन फ्रोलिक ने वो कर दिखाया, जिसने किसानों की दुनिया ही बदल दी.

जब भाप के इंजन से परेशान थे किसान

उस दौर में खेतों में अनाज निकालने के लिए भारी-भरकम भाप से चलने वाली मशीनों का इस्तेमाल होता था. ये मशीनें न केवल चलाने में मुश्किल थीं, बल्कि खेतों में आग लगने का खतरा भी पैदा कर देती थीं. जॉन फ्रोलिक खुद हर साल अपने साथियों के साथ साउथ डकोटा के खेतों में काम करने जाते थे और इन भाप इंजनों की परेशानियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. तभी उन्होंने तय किया कि अब कुछ नया करना ही होगा.

गैसोलिन से चली नई उम्मीद की गाड़ी

समाधान के तौर पर जॉन ने अपने दोस्त और लोहार, विल मैन के साथ मिलकर एक नया इंजन बनाया. ये इंजन गैसोलिन से चलता था और पुराने भारी इंजनों की तुलना में हल्का और तेज था. कुछ हफ्तों की मेहनत के बाद उन्होंने इस इंजन को पुराने स्टीम इंजन के ढांचे पर लगाकर खेतों में आजमाया. नतीजा चौंकाने वाला था उस साल उनकी टीम ने 72,000 बुशेल अनाज थ्रेस कर डाले. यानी जॉन का प्रयोग पूरी तरह सफल रहा.

वॉटरलू में शुरू हुई एक नई क्रांति

जॉन फ्रोलिक ने अपनी इस अनोखी मशीन को वॉटरलू, आयोवा ले जाकर वहां के व्यापारियों को दिखाया. सभी व्यापारी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मिलकर Waterloo Gasoline Traction Engine Company की स्थापना कर दी और जॉन को इसका अध्यक्ष बनाया गया. इस मशीन को “फ्रोलिक ट्रैक्टर” नाम दिया गया. हालांकि शुरुआती दिनों में बिक्री नहीं बढ़ी और कंपनी को गैस इंजन बनाने पर निर्भर रहना पड़ा.

वॉटरलू बॉय ट्रैक्टर से मिली नई उड़ान

1895 में वॉटरलू कंपनी ने खुद को फिर से संगठित किया. जॉन फ्रोलिक हालांकि इससे अलग हो गए क्योंकि उनका सपना सिर्फ ट्रैक्टर बनाना था. कई सालों के प्रयासों के बाद, 1913 में “L-A मॉडल” और फिर 1914 में “Waterloo Boy R मॉडल” बाजार में आया. किसानों को यह मॉडल बहुत पसंद आया और पहले ही साल में 118 ट्रैक्टर बिक गए. बाद में दो स्पीड वाला “N मॉडल” भी आया, जो और भी सफल रहा.

वर्ल्ड वॉर I बना ट्रैक्टर क्रांति का मोड़

पहले विश्व युद्ध के दौरान खेती में मशीनों की मांग तेजी से बढ़ी. इस दौर ने ट्रैक्टर को किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया. कई कंपनियां ट्रैक्टर बनाने के लिए मैदान में उतर आईं. उसी समय जॉन डीयर कंपनी (Deere & Company) ने वॉटरलू कंपनी को खरीदा, और 14 मार्च 1918 को यह सौदा पूरा हुआ. यहीं से ट्रैक्टर की दुनिया ने एक नया मुकाम छूना शुरू किया.

आज भी जिंदा है फ्रोलिक का सपना

आज भी आयोवा के वॉटरलू में John Deere Waterloo Works दुनिया के सबसे बड़े ट्रैक्टर निर्माण संयंत्रों में से एक है. यहां हर दिन आधुनिक ट्रैक्टर तैयार होकर दुनियाभर के किसानों तक पहुंचते हैं.

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